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जूमनाके ने मार्गदर्शक रतूड़ी को महाराष्ट्र सरकार द्वारा मिला पुरस्कार किया समर्पित !



बुरे वक्त में हौसला अफजाई करने वाले का माना आभार

नागपुर। सक्करधरा चौक महाराष्ट्र २२ सितम्बर को बहुमुखी प्रतिभा के धनी स्वास्थ्य अधिकारी चौबीसों घंटे समाजसेवा के लिए तत्पर रहकर दौड़ने वाले वर्धा निवासी और आरोग्य विभाग महाराष्ट्र शासन वर्धा जिले के जी. एम. गजानन कृष्णा जूमनाके ने अपनी सेवाभावी कार्य और बेहतरीन स्वास्थ्य अधिकारी के लिए महाराष्ट्र शासन से स्वयं को मिला सम्मान और पुरस्कार ट्राफी अपने मार्गदर्शक और बुरे वक्त में साथ देकर हौसला अफजाई करने वाले जुझारू सामाजिक कार्यकर्ता अरविंदकुमार रतूड़ी को वर्धा से नागपुर आकर समर्पित किया। 

मगर रतूड़ी ने अपने आप को इस पुरस्कार का सही हकदार ना समझते हुए जिला स्वास्थ्य विभाग जी.एम. गजानन कृष्णा जूमनाके को ही समर्पित किया। उनके द्वारा दिए गए सम्मान और कभी ना भूलने वाले उपकार को आज इतने बड़े पद पर पहुंचने के बाद भी याद रखने के लिए जूमनाके का आभार व्यक्त किया। 

उन्हें एक बेहतरीन स्वास्थ्य अधिकारी और बड़े मन का सामाजिक व्यक्तियों का सर्वश्रेष्ठ नेतृत्व करने वाला बताया और कहा कि आज के आधुनिक स्वार्थी पाखंडी कलयुग में कोई किसी का उपकार याद नहीं रखता है और यहां तक कि अपने सगे संबंधियों, मां-बाप को भी पद, शौहरत दौलत के नशे में भूल जता है। 

अपने आप को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर जीता है मगर जूमनाके समान बड़े अधिकारी ने इतनी शौहरत और पद मिलने के बाद भी मुझे याद रखकर भगवान का दर्जा देते हुए अपने आप की मेहनत से मिले इतने बड़े सम्मानित पुरस्कार ट्राफी को उतनी दूर से नागपुर आकर मुझे समर्पित करना ये दर्शाता है कि आज भी दुनिया में जूमनाके समान अमूल्य कोहिनूर हीरे समान श्रेष्ठ व्यक्ति मौजूद है। 

मेरे लिए आज का दिन जिंदगी की आख़री सांसों तक ना भूलने वाला है यही मेरी जिंदगी और सामाजिक जीवन की अकूत दौलत और ताकत है।

रतूड़ी ने इस मौके पर उपस्थित कुछ प्रतिष्ठित पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि गजानन कृष्णाजी जूमनाके जन्म से ही शरीर और कद काठी से दिव्यांग और बौने है जिस कारण इस सभ्य सुशिक्षित समाज में कुछ लोग इनका उपहास उड़ाते थे मगर वो कभी भी विचलित नहीं हुए। 

पढ़ें लिखे नौजवान जूमनाके अनेक क्षेत्रिय और हिन्दू फिल्मों में भी एक बेहतरीन कलाकार के तौर पर अभिनय कर चुके है मगर वहां पर भी इनका सिर्फ और सिर्फ आर्थिक शौषण ही हुआ। 

कोविड 19 वायरस महामारी में परिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारी उठाते हुए इतने बहुमुखी प्रतिभा का व्यक्ति आर्थिक तंगी के कारण जिंदगी से तंग आकर खुदकुशी तक का खौफनाक कदम उठने की सोच चुका था, कोई उनकी मदद के लिए सामने नहीं आ रहा था। जो व्यक्ति चौबीसों घंटे दूसरों के लिए जीवन जीता था वह जिंदगी जीने की कड़ी परीक्षा दे रहा था। 

उसी बुरे वक्त के दौरान मेरे से इनकी मुलाकात और पहचान हुई, कोई परिचित सज्जन व्यक्ति इन्हें लेकर मेरे पास नागपुर आए मैंने अपना सामाजिक इंसानियत और मानवतावादी फ़र्ज़ निभाकर इनकी हौसला अफजाई करते हुए मदद की और जिंदगी की आख़री सांसों तक मुश्किलों, मुसीबतों तूफानों से भी लड़ने की सीख दी, और कभी भी हार ना मानते हुए लगातार सरकारी नौकरी मिलने में मेहनत करने की सीख दी। 

परिणाम स्वरूप पूरे महाराष्ट्र में लाखों प्रतिस्पर्धी लोगों के बीच भी अपनी मेहनत, योग्यता, संघर्षरता और पढ़ाई के दम पर जूमनाके का चयन महाराष्ट्र शासन आरोग्य विभाग में पूरे जिले में जी.एम. के पद पर हुआ और इतने कम समय में अपनी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा सम्मानित भी हो गये। 

यही संघर्ष आज की युवा पीढ़ी को याद रखना चाहिए और अपने बुरे वक्त में साथ देने वाले लोगों को आदर्श मानते हुए याद रखकर स्वयं किसी शौषित, पीड़ित, अन्यायग्रस्त, जरूरतमंद की मदद करनी चाहिए। 

मानवता, इंसानियत को सर्वश्रेष्ठ मानकर राष्ट्र धर्म का सम्मान करना चाहिए। इस यादगार मौके पर सक्करधरा थाने के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक धनंजय पाटिल और वरिष्ठ कनिष्ठ पुलिस अधिकारी उपस्थित थे।
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