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कम्प्यूटर बाबा बनाम कम्प्यूटर डाक्टर युग का शुभारंभ



धरती पर समय समान्तर जीव जन्तु और मानव अवतरित हुए हैं, तो उनमें से एक से बढ़कर अनेकानेकों ने अपने-अपने क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रसिद्धता हासिल की हैं। इसी श्रृंखला में या कहें कम्प्यूटर बाबा का भी नजारा सुनने को मिलें, वर्तमान परिदृश्य में अभी विलुप्त हो गये हैं, जब समय आयेगा प्रकट हो जायेगें। 

इसी क्रमबद्धता में वर्तमान परिवेश में कम्प्यूटर डाक्टर के बारे में बहुत कुछ सुनने को मिल रहा है, हर कोई न कोई  इनकी तारीफ करते हुए थकते नहीं हैं, तत्काल प्रभाव से मरीजों की बीमारियों की पर्ची निकल जाती हैं?
     
प्राचीन काल में आयुर्वेदिक औषधियां उपचार में बहुतायत प्रचलित था, जड़ियों-बुटियों को हाथ की हथेली पर रख कर, रस निकाल कर मरीजों को दिया जाता था, बड़े-बड़े घावों को ठीक किया जाता था। प्रातः काल की प्रथम पेशाब को बर्तन में रख अलसी के तेल की दो बूँद डाल कर सम्पूर्ण बीमारियों का पता कर लिया जाता था और एक-दो गोलियों से इलाज? आज भी आदिवासी इलाकों में इसी पद्धति का प्रयोग किया जाता हैं।
     
महानगरों, शहरों में आधुनिकीकरण का अमृत महोत्सव की भांति इतना प्रसार-प्रचार हो चला है कि मध्यम वर्गीय का इलाज मंहगी  चिकित्सा पद्धति के बाहर की बात हो गई है। बीमारियाँ पहले भी वही थी, आज भी वही बीमारियाँ हैं! बस बदलाव वही हुआ है। 

आधुनिक आविष्कारों मशीनों का? कोई भी डाक्टर मरीजों का इलाज नाड़ी पकड़कर करना नहीं चाहता। डाक्टर को डर लगता है, वह बीमार न पड़ जायें? ऊपर न चले जायें? जैसे भगवान अदृश्य है, वैसे ही डाक्टर अदृश्य हो गये हैं? 

नीचे मरीज का सहायक गणों द्वारा, सम्पूर्ण रुप से देख लिया जाता हैं, न समझ में आये तो तरह-तरह की जांच करने बताया जाता है,  भले ही मरीज के जेब में पैसा रहे या न रहे? मरीज कर्म और कर्ज के सायें में जकड़ जाता है? फिर मानवता तार-तार हो जाती हैं। 

देखते ही देखते कम्प्यूटर डाक्टर की पर्ची निकल जाती हैं और सिलसिला प्रारंभ होता है, बन्द कमरे में कैद कम्प्यूटर डाक्टर का अमहत्वहीन मंहगी चिकित्सा पद्धति का वह अद्भुत अदृश्य? उन्हें मरीजों से कोई मतलब नहीं है मात्र रुपया पद्धतियों को देखना हैं। 
     
रात में अगर मरीज बीमार हो जायें तो उस समय का दृश्य देख लीजिएगा,  डाक्टर कुंभकर्ण की भांति सोता हैं,  मरीज के परिवार गण इस डाक्टर से उस डाक्टर तक नगर की गलियों में घूमता नजर आता हैं। 

भूलें भटके कोई डाक्टर उठ भी गया और मरीज की हालत को समझ गया तो, उसकी चांदी ही चांदी, वह यह नहीं बतायेगा, मरीज जाने वाला है, ऐसा दिखावटी सहानुभूति पूर्ण इलाज करना प्रारंभ करता है, कि मरीज तुरंत ही उठकर बैठ जायेगा और मरे की छाती में मुंग पिसना प्रारंभ?  

फिर दो-चार दिनों में, क्षमा कीजिएगा और बिल काऊंटर में जमा कर दीजिये, यह हैं मानवता की पहचान? जो गली-गली बाजारों में सरेआम बिक रही है!  ऐसा प्रतीत होता है कि मरीजों की फैक्टरी खुली होगी? इसमें भी एक डाक्टर से दूसरे डाक्टरों की वचनबद्धता की श्रृंखला भी देखी जा सकती है। 

हम सभी डाक्टरों को दोषी नहीं कह सकते, जो आज भी नि:स्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं। एक कहावत चरित्रार्थ हैं एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती हैं,  यही से जन्म हुआ कम्प्यूटर डाक्टर का, जो किसी चमत्कारिकता से कम नहीं है, मरीज रुपया देयेगा या नहीं पहले ही जमा करवा लीजिए?
     
कम्प्यूटर डाक्टर पद्धतियाँ आने के पूर्व तक तो डाक्टर मरीज का इलाज सादगी पूर्वक दबा-दबा करते थे, पर्दा लगाकर मरीज को भी मजा आता था,  और डाक्टर को भी? मरीज कोई भी हो?  हर तीसरे दिन डाक्टर और मरीज की भेंट होती थी, उस समय एक दवाई मिक्चर बहुतायत प्रचलित थी एक खुराक पी लो तबीयत मस्त? 
     
यहाँ भी ध्यानाकर्षण करना जरूरी हैं, पूर्व में महिलाएं गर्भवती होती थी, नव माह कैसे निकल जाते थे, पता ही नहीं चलता था और प्रसूति एक लोटे गर्म पानी में घर की बुजुर्ग महिला ही करवा देती थी, आज तो परिवर्तित समय में तो देख लीजिए, प्रारंभ से होते तक तरह-तरह की चिकित्सा और अंत में क्षमा कीजिए, बिना आपरेशन से हो ही नहीं सकता? और लम्बा चौड़ा बिल? बड़ा शोध का विचार और विषय हैं, इन्होंने अपनी चिकित्सा में कैसी पढ़ाई-लिखाई की हैं समझ के परे है, रुपया खर्च करों और बाद में कमाओं। चिकित्सक और दवाई दुकानदार दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं, 

दवाईयां ही देख लीजिए, ज्यादा से ज्यादा दवाईयां लिखी जाती हैं, बार-बार लिखीं जाती है, फिर कहा चले जातीं हैं, विचारणीय प्रश्न हैं? यह अपना दोष नहीं, अपने अपनत्व का दोष हैं? उसी तरह से देख लीजिए मरीज वाहनों का, यहाँ से वहाँ ही जाना हैं, मरीज जिन्दा हो या मरा? बिल तो देना ही पड़ेगा? अंत में निष्कर्ष निकाला जायें तो जैसे जननी एक्सप्रेस चल रही है, वैसे ही कम्प्यूटर डाक्टर की अति सुपर फास्ट, जो कह दिया, वह कह दिया, जिसे कोई भी बचा नहीं सकता?

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
   बालाघाट (मध्यप्रदेश)
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