आभासी दुनिया में अविस्मरणीय सुभद्रा कुमारी चौहान पर संगोष्ठी संपन्न
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नागपुर। अमरोत्सव काल में आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पीजीडीएवी कॉलेज दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में 'अविस्मरणीय सुभद्रा कुमारी चौहान' पर एक सार्थक व उपयोगी संगोष्ठी पदम श्री 'डॉ श्याम सिंह शशि 'की अध्यक्षता में ऑनलाइन संपन्न हुई ।अध्यक्षता करते हुए 'डॉ शशि' ने जहां संगोष्ठी को एक सार्थक निरूपित किया, वहीं आज के युवाओं के लिए एक नई पहल के रूप में भी देखा । उन्होंने आगे कहा कितने लोग हैं जो राष्ट्रीयता के परिपेक्ष्य में लिखते हैं। साथ ही सुभद्रा जी को उनके कृतित्व को नमन करते हुए उन्होंने प्रश्न खड़ा किया क्या इलाहाबाद या जबलपुर में सुभद्रा जी के नाम पर कोई रोड का नाम है क्या ? अगर नहीं है तो हमें ऐसे विभूतियों के लिए आवाज उठाना चाहिए।
मुख्य अतिथि कुलपति व संस्कृत के विद्वान 'डॉ कपिल देव मिश्र' ने कहा यह एक ऐतिहासिक विषय है, हर भारतवासी के तन -मन में सुभद्रा जी आवेश, अल्लाहाद से सराभोर कर देशभक्ति की लहर उठा देती थीं। उनके जन्म काल से ,अंतिम दिन की यात्रा तक उनके साहित्य ,सम्मान का उल्लेख कर उन्हें हिंद के नवजागरण में आम आदमी का कृतित्व प्रस्तुत करती उल्लेखनीय विभूति कहा। सुभद्रा जी को समझाते हुए उनका मानना था की कितने चमत्कारी ढंग से हिंदी के प्रति प्यार भर 'राष्ट्र देवो भव' का भाव उत्पन्न करने वाली सुभद्रा जी ने दिखाया 'पेन ही गन' है। दूसरे अतिथि प्राचार्य 'डॉ कृष्णा शर्मा' ने कहा सुभद्रा जी दार्शनिक तो थी उनकी कविताएं देश भक्ति भी उत्पन्न करती हैं।
अगर तुलसी द्वारा कृत 'रामचरित्र मानस' को ईश्वर कथन ही मान लें, तो सुमित्रा जी देशभक्ति की एक ओजस्वी कलम थी। उनकी कृतियों में प्रेम की मादकता थी ,बचपन की अठखेलियां थी, ओजपूर्ण और वंचितों शोषितों के प्रति अपना समर्पण भाव भी रखती थी ।वे पहली सत्याग्रही महिला थी जो गांधी जी के आवाहन पर सत्याग्रह में कूद पड़ी ।दूसरे अतिथि 'विजय शंकर मिश्र 'ने उनके 44 साल के लेखन को महादेवी के उपरांत उत्कृष्ट माना। उनकी रचनाओं में चेतना की भावना अद्वितीय थी। इसमें वात्सल्य संघर्ष, ओजस्विता की विलक्षण कवित्री थी। 'झांसी की रानी' में आल्हा छंद वीर रस का निष्पादन कर , उन्होंने शिल्प के वैभव की नई विशिष्ट शैली में स्वयं को स्थापित किया, भले उनकी कविताओं में कला का आग्रह नहीं है।
जबलपुर की 'डॉ. स्मृति शुक्ला' ने सुभद्रा जी के राष्ट्रप्रेम, मानवता की भावना के साथ बताया मुक्तिबोध ने उन्हें लिखा है उनकी कविताओं में मुक्ति की आकांक्षा मुखरित हुई है। दलित मुक्ति ,स्त्री मुक्ति उनका मुख्य केंद्र है। जलियांवाला बाग पर तंज कसते हुए सुभद्रा जी ने वीरों का 'कैसा हो वसंत 'लिख डाला। उनकी हर कविताओं में अलंकार, रूपक आदि भले ना हो पर लयबद्ध हैं। लेखन ही सुभद्रा जी का अपना एक स्मारक है। लक्ष्मी बाई पर पुरस्कार प्राप्त करते समय उनकी कविता - हर पंक्ति पर लिखा जहां शौर्य लक्ष्मीबाई का, वहां क्या मोल है, सुभद्रा की कविता चतुराई का 'डा. ऊशा दुबे' जिन्होंने सुभद्रा जी की कहानियों पर पीएचडी की, उन्होंने आलोचक की दृष्टि से सुभद्रा जी के नारी चित्रण, सामाजिक परिदृश्य ,राष्ट्रीय चेतना के साथ कहानी में राजनीतिक झलक साफ दिखाई देती है।
जहां उनकी कालजई कहानियां चेतना से परिपूर्ण हैं। वहीं अंग्रेजों का हिंदू -मुस्लिम में कूटनीति का प्रदर्शन देख वे उस पर भी कलम चलाती हैं।' डॉ अनीता उपाध्याय 'ने सुभद्रा जी की काव्य धारा को उनकी उम्र के 5 साल से प्रस्तुत किया। नवें साल में नीम पर लिखी कविता को चिंतन के धरातल पर , एक बच्चे की दृष्टि से ,उत्कृष्ट माना। उनका कहना था की आजाद भारत के हम लोग उनकी लेखनी से वंचित रह सामर्थ्य और समर्पण हमारी लेखनी में खो सा गया है। 'डॉ. सविता चौधरी' ने उनके पति 'लक्ष्मण सिंह' और 'सुभाष जी' से जेल में मिलने गई ,?तब सुभाष चंद्र जी ने सुभद्रा जी के !योगदान की भूरी प्रशंसा की और कहा सुभद्रा याने वह लक्ष्मीबाई की कविता लिखने वाली। यहीं से उन्हें राष्ट्रीयता की एक नई पहचान मिली। 'डॉ सरोजिनी प्रीतम' ने सुभद्रा जी के विविध विषय की प्रस्तुति के साथ, आलेखों पर अपना संक्षिप्त मत रखते हुए संगोष्ठी को उत्कृष्ट माना।
आभार 'डॉ अहिल्या मिश्रा' हैदराबाद ने किया और साथ कहा छायावाद में मीरा के रहस्य, कबीर की गुढ़ता को जहां महादेवी वर्मा लेखनी में उतार रही थीं, वहीं समांतर उनकी सहेली सुभद्रा वीर रस में लेखनी चला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में जोश भर रही थी। कार्यक्रम का सफल संचालन 'प्रोफेसर हरीश अरोड़ा' ने अपने सारगर्भित टिप्पणियों के साथ सौहार्द्रपूर्ण वातावरण को बनाए रखा। जिससे एक रोचकता बनी रही। कार्यक्रम की रूपरेखा और प्रस्तावना में आथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव 'डॉक्टर शिव शंकर अवस्थी' ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कृतित्व और व्यक्तित्व पर अपने विचार रखते हुए उन्हें एक कालजाई रचनाकार के साथ एक विद्रोही महिला कवयित्री के रूप में देखा जाना चाहिए, जिन्होंने उस काल में ठाकुर घराने के घुंघट प्रथा का महिला होते हुए विरोध किया और ससुराल में वैसे ही प्रवेश किया। इस कार्यक्रम में डॉ शैलबाला अग्रवाल, अशोक ज्योति अशोक पांड्या, पुरुषोत्तम पाटील, नरेंद्र परिहार, श्रुति सिन्हा, प्रभा मेहता आदि देश की कई सुविख्यात साहित्यकार जलगांव दिल्ली उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र कर्नाटक तेलंगाना प्रदेश आदि से श्रोता उपस्थित थे।