पुस्तक चर्चा : डॉ. निशंक के साहित्य में सामाजिक यथार्थ एवं युगबोध
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नागपुर/हैदराबाद/नई दिल्ली। केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से भाषा विमर्श की श्रृंखला में पुस्तक चर्चा "डॉ. निशंक के साहित्य में सामाजिक यथार्थ एवं युगबोध" विषय पर आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई।
आधुनिक युग बोध के प्रगतिशील प्रतिष्ठित और संवेदनशील साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी का साहित्य सृजन हाशिए पर धकेल दिए गए लोगों के जीवन के आरोह अवरोह क्रम, प्रतिकूल अनुकूल परिस्थितियों, नकारात्मक और सकारात्मक मानवीय मानसिकता, तनाव अलगाव से उपजे संत्रास, निराशा, कुंठा जैसी विसंगतियों और अन्य बहुत सी सामाजिक समस्याओं का यथार्थवादी चित्रण करने वाला जीवंत दस्तावेज है। डॉ निशंक जमीनी हकीकत से जुड़े साहित्यकार हैं जिनके अनुसार समाज सामाजिक संबंधों की एक अमूर्त व्यवस्था होती है।
इसी व्यवस्था में से एक वर्ग विशेष के अन्तर्गत लोगों के रहने सहन, उनकी संस्कृति, उनके जीवन मूल्य, उनकी आस्था-निजता, उनकी सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक अपेक्षाएं, महत्वाकांक्षाएँ, आशंकाएँ सभी उसमें सम्मिलित होते हैं इन सभी संदर्भों को सजगता से अपने साहित्य सृजन में समेट लेते हैं प्रबुद्ध चिंतक और हिंदी साहित्य की मुख्य धारा में अपनी जानदार और शानदार उपस्थिति दर्ज करवाने वाले साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी। उपरोक्त विचार प्रस्तुत किए गुरु नगरी अमृतसर पंजाब से प्रतिष्ठित उच्च शिक्षण संस्थान डीएवी कॉलेज अमृतसर के स्नातकोत्तर हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. किरण खन्ना द्वारा डॉ रमेश पोखरियाल निशंक जी के साहित्य सृजन पर संपादित ग्रंथ ‘डॉ निशंक के साहित्य में सामाजिक यथार्थ और युग बोध’ पर आयोजित औपचारिक विमर्श में।
उल्लेखनीय है कि वैश्विक हिंदी परिवार के प्रतिष्ठित आभासी पटल पर पंजाब से हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार में अद्भुत योगदान पर पदमश्री से अलंकृत डॉ हरमहेन्द्र सिंह बेदी, प्रसिद्ध शिक्षाविद् और चिंतक डॉ. योगेन्द्र नाथ शर्मा अरुण जी, हिंदी शिक्षण संस्थान आगरा के उपाध्यक्ष श्री अनिल जोशी, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय लंदन यू. के. से डॉ. अरुणा अजीतसरिया जी ने प्रस्तुत पुस्तक पर बेहद सारगर्भित तार्किक और सटीक समीक्षात्मक वक्तव्यों में बताया कि जीवन की पाठशाला से पर्वतीय अंचलों में परवरिश प्राप्त किये डॉ. निशंक के सृजन की संकल्पशक्ति और रचनाधर्मिता बहुत सहजता से ग्रामीण विशेषतः पर्वतीय परम्पराओं संस्कृतियों, मान्यताओं के साथ ही नगरीय जीवन की भी तमाम विषमताओं उलझनों और संघर्षों को व्याख्यायित करती हुई अपनी साहित्यिक जिजीविषा को तो जीवंतता प्रदान करती ही है साथ ही शासनतंत्र में व्याप्त विसंगतियों, प्रबंधन की कुंठा और व्यवस्था के प्रति विद्रोह को भी प्रतधवनित करती है।
पाँच प्रतिष्ठित प्रवासी साहित्यकारो डॉ. तेजेन्द्र शर्मा, डॉ. शैलेश सक्सेना, डॉ. मोहन कांत गौतम, डॉ. अरुणा अजीतसरिया डॉ. अर्चना पैन्यूली जी सहित भारत से केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष श्री अनिल जोशी जी व पंजाब के बहुत मेधावी नवोदित किन्तु प्रौढ कलम के धनी लेखकों प्रिंसिपल डॉ सीमा अरोड़ा, डॉ. किरण ग्रोवर, डॉ. अतुला भास्कर, डॉ. ज्योति गोगिया, डॉ. दीप्ति साहनी, डॉ. संजय चौहान, डॉ. दीपक कुमार, डॉ. अनुपात, डॉ. सीमा शर्मा, डॉ. सरोज शर्मा और स्वयं डॉ. किरण खन्ना ने, दिल्ली से डॉ. कमलेश सरीन ने, हैदराबाद से डॉ. पठान रहीम खान ने, उत्तर प्रदेश से डॉ. रुपाली दिलीप चौधरी ने, हिमाचल से डॉ रवि कुमार गौंड ने डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी के बहुत से महत्वपूर्ण कहानी संग्रहों, काव्य ग्रंथों, यात्रा वृतातों, भारतीय संस्कृति की संरक्षक कृतियों पर समीक्षात्मक, वर्णनात्मक, विश्लेषणात्मक आलेख लिखे हैं जिनके वृहद अध्ययन के पश्चात विशिष्ट वक्ताओं ने उपरोक्त निष्कर्ष प्रस्तुत किए और प्रस्तुत पुस्तक को डॉ. निशंक जी के साहित्यिक संवेदना व प्रासंगिकता को इंगित करती हुई महत्वपूर्ण सूचनात्मक पुस्तक बता कर डॉ. किरण खन्ना को उनके श्रमसाध्य संपादन के लिए बधाई दी।
इस आयोजन का एक और उल्लेखनीय नवाचारी पक्ष इसमें स्वयं सचेत साहित्यकार डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक जी की उपस्थिति और पुस्तक संपादक डॉ. किरण खन्ना सहित सम्पूर्ण लेखक वर्ग को उनके श्रमसाध्य लेखन के लिए हार्दिक आभार प्रकटीकरण युक्त सम्बोधन रहा। डॉ. निशंक जी ने लेखकों की सधी हुइ लेखनी, सम्पुष्ट भाषा शैली की प्रशंसा करते हुए कहा कि शब्द और विचार किसी भी लेखक की वास्तविक ताकत होते हैं। विचार उसकी संकल्प शक्ति को सशक्त करते हैं तो शब्द सार्थक व प्रासंगिक अभिव्यक्ति देने में उसे सक्षम बनाते हैं। संवेदनशीलता प्रत्येक साहित्यकार में होती है किन्तु उस की कलम को प्रौढता तीक्ष्णता और सार्थकता वह परिस्थितियाँ प्रदान करतीं हैं जिनसे वह साहित्य रूबरू होता है।जो परिवेश से उसे प्राप्त होता है वह उसी में से सृजन का स्त्रोत ढूँढ लेता है और अपने समाज का प्रतिबिंब बनता है।
डॉ. निशंक जी ने प्रतिष्ठित के साथ नवोदित लेखक समूह को आह्वान किया साहित्यकार को सदैव सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे संतु निरामया के आदर्श को आत्मसात कर लेखन करना होगा ताकि समाज पर कभी संकट का समय आएतो साहित्य समाज का मार्गदर्शन करने में समाज में परिवर्तन लाने में पूर्णतः समर्थ हो। डॉ निशंक जी ने डॉ. किरण खन्ना को बहुत सी नवोदित प्रतिभाओं को एक मंच पर इकट्ठा कर उनकी अभिव्यक्ति को एक पुस्तक रूप में प्रस्तुत कर देने की यात्रा को और इस दौरान की सम विषम परिस्थितियों को संयम से सार्थकता की तरफ ले जाने की दक्षता पर साधुवाद कहा और इसके लिए आभार भी व्यक्त किया।
श्री नारायण प्रसाद जी ने डॉ. निशंक को सक्रिय राजनीतिज्ञ और सजग साहित्यकार बताया जो वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान पुख्ता कर चुके और वैश्विक प्रतिष्ठित मंचों सम्मानित भी हो चुके हैं। कार्यक्रम का बहुत ही सुचारू संचालन दायित्व प्रसिद्ध कथाशिल्पी डॉ. अलका सिन्हा जी ने निभाया। डॉ. अलका जी ने प्रत्येक वक्ता के वक्तव्य को डॉ. निशंक जी द्वारा रचित काव्य पंक्तियों से सजाया और बहुत ही सम्मोहक शैली में सारे कार्यक्रम को संचालित किया।
सिंगापुर से डॉ. संध्या सिंह जी ने वैश्विक हिंदी परिवार के प्रतिष्ठित आभासी पटल पर इस कार्यक्रम को सफलतम रुप से आयोजित करने वाली पूरी आयोजन समिति का सादर व स्नेहिल धन्यवाद ज्ञापित किया तथा ऐसे कार्यक्रमों की निरंतरता का आह्वान किया जो एक ही मंच पर एक साहित्यकार के सृजन के विविध पक्षों से हम सभी को परिचित करवाने में सक्षम है। उन्होंने डॉ. निशंक जी का भी कार्यक्रम में उपस्थिति और संबोधन से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने पर हार्दिक आभार प्रकट किया और पुस्तक संपादन पर डॉ. किरण खन्ना को भी बधाई दी। यह कार्यक्रम बहुत सफल और सार्थक विमर्श के साथ समाप्त हुआ।