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क्रोध और उदासी पर पाएं नियंत्रण !


क्रोध यह हर प्राणियों में पाई जाने वाली एक प्रवृत्ति है चाहे इंसान हो या जानवर वह अपनी अनिच्छा की बात का हमेशा क्रोध करते आया है। 

यह एक ऐसी अवस्था है, जिसमें इनसान कुछ भी कदम उठा सकता है। गुस्से में उसकी बुद्धि ही काम नहीं करती और उसे परिणामों की भी चिंता नहीं रहती। अगर किसी को गुस्सा आ जाए तो उसे कुछ उपायों से नियंत्रण में लाया जा सकता है।

गुस्सा आ रहा है, तो दूर किसी दूसरे स्थान पर चले जाना चाहिए। ठंडे पानी की कुछ घुट पी लेना चाहिए और हाथ पैरों को ठंडे पानी से धोकर मन को फिर शिथिल करने का प्रयास करें अथवा गहरी सांसे ले, या फिर कुछ शारीरिक श्रम करें।

हमारा जो गुस्सा है, वह मन से ही शुरू होता है और मन पर ही खत्म होता है। किसी का भी चेहरा देखने पर पता लग जाता है कि यह आदमी गुस्से में है या खुश है, तो शरीर तक पहुंच चुके गुस्से को शरीर से ही बाहर निकालना पड़ेगा और कोई उपाय नहीं है। 

जब शारीरिक मेहनत करेंगे तो गुस्सा भी कम हो जाएगा और दिमाग भी ठण्डा हो जाएगा। उसके बाद अगर समय हो तो फिर एकांत में बैठकर उस पूरी स्थिति पर एक बार नजर दौड़ायें और बिल्कुल निष्पक्ष होकर देखें, क्योंकि अक्सर हम अपनी बात को ज्यादा महत्व देते हैं। 

जब भी किसी से लड़ाई होती है तो अपने को दोष न देकर दूसरे को ही दोष देते हैं कि हमारी तो कोई गलती ही नहीं है, सारी गलती दूसरे पर मढ़ देते हैं। 
आप कभी भी यह नहीं कहोगे कि गलती मेरी है। अहंकार आड़े आता है, तो एकांत में बैठ कर उस स्थिति को निष्पक्ष भाव से विचार करें, गुस्सा, तनाव जब खत्म हो जाए, तब आप सोचोगे कि मैंने बेकार ही इतना समय खराब किया।

गुस्सा सिर्फ़ मारपीट करने पर ही नहीं दिखता, गुस्सा आपके उठने- बैठने, खाने-पीने, बोलने तक में दिखता है। अपने आसपास के लोगों को ध्यान से देखें कि जिसने अपने अंदर गुस्से को दबाया हुआ है, ऐसा इनसान जब खाना भी खाता है तो ऐसा लगता है जैसे खाने को दांतों से कूट रहा हो। 

जैसे कुत्ते को गुस्सा आ जाए तो वह बहुत जोर से काटता है। इसके विपरीत अगर हम फ्रस्ट्रेशन न बनने दें और उसको बाहर निकाल दें तो हम हल्के हो जाते हैं। मेरी नजर में हम अगर परेशान न होना चाहें, तो हमें कोई परेशान नहीं कर सकता।

मन कई रंगों में रंगा रहता है। उसमें से एक रंग है उदासी। तो कभी मन उदास हो जाए तो उस उदासी में भी यही होता है। उदासी पूरे शरीर में आ जाती है। उस समय अगर आप कोई काम कर रहे हों तो उस काम में मन नहीं लगेगा, ऐसे समय चुपचाप रहो या कोई शारीरिक कार्य करे, जो कार्य हमारे आसपास हो रहे हैं, उनको बदल नहीं सकते। 

अपने आपको हमें ऐसा बनाना चाहिए कि कोई भी कड़वा व्यवहार हो उसे हम पी जाएं। उदास रहने में और गुस्से में रहने में या रोने से कुछ हासिल नहीं होता, तो जब कुछ हासिल ही नहीं होना तो ऐसे काम में अपना समय क्यों बर्बाद करे। 

गुस्सा आए तो निकालो, पर कहां? दीवार पर निकाल दो, दीवार आपसे कुछ बोलेगी नहीं। आसमान पर निकाल दो, अपने अंदर गुस्सा नहीं रखना चाहिए ।

कभी उदास हो जाओ और सोचो कि मेरा कोई नहीं
है, अरे पेड़ हैं, खुली छत है, आसमान है, किसी पेड़ से ही लिपट जाओ। पेड़ को अपना मित्र मान लो।

- दीपक लालवानी
नागपुर (महाराष्ट्र)
                               

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