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प्रकृति स्वयं मानस पटल में ठहराव लाकर प्रेरणा प्रदान करने की जद्दोजहद में लगी है!


मातृ दिवस पर विशेष

आजकल हर दिन को खास दिवस के रूप में मनाने का चलन है उसी के तहत मातृ दिवस भी एक दिन खास तौर से हमारी मातृशक्तियों को नमन वन्दन व कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए मनाया जाने लगा और कुछ ही वर्षों में अब इसका ट्रेंड चरम पर है क्योंकि कंप्यूटर इंटरनेट जैसी उच्च तकनीकी क्रांति से हर छोटे-बड़े मुद्दों पर जागरुकता लाना आसान हो गया है, हालांकि इसमें भी अधिकता के कारण अब लाभ कम और औपचारिकता ज्यादा झलकने लगी है। 

खैर जैसी हवा चल पड़ी है उसका प्रभाव सब पर पड़ना तो स्वाभाविक है क्योंकि कुछ भी हो यह दिवस अधिकतर लोगों को एक सकारात्मक मनःस्थिति प्रदान करता है और माँ की याद दिलाता है। वैसे हम भारतीयों के लिये यह दिवस महज देखा-देखी का परिचायक है क्योंकि हमारे विभिन्न शास्त्रों में ही सदियों पहले स्पष्ट रूप से बता दिया गया था कि मातृ शक्तियाँ पूजनीय होतीं हैं और इसलिये उनके प्रति सर्वोच्च श्रद्धा व सम्मान रखना हर मनुष्य का कर्तव्य है। 

जैसे माता गुरुतरा भूमेरू।' अर्थात, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं। मातृ देवो भवः।'
अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है। 
'शतपथ ब्राह्मण' की  सूक्ति  कुछ इस प्रकार  है-
'अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः
मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः।'
अर्थात, जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता,  दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो मनुष्य ज्ञानवान होगा। 

महर्षि वेदव्यास ने 'मां' के बारे में लिखा है-
'नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।'
अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय चीज नहीं है। ये सारी बातें इसीलिये कही गयी है क्योंकि सन्त महात्माओं से लेकर साधारण लोगों ने भी इस सच्चाई को अपने जीवन में अनुभूत किया होगा कि किस तरह से एक माँ अपने वात्सल्य से बच्चे को जन्म देकर या बिना जन्म दिये भी निःस्वार्थ भाव से लालन पालन द्वारा एक पौधे की तरह सींचती है, बड़ा करती है और उसे दुनिया के लिए सार्थक व्यक्तित्व के रूप में, झुके हुए फलदार वृक्ष की भांति प्रस्तुत करने हेतु अपना पुरजोर समर्पण प्रदान करती है। 

लेकिन जिस तरह से भारतीय संस्कारों पर पाश्चात्य सभ्यता की परत चढ़ती जा रही है और बच्चे, युवा वर्ग यहाँ तक बड़े बुजुर्गों के विचारों में भी विदेशी संस्कृतियों के प्रति बेहद रूझान पाया जा रहा है, ऐसे में अब हमारे शास्त्रों में कही बातों को याद दिलाना पड़ता है, कुल मिलाकर ज़माने के अनुसार स्वयं प्रकृति व समय  ही सभी महत्वपूर्ण जज़्बातो को भी किसी तरह से प्रगाढ़ करने व मानस पटल में ठहराव लाकर प्रेरणा प्रदान करने की जद्दोजहद में लगी है। इसी बहाने उन बेबस महिलाओं को जो विभिन्न कारणों से मातृत्व सुख से वंचित रह जाती हैं, उन्हें बार-बार आश्वस्त किया जाता है कि सभी महिलाएं उस दिव्य सार्वभौमिक माँ का अवतार होतीं हैं इसलिए जन्म से ही मातृ आत्मा उनके भीतर विद्यमान होती है और इसलिये समाज उन्हें नीचा दिखाने की भूल न करे। 

हर स्त्री में निहित माँ का आदर करे और सर्वप्रथम महिला बिरादरी स्वयं अपनी ऐसी बहनों मित्रों की भावनाओं का खास खयाल रखे, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ समस्त मातृ शक्तियों को सादर प्रणाम। जय हिंद जय भारत जय ब्रम्हाण्ड!
- शशि दीप
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई


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