Loading...

हिन्दी का प्रचार प्रसार एक राष्ट्रीय अनुष्ठान : निंबालकर




महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी मुंबई का नागपुर में साहित्यिक आयोजन

नागपुर। शिक्षक दिवस, आजादी के अमृत महोत्सव एवं हिन्दी पखवाड़े के त्रिआयामी अवसर पर महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी मुंबई द्वारा शानदार साहित्यिक आयोजन की रचना नागपुर में की गयी। 

कार्यक्रम संयोजक अकादमी के पूर्व सदस्य अविनाश बागड़े ने वाग्देवी को आह्वान कर कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुये हिन्दी को समर्पित स्वरचित एक कविता पेश की। 

अनंतर अकादमी सचिव सचिन निंबालकर ने अकादमी के भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुये अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि हिन्दी का प्रचार प्रसार एक राष्ट्रीय अनुष्ठान है और इसमें योगदान प्रत्येक  नागरिक का नैतिक उत्तरदायित्व है।

अकादमी की ओर से अपील की गई कि अतिथियों का सत्कार किताबें देकर किया जाये। सम्मानित मेहमानों को न केवल किताबें वरन गुलाब और मोमेंटो भी प्रदान किये गये।
कार्यक्रम संयोजिका रीमा दीवान चड्ढा ने अतिथि परिचय की रस्म निभाई।

सर्वप्रथम रायगढ़ से पधारे जापानी काव्य विधा विशेषज्ञ प्रदीपकुमार दाश दीपक ने निरूपित किया कि सबसे छोटा छंद ॐ है। हाइकु की 5-7-5 वर्णक्रम की व्यंजना गायत्री मंत्र में ध्वनित होती है।वस्तुतः जापानी काव्य विधाओं की भावभूमि, भारत ही है। जापानी साहित्य पर जेन zen धर्म का पर्याप्त प्रभाव है। 

अज्ञेय और प्रभाकर माचवे जापान गये और साथ लेकर आये जापानी विधाएं। हाइकु रचना इतनी सरल नहीं जितना समझा जाता है। इसमें सहजता प्रयासजन्य नहीं होती। दाशजी ने नागपुर को 'हाइकु शक्तिपीठ' की संज्ञा दी।

साहित्यकार श्रीमती इन्दिरा किसलय ने 'क्षणिका' विधा के स्वरूप पर विहंगम दृष्टिक्षेप किया। क्षणिका का शब्दकोशीय अर्थ बिजली है। यह विद्युत आवेशित क्षण की रचना होती है जो उतनी ही तीव्रता से पाठक के मन में समा जाती है, उसे उत्तेजित करती है। 20 से 30 शब्दों में आदर्श क्षणिका का विस्तार होता है। क्षणिका में व्यंग्य अनिवार्य हो न हो, व्यंग्य के लिये क्षणिका अचूक अस्त्र है। जो मिसाइल की तरह शर संधान करती है।

यह शब्दिका, मनका, हंसिका, दंशिका, चिकोटी, चूभिका आदि नामों से अभिहित की जाती है। 1947 से अपने शैशव को जीती हुई क्षणिका विधा ने चालीस वर्षों से अधिक कालखंड पर मुहर लगाकर अज्ञेय के प्रयोगवाद के साथ अपनी परिपक्वता की घोषणा की। 

नैनो टेक्नाॅलाजी का प्रभाव ही है कि विचारों और भावों ने माइक्रो पोएट्री में प्रतिष्ठा पाई।सामाजिक विसंगतियां विडंबनाएं इसमें सूक्ष्म रूप में व्यंजित हुईं। अज्ञेय की प्रसिद्ध क्षणिका पाथेय है।

साहित्यकार सत्येन्द्रप्रसाद सिंह ने अपने छात्र जीवन एवं पत्र संपादन से जुड़े रोचक रोमांचक अनुभव सुनाये। उन्होंने मुनव्वर राणा की हिन्दी पर सृजित पंक्तियां भी पेश कीं। कविता जोड़ तोड़ से सायास नहीं बनती। उसे पहले मन में पकने दें। कविता के लिये भावावेग जरूरी है। 

जयशंकर प्रसाद के नाटकों के मंचन से जुड़ा एक अनूठा प्रसंग उद्धृत किया- जब भाषा की दुरुहता को लेकर किये गये प्रश्न पर उन्होंने कहा कि मंच पर पर्दे की डोरी खींचनेवाला भी स्नातक होना चाहिए।

विश्वविख्यात व्यंग्यशिल्पी गिरीश पंकज ने 'शतपथ ब्राह्मण' का सन्दर्भ उजागर करते हुये कहा कि 'अगर कविता को मृत्यु से बचाना है तो उसे छन्दबद्ध होना होगा।' कबीर तुलसी और नागार्जुन आदि की छांदस रचनाएं ही जिह्वाग्र पर होती है। छंद हमारी परंपरा का हिस्सा है जैसे आंगन की तुलसी।अग्रक्रम में देखें तो फिल्मीगीत छंदों के कारण ही स्मृतियों में बने रहते हैं। 

बाजार ने छन्द की ताकत पकड़ी है। विज्ञापनों की पंक्तियां हों या राजनीति के नारे, सभी छंदात्मक होते हैं। जीवन में छन्दों सा अनुशासन हो तो जीवन सौंदर्य भी खिलता है। छन्द हमें मानवीय बनाते हैं। 

किसी भी विधा को मन में आत्मसात करने की जरूरत है। साधना से ही सिद्धि तक पहुंचा जा सकता है। साहित्य जब स्वाभाविकता से जिया जाता है तो उसमें व्याकरणिक गणना की जरूरत नहीं होती वह सहजतः विधा की शर्तों पर खरा उतरता है।

महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य डाॅ सागर खादीवाला ने पं शिवनारायण द्विवेदी का उद्धरण पेश किया - कि पहले 100 कविताएं पढ़ो फिर लिखो। 

मंचीय कविता की शर्त है आवाज़, लहजा और कविता का चयन। चार लाइन लिखकर कोई पंत निराला नहीं बन सकता। उर्दू में इस्लाह की परंपरा कायम है। कविता का मतलब दीवार बनाने जैसा नहीं है। उस पर प्लास्टर और रंग रोगन भी करना पड़ता है।

इस विशिष्ट अवसर पर राष्ट्र पत्रिका के संपादक कृष्ण नागपाल एवं पाॅवर ऑफ वन के संपादक नीरज श्रीवास्तव भी उपस्थित थे। 

प्रसिद्ध मराठी कवि औलोकनाथ यशवंत के अलावा माधुरी राऊलकर, प्रभा मेहता, शीला तापड़िया, नरेन्द्र परिहार, रंजना श्रीवास्तव, प्रकाश कांबले, माया शर्मा, मीरा जोगलेकर, श्री सहस्त्रबुद्धे आदि ने कार्यक्रम का आनंद लिया।

इस अपूर्व आयोजन पर पन्द्रह किताबों का विमोचन संपन्न हुआ। दोहा, हाइकु, कतौता, हाइबुन, छत्तीसगढ़ी हाइकु गीत, कविता आदि विधाओं ने इनमें स्थान पाया। 

सर्वश्री प्रदीपकुमार दाश दीपक, अविनाश बागड़े, डाॅ आरती सिंह एकता, पूनम मिश्रा पूर्णिमा, अल्पा बलदेव तन्ना, हेमंत लोढा, अमिता शाह अमी, सुषमा अग्रवाल, फरूबी दास, नीमुकुल अमलास ने अपनी कृति के साथ गरिमामय उपस्थिति दर्ज की। सुख्यात व्यंग्य कवि अनिल मालोकर ने काव्यात्मक आभार प्रदर्शन से मन मोह लिया।

समाचार 4678587607190975728
मुख्यपृष्ठ item

ADS

Popular Posts

Random Posts

3/random/post-list

Flickr Photo

3/Sports/post-list