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हिंदी के विकास के लिए राष्ट्रीय सोच बनाने की आवश्यकता : वीरेंद्र कुमार यादव


                                                       
नागपुर/पुणे। भारत देश में संपर्क व सशक्त भाषा के रूप में उसके सार्वदेशिक  विकास के लिए राष्ट्रीय सोच बनाने की आज नितांत आवश्यकता है। इस आशय का प्रतिपादन हिंदी सलाहकार समिति भारत सरकार के सदस्य श्री वीरेंद्र कुमार यादव, पटना ने व्यक्त किया। 

अंजुमन खैरुल इस्लाम संस्था से संलगनित पूना कॉलेज, कैंप, पुणे में हिंदी दिवस के उपलक्ष में ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : हिंदी की भूमिका’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में अपना उद्बोधन दे रहे थे।
             
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन शेख, पुणे ने समारोह की अध्यक्षता की। श्री. यादव ने आगे कहा कि वर्तमान में हिंदी को साहित्य से भी आगे जाकर इसे ज्ञान की ही नहीं बल्कि विज्ञान की शासन, प्रशासन व न्याय की भाषा बनाने की आवश्यकता है। हमें अपनी मानसिकता बदल कर हिंदी साहित्य भारतीय भाषाओं की समृद्धि में सक्रिय योगदान करना होगा।
           
नेहरू युवा केंद्र पुणे, युवा कार्य एवं खेल मंत्रालय, भारत सरकार, पुणे कॉलेज आइ क्यू ए सी, हिंदी विभाग, पृथा फाउंडेशन, एड्यूथान संस्था के संयुक्त तत्वाधान में राष्ट्रीय संगोष्ठी, पुस्तक विमोचन एवं सम्मान समारोह संपन्न हुआ। नेहरू युवा केंद्र महाराष्ट्र के सह संचालक श्री. यशवंत मानखेड़कर तथा पूना कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आफताब अनवर शेख के मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यक्रम में उप प्राचार्य मोईनुद्दीन खान ने सभी उपस्थितों का स्वागत किया| उपप्राचार्य प्राध्यापक इम्तियाज आगा ने प्रास्ताविक प्रस्तुत किया। 

बालभारती पुणे की समन्वयक डॉ. अलका पोद्दार ने बीजभाषण में नई शिक्षा नीति पर अपने विचार व्यक्त किए। डॉ. रत्ना चौधरी, वर्धा द्वारा लिखित हिंदी उपन्यासों में समाज जीवन इस पुस्तक का विमोचन सभी मान्यवरों  के कर कमलों द्वारा हुआ। डॉ. रत्ना चौधरी ने अपनी पुस्तक का परिचय करवाते हुए सभी का आभार व्यक्त किया।  
             
अध्यक्षीय समापन करते हुए डॉक्टर शहाबुद्दीन शेख ने कहा कि हिंदी ने भारत व भारत के बाहर विश्व मंच पर भरपूर प्रगति साधी है। फिर भी भारतीय संस्कृति को अबाधित रखने के लिए हिंदी सहित सभी भारतीय भाषाओं को विकसित करना होगा। हिंदी के लिए रोमन लिपि का प्रयोग बहुत बड़ा संकट है। 

हिंदी के अस्तित्व के लिए सभी क्षेत्रों में देवनागरी लिपि का ही प्रयोग बहुत जरूरी है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन आरंभ हुआ है, जो भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देगी। क्षेत्रीय तथा मातृभाषा के माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा निसंदेह परिणाम कारक सिद्ध होगी। ज्ञान व कौशल के साथ यह शिक्षा नीति देश के युवा वर्ग को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक सिद्ध होगी।
             
तकनीकी सत्र की अध्यक्षता लखनऊ से पधारी डॉ.  रेनू सिंह ने की। इस सत्र में डॉक्टर प्रेरणा उबालें, डॉ निर्मला राजपूत, श्रीमती मीनाक्षी भालेराव, भावना गुप्ता ने नई शिक्षा नीति और हिंदी के संबंध में अपने विचार व्यक्त किए।
         
सम्मान समारोह के अंतर्गत डॉ रीना सुरड़कर,  अजंता, डॉ रत्ना चौधरी, वर्धा, डॉ. मिलिंद बनकर, प्राध्यापक किरण नागरे, प्रेरणा उबाले, डॉ. शकीला मुल्ला, डॉ. निर्मला राजपूत, प्राध्यापिका दीपिका कटरे,  कांचन पाडलकर, सरबजीत किराड, प्रचेतन पोद्दार, प्राध्यापक इम्तियाज आगा, प्राध्यापक रुखसाना शेख, डॉ. बाबा शेख, डॉक्टर मोहम्मद सलीम मनियार, दयानंद कनकदन्डे  आदि को हिंदी सेवी सम्मान से अलंकृत किया गया। 

इस अवसर पर लायन सुभाष गोयल उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ.  बाबा शेख तथा आभार डॉ. शाकीर शेख ने किया।
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