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महिलाओं के परिधान में सादगी व शालीनता हो : डॉ. गोकुलेश्वरकुमार द्विवेदी


नागपुर/पुणे। वर्तमान युग में महिलाओं का परिधान चिंतन का विषय बन गया है। इस आशय का प्रतिपादन विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने किया। 

विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में तथा आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित 121 वीं राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे| 'बदलते परिवेश में महिलाओं की वेशभूषा' विषय पर गोष्ठी रखी गई थी | डॉ. अनुसूइया अग्रवाल, महासमुंद, छत्तीसगढ़ ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। 

डॉ. द्विवेदी ने आगे कहा कि महिलाएं कोई भी वस्त्र पहने, उन्हें पूरी स्वतंत्रता है। लेकिन उन वस्त्रों से शालीनता झलकनी चहिए, फूहड़ता नहीं। 

डॉ. ममता जैन ने कहा कि वर्तमान में बदलते परिवेश के साथ हमारे आचार विचार, खान-पान, वेशभूषा सभी में परिवर्तन हुए हैं। 

शिक्षा के प्रभाव से महिलाएं जब सभी क्षेत्रों में अपने कीर्तिमान गढ़ रही है, ऐसे में भी कुछ सुविधाजनक परिधानों को अपनाना आवश्यक है, परंतु सदैव यह ध्यान रखें कि उनके वस्त्रों से उनका नारीत्व छलके। 

डॉ. सुफिया यासमीन, कोलकाता, पश्चिम बंगाल ने अपने मंतव्य में कहा कि हमारे भारत देश में महिलाएं पहले साड़ी धारण करती थीं। विदेशी प्रभाव के कारण सलवार सूट, लहंगा, चोली आदि पहनने लगी। 

पश्चिमी प्रभाव के कारण जींस पैंट, टॉप आदि पहनने लगी, इसका कारण यह है कि महिलाओं के कार्यक्षेत्र का विस्तार बहुत अधिक हो गया है। परिणामतः वे अपनी सुविधा अनुसार वस्त्र धारण करती है। आजकल कुछ ऐसे वस्त्र धारण किए जा रहे हैं, जो हमारी आंखों में चुभते हैं। 

वास्तव में आधुनिकता हमारी सोच में होनी चाहिए ना कि वस्त्रों में बहुत सी महिलाएं भी हैं जो आधुनिक बनने की होड़ में अजीबोगरीब वस्त्र धारण कर लेती है, जो हास्यपद लगता है अतः अपनी रुचि के साथ वस्त्र हमारे शरीर के अनुरूप भी हो तथा वे अश्लील न लगे। हमें हमारी संस्कृति को किसी भी हाल में मिटने नहीं देना है। 

सुश्री भुवनेश्वरी जयसवाल, कोरबा, छत्तीसगढ़ ने कहा कि हमारी पोशाक आराम, जरूरत तथा कार्य की प्रकृति के अनुसार होनी चाहिए। भले ही वह पाश्चात्य याँ भारतीय हो, पर वह हमारे शरीर के अधिकतर हिस्से को ढक सके। अनावश्यक अंग प्रदर्शन ना हो। वस्त्रों के चयन में हमें विवेकशील दृष्टि अपनानी चाहिए। 

प्रा. मधु भंभाणी, नागपुर ने अपने मंतव्य में कहा कि आज भी हम इस पुरुष समाज में रहने वाले आदिम प्रवृत्ति वाली मानसिक धारणा को लिए हुए हैं कि स्त्री साड़ी पहने या सलवार सूट या जींस टॉप। 

आज के बदलते परिवेश में जहां महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपने परचम को लहराया है, वहां हम अपने वेशभूषा की बात कर रहे हैं। परिधान में महिलाएं जींस, टीशर्ट, टॉप पहने, कोई बुराई नहीं है। बस ऐसे वस्त्र पहने जो शालीन व गरिमायुक्त हो। 

डॉ. अनुसुइया अग्रवाल, महासमुंद, छत्तीसगढ़ ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि नारी की वेशभूषा पर इसलिए बात बार-बार उठती है कि समाज नारी को सिर्फ देख के रूप में ही देखता है। जब कि आवश्यकता है उसे उसके मस्तिष्क से पहचाना जाए। 

अतः समय और परिस्थिति के अनुरूप उसके परिधान में यदि परिवर्तन होता है तो उसे सकारात्मकता में लेना चाहिए। आलोचनात्मक या नकारात्मक रूप में नहीं। परिधान कोई भी हो उसमें शालीनता और मर्यादा होनी चाहिए। 

गोष्ठी का प्रारंभ श्रीमती मंगला अरोटे, अकोले, महाराष्ट्र की सुंदर वाणी में प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ | डॉ. पूर्णिमा मालवीय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने स्वागत उद्बोधन दिया गोष्ठी का सफल व सुंदर संचालन प्रा. रोहिणी डावरे, अकोले, महाराष्ट्र ने किया। 

प्रतिभागी के रूप में श्रीमती ज्योति जैन, इंदौर मध्य प्रदेश, लक्ष्मीकांत वैष्णव,, चांपा, जांजगीर, छत्तीसगढ़, माधुरी बेनके, नासिक प्रा.पूर्णिमा झेंडे, प्रा.ललिता घोडके, अकोले, श्री.सोमकुमार, सौ. विजया मालूनजकर, पुणे, सौ. माधुरी डावरे, पुणे सहित गणमान्य उपस्थित थे।
साहित्य 6331072080123597792
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