खामोशी
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कुछ-कुछ छुपाती हैं,
कभी पास बुलाती हैं
कभी दूर करती हैं
कभी दुत्कारती हैं
कभी प्यार जताती हैं,
तेरी खामोशी।
गुलाबी सी प्यारी
धवल जैसी शांत
लाल जैसी उग्र,
नीली सी उदास
सच,
रंग बिरंगी हैं तेरी खामोशी।
कभी करती हैं यह अरदास
लीन हो जाती हैं अपने खुदा में,
कभी होती हैं उदास
दूर हो जाती हैं खुद से,
सच तेरी खामोशी
कितने गुल खिलाती हैं।
दूरी बनाती हैं तो
करीब लाती भी हैं,
डूबे जो इसमें तो लगे
अथाह सागर सी गहरी,
ना समझें तो
बहुत उथली हैं
तेरी
ये खामोशी।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
नागपुर (महाराष्ट्र)