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पैसेंजर रेलगाड़ियों की फेरियां बढ़ाना जरुरी!



एक्सप्रेस, मेल गाड़ियों के लिए अतिरिक्त रुट्स का प्रयोग हो
 
नागपुर (आनन्दमनोहर जोशी)। भारत गांवों का देश है. प्रत्येक गांव में शिक्षा के साधन नहीं होने से और उद्योग कारखाने नहीं होने से विद्यार्थी, कर्मचारियों को दूसरे स्थान के लिए आवागमन करना पड़ता है. 

आवागमन के लिए सड़क, रेलमार्ग ही श्रेष्ठ होते है. विगत 75 वर्ष से भारत में 177 वर्ष बानी पुराने रेलमार्ग का प्रयोग होता आया है. पिछले आठ वर्षों में भारत के राष्ट्रिय महामार्गों का चौड़ीकरण हुआ है. 

शहरों में मेट्रो ट्रैन बनाई जा रही है. तेज गति की रेल गाड़ियों में आजाद हिन्द, दुरंतो, वंदे भारत जैसी रेलगाडियों के सिमीत  दूरियों पर स्टॉपेज होने से  गावों, कस्बों के विद्यार्थियों, उद्योग में कार्यरत कर्मचारियों को असुविधा का सामना करना पड़ता है. 

नागपुर जैसे शहर मे इतवारी से नागभिड़, खापा, खापरखेड़ा के छोटी रेल लाइन को तोड़कर यहाँ का रुट बंद हुआ. जिससे हज़ारों लोगों का रोजगार, शिक्षा से संपर्क टूट चुका है. 

ऐसे में गांवों में गत दो वर्षों से कोरोना महामारी के बाद बेरोजगारी,शिक्षा प्राप्त करने में ग्रामीणों को तकलीफें हो रही है. ऐसी ही तकलीफ नरखेड़ के लोगों को उठानी पड़ रही है.

अब तो मेमो ट्रेन,लोकल ट्रैन, मेनू, डेमू ट्रेन शुरू हो चुकी है. जहाँ पैसेंजर ट्रेन की गति 35 किमी प्रति घंटा रहती है. दुसरी और भारत में एक्सप्रेस रेलगाड़ियों की स्पीड 150 से 170 की किमी  गई है. जिससे भारत के अनेक राज्यों की पैसेंजर रेलगाड़ियों के पूर्णतः बंद होने की सम्भावना है.  

कोरोना के बाद पांच रुपये में दो किमी के स्थान पर दस रुपये किराया हो चूका है. 5 से 12 किमी के लिए 20 रुपये, 12 से 21 किमी के लिए 40 रुपये, 21 किमी से ज्यादा 32 किमी तक का 50 रुपये किराया तय किया गया है. 

भारत सरकार द्वारा तेज गति की रेलगाड़ियों की प्रोत्साहन देने के बाद जनता का गांवों से शहर सड़क यातायात करना महंगा साबित हो रहा है. निजी बस, राज्य सरकार के बस भाड़े में बढ़ोतरी से आम जनता को असुविधा हो रही है. 

आज के आधुनिक समय में रेलवे के कुल 52247  किमी का इलेक्ट्रिफिकेशन हो चूका है. भारत में इस समय में 981 पैसेंजर रेलगाड़ियों की स्थिति चिंताजनक है. 

177 वर्ष पुरानी बिछी रेलपटरियों पर विद्यार्थियों, कर्मचारियों के लिए उचित शिक्षा, योग्य रोजगार के लिए पैसेंजर रेलगाड़ियों का होना भी जरूरी है. जिससे की हजारों छोटे रेलवे स्टेशन पर आवागमन की व्यवस्था हो. 

केवल वंदे भारत, आजाद हिन्द, दुरंतो जैसी तेज गाड़ियों के शुरू होने से जरूरतमंदों, मध्यमवर्ग जनता की समस्या हल नहीं होगी. आज भारत के रेलमार्ग पर ऑस्ट्रेलिया की जनसँख्या के लोगों की तरह 2 करोड़ तीस लाख यात्री से अधिक रोजाना यात्रा कर रहे है. अब तो पेट्रोल की दरें बढ़ने से ऑटो, कैब के कियाए भी बढ़ गए है.
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