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नागपुर से निकला प्रथम हिंदी विश्व सम्मेलन का रथ


भारतीयों की पहचान है हिंदी

भाषा सुख-दुख के भावों को परस्पर आदान-प्रदान करने का माध्यम है। प्रत्येक प्राणी की अपनी भाषा है। जिसके माध्यम से वह अपनी भाव अभिव्यक्ति करता है। प्राणियों की प्रतिक्रिया को हमने देखा है। गाय का बछड़ा हर्ष रहने पर उछलता कूदता है। भूखा रहने पर रंभता है। गाय (मां) से बिछड़ने पर उसका रंभाना लगातार शुरू रहता है और उसकी नजरें बेचैन दिखाई पड़ती हैं। यह उसकी प्राकृतिक भाषा है। यह सभी प्राणियों में होती है।

यूं तो मूक प्राणी अपने प्रत्येक भाव को अभिव्यक्त नहीं कर सकते लेकिन अपनी प्रतिक्रिया से कुछ भाव से हम समझ लेते हैं क्योंकि मनुष्य प्राणियों में सबसे बुद्धिमान हैं, विवेकशील है, इसलिए प्रत्येक भाव को स्पष्ट समझने हेतु भाषा का निर्माण किया।
कोयल की पहचान उसकी कूक से होती है, शेर की पहचान उसके दहाड़ने से होती है, वैसे ही आर्यों की पहचान संस्कृत भाषा से होती है। संस्कृत भाषा से हिंदी का जन्म हुआ है। जो भारतीयों की पहचान है, भारत की पहचान है।

हिंदी, हिंदुस्तान हो गया

हिंदी शब्द मूलतः फारसी भाषा का शब्द है। सिंधु नदी के तट पर रहने वालों को ईरानी हिंदू कहते थे और उनकी भाषा को हिंदी। वह 'स' का उच्चारण 'ह' करते थे, इसलिए हम सिंधु से हिंदु और हिंदुस्तान हो गए।

हिंदी अधरों की प्यास है और हृदय में घुल जाए जाने वाली भाषा। मुख्यत: संस्कृत इसकी जननी है और लिपि देवनागरी। पर इसे समृद्ध अनेक भाषाओं और बोलियों ने बनाया है। 

इसकी मिठास को जिस अधर ने छुआ वो इसके मुरीद बनते चले गए। यह इसकी सहजता, बोधगम्यता व आत्मसात करने की क्षमता है। जिसके कारण हर धर्म, हर पंथ व संप्रदाय इसके मोह को त्याग ना सका। आज विश्व में हिंदी तीसरी सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा बन गई है।

भारत में बोली जाने वाली अनेक बोलियां और भाषाओं के बीच हिंदी को स्वतंत्रता के पश्चात 14 सितंबर 1949 को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया गया। भारतीय संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद 343 (1) के तहत इसे राजभाषा का सम्मान देकर लागू किया गया। पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया।
आजादी का शंखनाद हिंदी से हुआ

जब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था। तब बच्चे, महिलाओं, वृद्ध व युवाओं पर लगातार जुल्म बढ़ते जा रहे थे। नए-नए कानूनों के तहत रौंदा जा रहा था। आए दिन नवयुवक फांसी पर लटकाये जा रहे थे। मां बेटियों से घिनौने कृत्य किए जा रहे थे। भारतीयों का साहस टूट चुका था। अब दुविधा यह थी कि- पुनः साहस को सुदृढ बनाने के लिए, राष्ट्रीय एकता की मशाल जलाने के लिए मात्र एक सहारा थी- हिंदी. .  .

भारत अनेक भाषा बोलियों वाला देश है। अंत: जन-जन तक आजादी का शंखनाद करने हेतु हिंदी सबसे बड़ा शस्त्र था। देश प्रेम से ओतप्रोत गीत-कविताएं, लेख व नाटक-नौटंकीओं ने भारतीयों में अद्भुत साहस भरा। आजादी का प्रण ले लाखों भारतीयों ने अपने प्राण भारत मां पर सहर्ष अर्पित कर दिए। तब अनेकों प्रांत से आए स्वतंत्रता प्रेमियों की भाषा मात्र हिंदी बनी।

इसमें चाहे गुजराती बोलने वाले महात्मा गांधी हों या बंगाली बोलने वाले सुभाष चंद्र बोस हों या फिर मराठी बोलने वाले बाल गंगाधर तिलक हों। सब के मुख से हिंदी एकता के मंत्र को प्रदर्शित कर रही थी। फिरंगी भी अनेकों भाषा, बोलियां बोलने वालों में एकता की अद्भुत शक्ति देख दंग थे। तब अनेक हिंदी लेखक व कवियों के लेखन पर रोक लगा दी गई, भारी दंड भी दिऔर उन्हें जेल में भी डाला ग

राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है

परतंत्रता की बेड़ियों को खोलने के लिए हिंदी सहायक बनी परंतु स्वतंत्रता के पश्चात यह राष्ट्रभाषा का सम्मान ना पा सकी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था-  'हिंदी हृदय की भाषा है।' प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा था- 'यह संदेश निर्मूल है कि हिंदी वाले उर्दू का नाश करना चाहते हैं।' नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कहा था- 'यदि स्वदेश स्वाभिमान सीखना है तो मछली से सीखो जो स्वदेश (पानी) के लिए तड़प-तड़प कर प्राण दे देती है।' 

स्वामी दयानंद सरस्वती के विचार थे- 'हिंदी द्वारा सारे भारत को एक सूत्र में पिरोया जा सकता है।' प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था- 'हिंदी स्वयं अपनी ताकत से बढ़ेगी।' राजर्षि पुरुषोत्तम टंडन जी ने कहा था-' मेरे लिए हिंदी का प्रश्न स्वराज का प्रश्न है।' 

इन हिंदी प्रेमी स्वरों से हिंदी राजभाषा का सम्मान ही पा सकी। विरोधी स्वरों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं बनने दिया। भारत ही मात्र एक ऐसा देश है जहां राष्ट्रभाषा नहीं है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार दोहराने की आवश्यकता है कि- 'राष्ट्र भाषा के बिना राष्ट्र गूंगा है।'

हिंदी का परचम फहरा रहा है

स्वतंत्रता संग्राम की पीड़ा हिंदी ने भुगती है, लेकिन हिंदी के लिए वह शुभ दिन भी आया जब नागपुर से प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का रथ निकला। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10 जनवरी से 14 जनवरी 1975 को आयोजित किया गया। 

आयोजक राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा थी। इसकी अध्यक्षता महामहिम उपराष्ट्रपति बी. डी. जत्ती ने की। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अध्यक्ष मधुकरराव चौधरी उस समय महाराष्ट्र के वित्त नियोजन व अल्प बचत मंत्री थे। 

इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि मारीशस के प्रधानमंत्री शिव सागर रामगुलाम थे। सम्मेलन का बोध वाक्य था- 'वासुदेव कुटुंबकम।' अर्थात पूरा विश्व एक परिवार है। तब से विश्व हिंदी सम्मेलन का ये रथ अनेकों पड़ावों पर हिंदी का परचम फहराता हुआ गतिमान है।

कोरोना महामारी में हिंदी

जब विश्व को कोरोना महामारी ने चपेट में लिया, तो पूरा विश्व घरों में कैद हो गया। तनाव और आनंद विहीन जीवन जीने को मजबूर  था। 

तब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामायण व महाभारत जैसे धारावाहिकों का प्रसारण शुरू करवाया। इन दोनों धारावाहिकों ने लोकप्रियता का इतिहास रच दिया। भारत ही नहीं पूरे विश्व ने स्वस्थ मनोरंजन का आनंद लिया। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह धारावाहिक पूर्णतः हिंदी में प्रसारित किए गए थे।

हिंदी के सुरक्षा कवच

हिंदी के प्रचार-प्रसार में जो आज भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहें हैं वह है हिंदी के दैनिक समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, हिंदी के समाचार चैनल, हिंदी के सांस्कृतिक कार्यक्रम, कवि सम्मेलन, हिंदी फिल्में हिंदी के गीत, रेडियो व टेलीविजन पर आने वाले कार्यक्रम। इन सभी के प्रसारण व प्रस्तुति से ही नहीं बल्कि पाठकों, श्रोताओं व दर्शकों के हृदय में हिंदी ने अपनी धड़कनें धड़काई है।

दिन प्रतिदिन हिंदी की लोकप्रियता ने नए-नए मुकाम को हासिल किया है। आज यह साधन हिंदी के प्रभावी सुरक्षा कवच बन गए हैं। जो देश-दुनिया को हिंदी लिखना, पढ़ना व बोलना सिखा रहे हैं।
विश्व में हिंदी की प्रतिष्ठा बढ़ी है कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदी लिखी, पढ़ी व बोली जाती है। आजकल मोबाइल कंप्यूटर व इंटरनेट के माध्यम से हिंदी का बड़ा प्रचार-प्रसार है‌। 

अनेक वेबसाइट का संचालन शुरू है। अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल में हिंदी माध्यम से चिकित्सक व इंजीनियर के पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं। विभिन्न औषधियों के नाम भी हिंदी में लिखे जाने लगे हैं। यही नहीं भारत का संविधान भी हिंदी में हस्तलिखित है और भारत की मुद्रा में भी हिंदी को प्रमुखता दी गई है। यह हिंदी की महत्ता को बढ़ा देते हैं। इसका महत्व तब अधिक बढ़ जाता है जब भारतीय मूल के लोग विश्व में हिंदी को प्रतिष्ठा दिलाते दृष्टिगोचर होते हैं।

हिंदी भारत का कोहिनूर है

हिंदी व्यवहारिक वैज्ञानिक व्याकरण की दृष्टि से प्रमाणिक भाषा है। हम हिंदी के प्रति हमारा सम्मान प्रगट कर सकते हैं। हमारे प्रतिष्ठानों के नाम, आमंत्रण निमंत्रण पत्र, हमारे प्रतिष्ठानों के विज्ञापन, हमारे हस्ताक्षर, विभिन्न प्रकार के पत्र लेखन, संस्थाओं के आवेदन पत्र, विभिन्न प्रकार की रसीद पुस्तकें, प्रतिदिन का लेखा-जोखा, गीत कविता भजन  कहानी निबंध  व दैनिक क्रियाकलापों में हिंदी के शब्द उपयोग कर हिंदी का मान बढ़ा सकते हैं। 

आशा है आप हिंदी की शक्ति, उसकी महत्ता व एकता के भाव को समझ रहे होंगे। हिंदी भाषा भारत का कोहिनूर है इसकी चमक कभी कम नहीं होगी। इसकी चमक से दुनिया सम्मोहित होती रहेगी।

- विनोद नायक,
नागपुर (महाराष्ट्र)

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