काश
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हर दिल में कोई काश रहता है।
फुर्सतें भी अब हुई मसरूफ,
तेरी ही कैफियत से आबाद रहता है।
बड़ी मुतमइन थी मैं अपनी तन्हाइयों से,
अब यादों का काफिला साथ रहता है।
ख्वाहिशों की दुनिया हकीकत से दूर है,
तमन्नाओं का शोर फिजूल रहता है ।
ज़िक्र – ए – यार से चमक उठती है आँखें,
निगाहे साक़ी का बस यही कुसूर रहता है।
उल्फत में तेरी हम तो जिए जाएंगे 'अदा '
सुरूर तेरा चार सू रहता है।
- डॉ. तौकीर फातमा 'अदा'
कटनी (मध्य प्रदेश)
मसरूफ – व्यस्त
कैफियत – नशा, सुरूर, आनंद की अनुभूति
मुतमइन – सन्तुष्ट
सुरूर – नशा
साक़ी – शराब परोसने वाला
चार सू – चारों ओर
ज़िक्र – ए – यार — प्रियतम की चर्चा