पुस्तक समीक्षा : प्रसादम्
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'प्रसादम्' को पढ़-समझ कर ऐसा लगा जैसे पूर्णावतार श्री कृष्ण का छप्पन भोग हमें मिल गया हो। 56 रचनाकारों की 56 रचनाओं से जैसे नएं-नएं पकवान की खुशबू महक रही हो। प्रत्येक रचना अपने भीतर एक भाव संजोए हुई हैं।
भगवान श्री कृष्ण और राधिका रानी का संपूर्ण जीवन और चरित्र दृष्टिगोचर होता है। रचना के अनुरूप भाव चित्र को देखकर मन में भाव तरंगें उठने लगती हैं। प्रिंटिंग और डिजाइनिंग का तो कहना ही क्या? शब्द भी कम पड़ जाते हैं। जिन रचनाकारों ने इसमें स्थान पाया है वे सारे ही धन्य-धन्य हो गए हैं। प्रेमावतार राधा रानी और पूर्णावतार श्री कृष्ण के चरण कमल में 'प्रसादम्' को रखते हुए धन्यता की अनुभूति हो रही है।
- समीर उपाध्याय 'ललित'
गुजरात