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पौराणिक काल में लैंगिक भेदभाव नहीं था : डॉ. गिरीश पंकज



नागपुर पुणे। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज द्वारा आभासी संगोष्ठी का आयोजन  किया गया था। जिसका विषय 'समाज के विभिन्न क्षेत्रों में लैंगिक भेदभाव' रहा। जिसमें मुख्य अतिथि के रुप में डॉ. गिरीश पंकज, संपादक, सद्भावना दर्पण, रायपुर, छत्तीसगढ़ रहे। 

अध्यक्षता डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे महाराष्ट्र की। अतिथि महोदय ने कहा कि असमानता धीरे-धीरे समाप्त होते जा रही है। पौराणिक काल में देखता हूं तो  लैंगिक समानता दिखाई देती है। 

काली, पार्वती, चंडी की मिथक कहानी में नारी ने बढ़ चढ़कर प्रतिकार किया है। साथ ही  उन्होंने ने कहा कि नारी की जहां पूजा होता है वहां देवता प्रसन्न होते हैं । सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत लैंगिक भेदभाव भी देखा गया है चाहे वह कोई भी क्षेत्र  हो लेकिन आगे यह लैंगिक भेदभाव खत्म हो जाएगा।
     
अध्यक्षता कर रहे डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि समाज में महिलाओं को निम्न दृष्टि से देखा जाता है। यह पुरुष प्रधान समाज है स्त्री को प्रोत्साहित नहीं करता । महिला भले ही डॉक्टर हो, वकील हो शिक्षक हो जाए लेकिन उसको समाज में वह स्थान नहीं मिल पाता, जो पुरुषों को मिलता है। अतः हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी और स्त्री को गुलामी की जंजीरों को तोड़ना होगा।
      
वक्ता डॉ अर्चना चतुर्वेदी, अध्यक्ष हिंदी इंदौर मध्य प्रदेश ने कहा कि लैंगिक भेदभाव आज भी समाज में देख सकते हैं। महिलाओं के बारे में ज्यादा दिखाई देता है। हर क्षेत्र में असमानता देखी जाती है। चाहे वह कोई भी क्षेत्र हो।
   
मुख्य वक्ता डॉ प्रतिभा गंगाधर येरेकार, हिंदी विभागाध्यक्ष लाल बहादुर शास्त्री, महाविद्यालय धर्माबाद, नांदेड, महाराष्ट्र ने कहा कि आज  इक्कीसवीं सदी में लैंगिक भेदभाव  दिखाई देता है। लैंगिक शब्द जैविकता के आधार पर स्त्री पुरुष को व्यक्त करता है। महिलाओं को अलग दृष्टिकोण से देखा जाता है। पितृसत्तात्मक व्यवस्था समाज में महिलाओं की दयनीय स्थिति को दर्शाता है।
   
वक्ता अश्विनी पाटील, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि जन्म से लैगिक भेदभाव देखा जाता है। लड़का है या लड़की पूछा जाता है और गर्भपात करा दिया जाता था । ऑफिस, घर ,बाहर सभी जगह महिलाओं की स्थिति दयनीय है। साथ ही उन्होंने कहा कि लिंग भेद पहनावा, खाना, शिक्षा सभी में देखा जाता है।
 
वक्ता डॉ माधुरी त्रिपाठी, उपसंचालक कृषि विभाग, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि सृष्टिकर्ता ने सृजन किया है। स्त्री और पुरुष एक सिक्के के दो पहलू हैं। बिना स्त्री पुरूष के सृष्टि की कल्पना नहीं कर सकते।

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज के सचिव डॉक्टर गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने कहां कि स्त्री और पुरुष दोनों ही समाज के प्रगति की सूचक है।

कार्यक्रम का प्रारंभ प्रा. रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र के सरस्वती वंदना से हुआ। स्वागत उद्बोधन डॉक्टर सरस्वती वर्मा ने किया।

गोष्टी का सफल एवं सुंदर संचालन करते हुए डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक हिंदी सांसद छत्तीसगढ़ प्रभारी ने कहा कि स्त्री पुरुष दोनों ही ईश्वर की अमूल्य कृतियां है या यूं कहूं कि एक व्यक्ति की दोनों आंखों के समान है। आभार व्यक्त श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव युवा प्रभारी ने किया। 

इस आभासी संगोष्ठी में डॉ भरत शेणकर, श्रीमती पुष्पा शैली श्रीमती मनीषा सिग, डॉ सोनाली चन्नावर, मधु भंभानी, डॉ. नजमा मलिक अनेक शिक्षाविद साहित्यकार विद्वत जन उपस्थित रहे।
साहित्य 200360403172385683
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