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स्वतंत्रता संग्राम में नागपुर की महिलाएं


बात देश की आजादी के अमृत महोत्सव की हो और उसमें नागपुर की  महिला स्वतंत्रता सेनानियों का जिक्र ही न हो ऐसा कैसे हो सकता है? भारत के स्वतंत्रता संग्राम में नागपुर (वर्धा) राजनैतिक गतिविधियों का केंद्र रहा, स्वतंत्रता आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय यहां लिए गये।

सन् १९२० में नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने स्त्री पुरुष समानता के तत्व पर बहुत जोर देते हुए आंदोलन की सफलता हेतु स्त्री शक्ति का आव्हान किया, तथा त्याग, तप, सेवा भावना व नैतिक शक्ति में भारतीय नारी को सर्वश्रेष्ठ बताकर सदियों से चली आ रही पुरुष प्रधान व्यवस्था पर प्रहार ही नहीं किया, अपितु स्त्री की सोई हुई शक्ति को जगाया और कहा 'स्त्री को अबला कहना स्त्री की बदनामी करना है, यह पुरुष वर्ग द्वारा स्त्री पर किया गया अन्याय है।' इस तरह गांधी जी ने स्त्री शक्ति को, उसके आत्मविश्वास को जगाया ही नहीं यह कहकर उसे झकझोर दिया कि 'वह अपने आप को पुरुष के हाथ का खिलौना ना समझे वो इस सोच से अपने आप को मुक्त करें।' परिणाम? नागपुर की सोई हुई महिला शक्ति जाग्रत हो उठी।

अब पूरे देश की महिलाओं के साथ साथ नागपुर की महिलाओं ने भी अहिंसात्मक आंदोलनों में बढ़चढ़ कर भाग लिया। आश्चर्य यह कि इसमें केवल वे महिलाएं ही नहीं थीं जिनके परिजन राजनीति में सक्रिय थे और न हीं केवल वे महिलाएं  जो शिक्षित थीं, अपितु वे महिलाएं भी बढ़चढ़ कर भाग ले रही थीं जिन्होंने न तो शिक्षा प्राप्त की थी, और न कभी घर की चौखट लांघी थी।

नागपुर में १८ मार्च १९२३ को 'झंडा दिवस' मनाया गया, कारण गांधीजी का मानना था कि किसी भी देश जाति के लिए झंडे की नितांत आवश्यकता होती है। झंडा एक आदर्श का प्रतीक है भारत के हर जाति धर्म वर्ण के लोगों का एक झंडा अनिवार्य हो।अत:भारत की राष्ट्रीय एकता, अखंडता, सम्मान, स्वतंत्रता,व आत्मगौरव के प्रतीक राष्ट्रीय झंडे को एक बडे़ जुलूस में बढ़ीं शान से ले जाते समय अंग्रेज पुलिस ने न केवल जुलूस को रोकने का प्रयत्न किया अपितु झंडे को चुनौती भी दी।

यह १ मई १९२३ का दिन था। इस झंडा सत्याग्रह में देश के विभिन्न भागों से आए सत्याग्रहियों में नागपुर की महिलाओं ने न केवल बढ़चढ़ कर भाग लिया किंतु एक अशिक्षित ग्रामीण महिला सत्यभामा बाई ने बडे़ जोश से भाषण देते हुए पुरुषों को ललकारा और कहा 'यदि तुम हजारों की तादाद में आते हो किंतु जेल जाने व कष्ट सहने का, बहादुरी का काम नहीं कर सकते तो यह कुछ बिना टिकिट का सिनेमा तो है नहीं। हम स्त्रियां तक जेल जाने से नहीं डरतीं, फिर तुम मर्दों को जेल के सिवाय और किस बात का डर है ?

एक ग्रामीण, अशिक्षित स्त्री का इस तरह पुरुषों को देश की कुर्बानी के लिए ललकारना निश्चित ही उसके अदम्य साहस व देश भक्ति का प्रतीक है।

इसी तरह एक दूसरी ग्रामीण महिला जिसे लोकल सरोजिनी नायडू कहा गया के शब्द क्या तुम समझते हो कि तुम्हारी चुप्पी से संग्राम रुक जाएगा? जब तक हम स्त्रियां व बच्चे हैं तब तक यह भंडा वहां (सिविल लाईन) जाता रहेगा, जहां इसका अपमान हुआ है। तुम राणा प्रताप के वंशज हो, क्या तुम्हारी रगों में उनका खून नहीं खौला रहा?

ऐसा समय जब महिलाओं का घर से बाहर जाना, नख भी दिखाई देना वर्जित हो तब एक महिला का पुरुषों को ललकारना निश्चित ही अदम्य साहस आत्म विश्वास व गौरव का प्रतीक है।

अंततः १८ जुलाई १९२३ को चिटणवीस पार्क में महिलाओं ने झंडा वंदन व पूजन बडे़ जोश से किया।
महाराष्ट्र कौंसिल की एकमात्र महिला सदस्य अनुसूया भाई काले ने साइमन कमीशन के विरोध में इस्तीफा दिया व १९२९ में प्रांतीय कांग्रेस अधिवेशन में नागपुर की महिलाओं ने विदेशी कपड़ों की होली जलाई धरना, जुलूस प्रभात फेरियो में भाग लिया तो विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, स्वदेशी का प्रचार आदि में ५०० से अधिक महिलाओं ने भाग लिया। जंगल सत्याग्रह की अध्यक्षता अनुसूया भाई काले ने की और लगभग १९३० तक तो महिलाओं के दृष्टिकोण में क्रांतिकारी परिवर्तन आया।

नागपुर में 'देश सेविका संघ' की स्थापना की गई जिसमें नागपुर की अनेक महिलाओं जैसे सुभगाबाई काशीकर, चंद्रभागा भाई पटवर्धन, पार्वती बाई धनकर, सुमति बाई देव द्वारका बाई देउस्कर, निर्मला ताई साल्वे, प्रमिला ताई दाणी, उमा बाई फड़णवीस, लक्ष्मी बाई रोकते, गंगाबाई छिड़के, जानकी दूधी बजाज, गंगाबाई चौबे आदि अनेक संभ्रांत महिलाओं ने अमूल्य योगदान दिया।

१९३३ से गांधी जी के वर्धा निवास के पश्चात राजनैतिक गतिविधियों में और भी गति आई। इसी समय हरिजन उद्धार कार्यक्रम का प्रारंभ हुआ ।अनुसूयाबाई काले ने इस कार्यक्रम में गांधी जी के साथ खूब कार्य किया।

इसके पश्चात १२ अगस्त १९४२ से नागपुर में भारत छोड़ों आंदोलन की शुरुवात हुई।अंग्रेजी शासन के खिलाफ जुलुसों नारों से नागपुर शहर गूंज उठा। इस संग्राम में नागपुर की अनेक महिलाओं ने अनेक कष्ट सहे, व दृढ़ राष्ट्र भक्ति का परिचय दिया। न जाने कितनी महिलाओं ने जेल की यातनाएं सही, अपने नन्हे बच्चों को छोड़कर जेल गई लाठियां खाई
व अनेक कष्ट सहे।

अंततः १५अगस्त १९४७ को हमें स्वतंत्रता मिली। इस स्वतंत्रता संग्राम में देश के अगणित बलिदानियों के साथ विद्यावती देवडि़या, ताई कन्नमवार, रमाबाई तांबे, माई टिकेकर, रंगूबाई खत्री जैसी अनेक   महिलाओं ने अपनी आहुतियां देकर जो अमूल्य योगदान दिया। आज स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव पर उनकी आत्मा भी अवश्य ही संतुष्ट हो रही होगी। नागपुर नगर की इन सभी देशभक्त बलिदानी महिलाओं को शत शत नमन।

- प्रभा मेहता, नागपुर (महाराष्ट्र) 
   मो. 9423066820

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