बाजारवाद पर व्यंग्य लेखन के लिए कार्ल मार्क्स को पढ़ना जरूरी : आलोक पुराणिक
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नागपुर। सबसे बड़े व्यंग्यकार कबीरदास थे, जिन्होंने हर क्षेत्र की विसंगतियों पर प्रहार किया। बाजारवाद पर व्यंग्य लेखन के लिए कार्ल मार्क्स को पढ़ना जरूरी है। यह विचार वरिष्ठ व्यंग्यकार आलोक पुराणिक (नोएडा) ने व्यंग्यधारा समूह की 117वीं साप्ताहिक ऑनलाइन व्यंग्य गोष्ठी में 'बाजारवाद और व्यंग्य' विषय पर बतौर मुख्य अतिथि वक्ता व्यक्त किए। इस आयोजन में अन्य विशिष्ट वक्ताओं में अश्विनी कुमार दुबे (इंदौर) तथा सेवाराम त्रिपाठी (रीवा) शामिल थे।
वरिष्ठ व्यंग्यकार अश्विनी कुमार दुबे ने कहा कि पहले रचनात्मकता के कारण बाजार में व्यंग्य की पैठ थी और अब बाजार के दबाव में व्यंग्य लेखन हो रहा है। वरिष्ठ व्यंग्यकार सेवाराम त्रिपाठी ने दो टूक कहा कि आज व्यंग्य लेखन भी बड़ा बाजार बन गया है। इस बाजार ने व्यंग्य को गंदा बना दिया है। मनुष्यता और जिंदगी की सासें होनी चाहिए व्यंग्य में।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए प्रास्ताविक में जबलपुर से वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी ने इस बात पर चिंता जताई कि साहित्य और विशेषकर व्यंग्य में बाजार का ऐसा प्रभाव है कि वह हमारी संवेदना को खत्म कर रहा है। व्यंग्य के मूल में हरिशंकर परसाई और शरद जोशी की तरह सामाजिक सरोकार, संवेदना और करुणा होनी चाहिए।
प्रखर व्यंग्य समालोचक व कार्यक्रम के संयोजक डॉ. रमेश तिवारी ने साहित्य और बाजार का रिश्ता प्रतिपक्ष का बताते हुए कहा कि साहित्य सृजन और वाणिज्य कर्म दोनों का रास्ता अलग-अलग है। व्यंग्य के केंद्र में बाजार नहीं, बल्कि पाठक होना चाहिए। बृजेश कानूनगो ने कहा कि बाजार पर कविता के मुकाबले व्यंग्य में प्रतिरोध के स्वर कम है।
रेणु देवपुरा (उदयपुर) ने कहा कि व्यंग्यकार सरकार से डरे हुए हैं और सब अपने नंबर बढ़वाने में लगे हैं। अभिजीत कुमार दुबे (अगरतला) ने कहा कि तीन तरह के व्यंग्य लिखे जा रहे हैं-तात्कालिकता, बाजार की मांग पर और फिलर के रूप में।
आभार व्यंग्यकार टीकाराम साहू 'आजाद' (नागपुर) ने माना। गोष्ठी में अनूप शुक्ल (कानपुर), राजशेखर चौबे (रायपुर), डाँ. महेन्द्र कुमार ठाकुर (रायपुर), अरुण अर्णव खरे (बंगलुरु), कुमार सुरेश (भोपाल), किशोर अग्रवाल (रायपुर), वीना सिंह (लखनऊ), ललिता जोशी (दिल्ली), चेतना भाटी (इंदौर ), सुरेश कुमार मिश्र 'उरतृप्त' (हैदराबाद), मुकेश राठौर (भीकनगाँव मप्र), विवेकरंजन श्रीवास्तव (भोपाल), सूर्यदीप कुशवाहा, रामस्वरूप दीक्षित (टीकमगढ़), भंवरलाल कासनियान की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।