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आचार्य डाॅ. गहरवार 43 वर्षों में पुरातत्व में किया प्रवेश


नागपुर/बालाघाट। आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 21 वर्ष की अवस्था में 27 अक्टूबर, 1980 को जटाशंकर त्रिवेदी महाविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना केम्प में ग्राम धनसुवा गये थे, जहाँ जीर्ण-शीर्ण अवस्था में गोंसाई मंदिर देखा और उसकी साफ-सफाई, जीर्णोद्धार करवाया। 

जिसे देख पुरातत्व के प्रति आकर्षित हो गये। वहां से आने के उपरान्त जिले के वनाच्छादित क्षेत्रों में पुरातात्विक अवशेष सर्वाधिक मात्रा में जर्जर अवस्था में बिखरे हुए थे, उनकी सूची बद्धता की और 14 सितम्बर, 1984 को इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान  का विधिवत गठन कर, आमजनों का ध्यान पुरातत्व प्रति केन्द्रित करवाया।   

तदोपरान्त शासन-प्रशासन के सहयोग से 26 जनवरी 1988 को अस्थायी पुरातत्व संग्रहालय में जिले की धरोहर को रखा। 1991-92 में स्थाई पुरातत्व संग्रहालय जिला योजना समिति के माध्यम से बनवाया। 

1999 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय नई दिल्ली भारत सरकार के सहयोग से पुरातत्व संग्रहालय में सुदृढ़ीकरण, सवर्द्धन करवा कर आकर्षित बनवाया। नैरोगेज बोगी तात्कालिक कलेक्टर भरत यादव के मार्गदर्शन परामर्श से स्थापित कर विश्व पटल पर बालाघाट इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान संग्रहालय को नई पहचान दी। 

भविष्य में नैरोगेज इंजन के संबंध में पत्राचार का सिलसिला बना हुआ हैं। पुरातत्व संग्रहालय के विकास हेतु जिले के गणमान्य जनों, जनप्रतिनिधियों का सहयोग भी सराहनीय रहा हैं। 

आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर', संग्रहाध्यक्ष, पुरातत्व संग्रहालय अपनी नि:स्वार्थ भाव से शासन/प्रशासन/शोधार्थियों के सेवाऐं दें रहे हैं, जहाँ  42 वर्ष पूर्ण कर, 43 वर्ष में प्रवेश किया हैं। 

ड़ाँ. गहरवार को पुरातत्व/साहित्य क्षेत्रों में 4100 के ऊपर शासन/प्रशासन/राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समसामयिक संस्थाओं से सम्मान, अभिनन्दन-पत्रों, प्रशस्ति-पत्रों  सम्मान-पदकों से सम्मानित किया जा चुका है और विशेष सम्मानों हेतु नामांकित किया गया है। 3600 के ऊपर पुरातत्व, इतिहास, साहित्य गद्य और पद्य  प्रकाशित हुआ हैं। 

उन्होंने बालाघाट जिले के पुरातात्विक क्षेत्रों में शोध किया और "वैनगंगा घाटी का इतिहास, पुरातत्व, साहित्य, संस्कृति वैभव"  पर शोध ग्रंथ 11 जनवरी, 2011 तथा "बालाघाट जिले की प्राचीन मूर्ति कलात्मक, इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान संग्रहालय परिदृश्य" पर भी शोध ग्रंथ 26 जनवरी 2022 को प्रकाशित करवाया, जिसके परिपेक्ष्य में शोध छात्र/छात्राएँ, पर्यटक लाभांवित हो रहे हैं।  

पुरातत्व संग्रहालय में प्रतिदिन शोध विधार्थियों, भारतीय-विदेशी पर्यटकों का आवागमन होता रहता हैं, जिन्हें अपने पुरातात्विक अनुभवों से उन्हें नि:स्वार्थ भाव से ज्ञानादित कर रहे हैं। 

साथ ही आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' के नाम पर भारतीय डाक टिकट 27 मई 2022 जारी हुआ है तथा विश्व रत्न सम्मान 15 अगस्त 2022 को शून्य से शिखर फाउंडेशन मुंबई के द्वारा सम्मानित किया गया हैं। इसके अतिरिक्त इन्हें वर्ल्ड पार्लियामेंट की मेंबरशिप भी दी गई है, पूर्व में अंतर्राष्ट्रीय शोध सलाहाकार सदस्य से भी नवाजा गया है। 

राष्ट्रीय अध्यक्ष, इतिहास एवं पुरातत्व शोध संस्थान, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासंघ भारत तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक हजार संस्थाओं से सम्बद्धता रखी है।  जो जिलें के लिए बहुत बढ़ी उपलब्धियां हैं।

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