जीवन का सत्य, कुछ ऐसा लगता है : डाॅ. विमल कुमार, केलिफोर्निया
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नागपुर/पुणे। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज द्वारा, उ.प्र. आयोजित 'कुछ ऐसा लगता हैं' विषय पर केलिफोर्निया, अमरिका के प्रवासी भारतीय साहित्यकार एवं कवि डाॅ. विमल कुमार के काव्य संग्रह पर अंतरराष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी का आयोजन हुआ। जिसमें डाॅ. विमल कुमार ने कहा कि हम सब लोग दो चीज लेकर पैदा होते हैं - शरीर और मन। खाने से शरीर को उर्जा मिल जाती हैं लेकिन मन बदलता रहता है। मन में जो कुछ है उससे प्रेम की अनुभूति, जीवन का आनंद, सफल जीवन का अहसास होता है। साथ ही उन्होंने अपनी काव्य की पंक्तियाँ सुनायी।
प्रस्ताविक भाषण में डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, सचिव, विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उतरप्रदेश ने कहा कि कविता के माध्यम से कवि अपनी हर सच्चाई को सामने लाते हैं, बयां करते हैं। भगवान शंकर की नगरी काशी के बारे मे डाॅ. विमल कुमार जी का काव्य संग्रह प्रेरणादायक है।
वक्ता श्री कैलाश मालखेड़े, लोनावाला, महाराष्ट्र ने डाॅ. विमल के काव्य रचना, लेखन, कविता का वर्णन करते हुए काव्य पाठ सुनाया।
अति विशिष्ट वक्ता विलास किरोते, पुणे ने कहा कि डाॅ. विमल जी प्रभावशाली रूप से अपनी भावनाओं को काव्य संग्रह 'कुछ ऐसा लगता हैं" मे प्रस्तुत किया है। साथ ही गीता का भी ज्ञान कराया है।
अध्यक्षता कर रहे डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि डॉ. विमल कुमार एक रेडिओलाॅजिस्ट तथा न्यूरोलॉजिस्ट होते हुए भी एक कवि के रूप में उनका काव्य संग्रह अंतरराष्ट्रीय रूप से लोगों तक पहुंचना प्रशंसनीय है। डाॅ. विमल कुमार द्वारा लिखी गई कविता में उपद्रवी की पहचान, जय जय काशी, डाॅ. विमल जी के मन की उपज, अनुभूति व कल्पना आप बीती की कविता हैं। वे अपने लेखन में भारतीय सभ्यता, संस्कृति व मूल्यों को भूलें नहीं हैं। अनुभूति की प्रामाणिकता और भोगा हुआ याथार्थ उनकी कविता में पाया जाता है।
कार्यक्रम का प्रारंभ श्रीमती भुवनेश्वरी जायसवाल, कोरबा, छ.ग. की सरस्वती वंदना से हुआ। स्वागत उद्बबोधन सौरभ मातड़े, जलगांव, महाराष्ट्र ने किया।
कार्यक्रम का सफल एवं सुन्दर संचालन हिंदी सांसद, छत्तीसगढ़ प्रभारी, डॉ. मुक्ता कौशिक ने किया।
आभार व्यक्त श्रीमती नीता मालखेड़े, सचिव, सोशल डेव्हलपमेंट फाऊंडेशन, लोनावाला, महाराष्ट्र, ने डॉ.बिमल कुमार की कविता 'प्रेम से स्वादिष्ट कुछ नहीं' का पाठ करते हुए सभी का आभार व्यक्त किया।
इस अंतरराष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी में डाॅ. भरत शेणकर, अर्चना पांडे, मनीषा सिंह, प्रा.रोहिणी डावरे महाराष्ट्र, लक्ष्मी कांत वेष्णव छ. ग. सहित अनेक विद्वतजन उपस्थित थे।