रोजगार के साथ शिक्षा के पाठ्यक्रम जरुरी
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3 भाषा, गणित, विज्ञान भूगोल, इतिहास पढ़कर भी नौकरियाँ नहीं
नागपुर (आनन्दमनोहर जोशी)। भारत के एक सौ चालीस करोड़ नागरिकों में से केवल चालीस करोड़ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे है. 80 करोड़ जरूरतमन्द को भारत सरकार सस्ते राशन देकर उनका पेट भरा रही है. गरीब और गरीब हो रहा है. भारत की वर्तमान शिक्षा अपने पुराने ब्रिटिश कानून के तहत चल रही है.
अभी भी अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है। साथ ही भारत की भाषा हिंदी के साथ राज्य की क्षेत्रीय भाषा की भी शिक्षा अनिवार्य की गई है। जबकि विश्व में इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे देश में भारत जैसे देश की हिंदी और क्षेत्रीय भाषा का दबाव छात्र, छात्रों पर नहीं रहता.
भारत के विद्यार्थियों को आठ से दस विषय की कठिन पढाई के बाद भी उचित नौकरियां नहीं मिलती है. भारत जैसे देश में नौकरियों में जातिवादी आरक्षण है. यहाँ सामान्य जातियों, सवर्णों,गुजराती, मारवाड़ी, पंजाबी को ज्यादा नौकरियां नहीं मिलने से वे अपना स्वयं रोजगार कमा रहे है.
भारत के लगभग पच्यानवे करोड़ नागरिक गरीब है. आज तक 75 वर्ष में अनेक लोगों का सरकार ने शोषण किया है. भारत में फालतू विषय बच्चों को पढ़ाये जा रहे है. व्यावहारिक, प्रायोगिक, रिजल्ट ओरिएंटेड पढाई और कामकाज की सख्त आवश्यकता है.
भारत में महंगाई बढ़ने पर भी अनेक गरीब पांच से छह हज़ार रुपये महीने की नौकरी कर रहे है. भारत सरकार के श्रम मंत्रालय को न्यूनतम वेतन उचित दरों से लागू करने से देश के युवाओं को न्याय मिल सकता है.
भारत के 90 फीसदी नागरिक रोजाना दो सौ रुपये खर्च कर जीवनयापन करने में असमर्थ है. भारत जैसे देश में अमीर गरीब की खाई बढ़ती ही जा रही है. यहाँ आम नागरिकों के लिए बिजली, पीने के पानी, जीएसटी, आवास किराया, शिक्षा के खर्च के बाद रोजाना खानपान शिक्षा का खर्च छ हज़ार रूपए में चलना मुश्किल है. महामारी के बाद भारत के अनेक व्यापार,उद्योग ठप्प पड़ने से रोजगार छीन गए है.
भारत में 3 भाषा, गणित, इतिहास, भूगोल, विज्ञान पढ़ने के बाद भी दस से पंद्रह हज़ार की नौकरियां नहीं है. ऐसे में रोजगार के साथ शिक्षा पाठ्यक्रम शुरू करना समय की मांग है.