पूर्व रावण से वर्तमान रावण अवतरित और भविष्य में क्या...
https://www.zeromilepress.com/2022/09/blog-post_640.html
यह सच हैं मानवीयता की पहचान उसके कर्मों पर आधारित होती हैं। जो जैसा कर्म करेगा वैसा ही फल भोगेगा, हमेशा संदेश मुंह में आ ही जाता हैं। महाविद्वान, शिव भक्त, धार्मिकता की पहचान रावण का अपना एक वर्चस्ववादी था, जो अपने पूर्व जन्मों में विभिन्न रुपों में जन्म लिया, उसे मुक्ति कभी नहीं मिली, उसे मालूम था, मुक्ति विष्णु ही पृथ्वी से दे सकते हैं, उनके चरणों में पहुँच कर पूर्व की भांति द्वारपाल बन जाऊँ।
यह सब पूर्ववत विधि का विधान था, महज़ एक माया निमित सीता रुप में जन्मों उपरान्त राम से विवाहित, वनगमन, सीता हरण, राम-रावण युद्ध, रावण वध और रावण को श्री विष्णु के चरणों में मुक्ति! फिर पूर्ववत अपने स्थान पर विराजमान, उसके बाद रावण के जन्म की कथाऐं परिदृश्य नहीं हुई। तुलसीदास जी ने 15-16 वीं शती ई में रामचरितमानस लिखा। जिसमें कहीं भी अंकित नहीं है, किया कि प्रति वर्ष रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण का पुतला दहन किया जायें।
वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो आजादी के बाद इस तरह से रावण के इतिहास की व्याख्यान करते हुए प्रति वर्ष नवदुर्गा पर्व के बाद विजयादशमी रावण-दहन की परम्परा चली आ रही हैं, यह चिंतनशील विषय हैं? अभी तक आंकलन किया जाये तो करोड़ों रुपये एक दिवसीय पुतला दहन में व्यय किया जा चुका हैं?
शासन और प्रशासन द्वारा भी सुरक्षा व्यवस्थाओं की ओर ध्यान केन्द्रित रहता हैं। अगर हम वर्तमान परिदृश्य में अत्याचारियों, बलात्कारियों भष्ट्राचारियों के इतिहास की बात करें तो इनका भी पुतला दहन होना चाहिए, ताकि भविष्य में इनके भी कारनामें भावी पीढ़ियों के लिए स्थायित्व स्तंभ प्रदान करेगी।
देश इक्कीसवीं सदी में हैं, भविष्य में 22 वीं सदी की ओर अग्रसर होगा। नये-नये उपकरणों का आविष्कारों का जन्म होंगा, हमें क्या-क्या करना चाहिए अभी से मन मस्तिष्क कल्पनाओं को केन्द्रित करना चाहिए, विकासशील की रूपरेखा क्रियान्वित करने की ओर ध्यानाकर्षण किया गया तो भावनाओं को समझा जा सकता हैं । जिस तरह से प्राचीन इतिहास को उठा कर देखें तो याद ताजा हो जाती है, किस तरह से क्रियान्वित किया होगा?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट (मध्यप्रदेश)