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राष्ट्रीय जल स्त्रोत और वितरण नीति 2013 पर अमल हो



राज्य सरकारों के नए नियम से नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का दोहन 

नागपुर (आनन्दमनोहर जोशी)। 1947 स्वतंत्रता के बाद वर्ष 2013 के विधेयक में पीने के पानी को लेकर देश के राज्यों की नीतियों में अंतर की बात कही गई है. अंग्रेजों के शासनकाल के बाद के अनेक वर्षों तक भारत जैसे देश में विभिन्न निकायों, पंचायत जैसे कार्यकाल के रहते निशुल्क और नाममात्र शुल्क में जलापूर्ति की जा रही थी. 

लेकिन वर्तमान समय में घरेलू नलों के ग्राहकों से जल के प्रयोग नहीं करने पर भी 3 माह के 265 रुपये मि मीटर किराए के  रूप में वसूले जा रहे है. कुछ राज्य के शहरों में 24x 7 की व्यवस्था के बाद भी आधा और एक घंटे की जलापूर्ति हो रही है. 

राष्ट्रीय जल ढांचा विधेयक 2013 के प्रारूप में पहली बार सामान्य व्यक्ति को पीने के पानी का क़ानूनी अधिकार दिया गया. प्रारूप में जरूरतमंद, अनुसूचित जातियों, जनजातियों ,महिलाओं तथा अन्य कमजोर वर्ग को भी यह अधिकार दिया गया है. ब्रिटिश सरकार भी लगान वसूल करती थी लेकिन पानी के लिए कठोर कानून नहीं बनाया.जबकि महाराष्ट्र राज्य में सेंट्रल ग्राउंड अथॉरिटी ने प्रावधान को बहुत कड़क बनाते हुए नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट के लिए दस हज़ार की राशि भी तय कर दी . कोरोना के बाद कई नागरिकों की नौकरी चली गई।
 
सरकारों द्वारा नौकरियां देने की व्यवस्था नहीं करके केवल जलापूर्ति के लिए कठोर कानून बना रही है  जबकि नदियों, कुओं, बोरिंग के जल के प्रयोग का सामान्य नागरिकों को प्राप्त करने का मुलभुत अधिकार 2013 के नए विधेयक में दिया गया है. जिसमें कहा गया है की पिने,रसोई,घर की स्वच्छता और अन्य घरेलू कामकाज के लिए न्यूनतम पानी वितरण का प्रावधान है . यदि जरूरतमन्द के पास निधि नहीं है तो भी पीने के पानी से वंचित नहीं किया जा सकता है. 

भारत जैसे देश के एक राज्य में निशुल्क और कम कीमत पर बिजली,पानी की आपूर्ति का दावा किया जाता है.लेकिन अनेक स्थानों पर बिजली की और पीने के पानी की दरों में ज्यादा दर से वसूली हो रही है.जो कि संविधान के मूलभूत अधिकार को प्राप्त करने का हनन है. 

नए कानून के जारी होने के प्रति जनता में भारी रोष व्याप्त है. 2013 के विधेयक में प्रति व्यक्ति 25 लीटर जल के प्रयोग करने की स्वायत्तता दी गई है . फिर भी 75 वर्ष बाद भी जहाँ सभी को रोजगार नहीं मिला है. अत्यावश्यक वस्तुओं, सब्जियों के दाम बहुत अधिक बढ़ चुके है. भारत के 28 राज्य के मुख्यमंत्रियों में भी योजना को स्वीकार करने में मतभेद है. 

पीने के पानी, रोजाना प्रयोग के जल पर की जा रही सख्ती आम सामान्य नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का हनन है आज अनेक स्थानों पर 24 घंटे में सिर्फ आधा घंटे ही पीने के पानी की आपूर्ति हो रही है.धारा 3के अनुसार जल सेवा के निजीकरण, निगमीकरण के बावजूद राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह नागरिकों को जल प्राप्ति अधिकार अंतर्गत जलापूर्ति की व्यवस्था करें.आज एक तरफ बाढ़ आ रही है. 

दुसरी तरफ राज्य सरकारें भूमिगत कुओं, बोरिंग पर नियंत्रण कर जबरदस्ती के नियम लागु कर रही है. जो कि उचित और तर्कसंगत नहीं है . संविधान के अनुसार पांच अत्यावश्यक वस्तुओं की आपूर्ति और जल, बिजली, शिक्षा, रोजगार जैसे मुलभुत अधिकार की व्यवस्था है. 

वहीँ बलपूर्वक नए नियम,कानून, दबाव से हो रही वसूली के प्रति जनता में असंतोष होना व्यावहारिक है. अतः नए नियम में सोसाइटी,घरेलु ,व्यवसायिक के भूजल पर बने नियम की घोषित भारी रकम के प्रति निर्णय लेने पर पुनर्विचार जरूरी है.
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