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होडिंग्स में भी हनुमान अमर हो गये...



     मैं रात में गहरी नींद में सोया था, अचानक मुझे ऐसा आभास हुआ कोई मुझे अदृश्य रुप में दिखाई दे रहा हैं। मैंने ध्यान मुद्रा में देखा हनुमान जी हैं,  साक्षात! मैंने उन्हें दण्डवत प्रणाम किया, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और कहा तुझे मालूम है कि नहीं दशहरा पर्व आने वाला है, पृथ्वी पर मेरा रोल कर, होडिंग्स में चमक जा, अमर हो जा? मैंने कहा प्रभु बचपन में तरह के हनुमान जी के रोल किया करता था, एक बार पूर्व की भांति हनुमान बना, दशहरे दिन विशालतम मुकुट धारण कर, नाचते-कूदते रोड़ में विशाल जुलूस में जा रहा था, 

अचानक पीछे से पानी धार निकल रही थी, यह तो अच्छा हुआ, बीच रास्ते में तालाब था, वहां चले गया, जुलूस की जनता ने तालाब को घेर लिया और नारे लगाने लगे, हनुमान जी संघर्ष करों हम तुम्हारे साथ है? बाद में पता चला आयोजक ने ज्यादा मौसम होने की दवाई खिला दिया था?
     
फिर दशहरा पर्व पर मुझे हनुमान बनाया गया, सिंदूर से रंगाया गया,पूरे जुलूस में खुजाते ही खुजाते शरीर का बेहाल था? 
     उसके बाद फिर मुझे हनुमान बनने आमंत्रित किया गया, आयोजक के मन मस्तिष्क में फिर कपट था,  मेरी पूँछ में मिट्टी के तेल की बूँदे ज्यादा ही गिरा दी थी, मैं पूरी तत्परता के साथ, जोश में  रावण की लंका जलानें जा ही रहा था, आधे में ही रास्ते में ही मेरा पिछवाड़ा जल गया, जो अभी तक सेंकाई कर रहा हूँ? 
      
हनुमान जी मुझे सांत्वना देते हुए हनुमान जी बनने कहा मैं उनके कहने पर तैयार भी हो गया, उन्होंने कहा हमारे समय ऐसा कुछ नहीं था, तुम्हारे समय तो आधुनिक आविष्कारों मशीनों का कलयुगी परिदृश्य हैं, बड़े-बड़े होडिंग्स में अपने इष्ट-मित्रों के साथ फोटो छपवायें, गाँव शहर कस्बों चौक चौराहों पर लगवाये। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, टीवी चैनलों, अखबारों आकाशवाणी में छा जाओं,  तुम्हारी विशालतम रुप में भविष्य में प्रसिद्धि हो जायेगी तुम्हारे पिताश्री और इष्ट-मित्रों के पास रुपयों की क्या कमी है, कम भी चला गया तो, सभी से चंदा वसूली कर देयेगें या फिर फाइनेंस करवा देना? अमृत विचार प्रस्तुत कर हनुमान जी अद्भुता से अदृश्य हो गये।  हनुमान जी की अमृत वाणी सुन मेरा मन प्रफुल्लित हो गया? इससे अच्छा और क्या हो सकता है, 

मैंने अपने पिताश्री और दोस्तों को अपनी योजना बतायी, सब तैयार हो गये, देखते ही  देखते बड़े-बड़े होडिंग्स-बैनर गाँव कस्बों शहर चौक चौराहों पर दशहरे के पन्द्रह दिन पूर्व ही लग गये। जो लाखों का बिल अमृत महोत्सव जैसा आया। रुपया देखें या प्रसिद्धि देखें? रुपया तो चले मान जैसा है, जब भी मैं  रोड़ों से गुजरता तो देख मन आनंदित हो उठता, सब मुझे प्रणाम और चरण वंदना करते थे।  आखिर दशहरे का वह दिन भी आ ही गया, 

मैं अपने पूरे जोश के साथ इष्ट मित्रों की टोली में धोल बाजे, नगाड़ों डीजें की धून में नाचते-कूदते निकलें, अपने को क्या था, पिताश्री और इष्ट-मित्रों के उत्साह का रुपया था? जनता-जनार्दन को समर्पित? हाँ तो जब घर से निकले के पूर्व परिवार जनों, इष्ट-मित्रों ने तिलक लगाकर, माला पहनाकर बिदाई दी, ऐसा लग रहा था, सचमुच के ही है, मन में संचार की भांति स्फुटी थी? घर संसार से रावण वध स्थल तक देखते ही रह गया, सम्पूर्ण होडिंग्सों-बेनरों की धज्जियां उड़ा दी गई थी, रावण वध की जगह, मेरा फिर वध आयोजक ने कर ही दिया था......?

- आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट (मध्यप्रदेश)
व्यंग 6905886886301519300
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