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हमारे आस-पास क्लाउड कम्प्यूटिंग विषय पर आभासी संगोष्ठी आयोजित


नागपुर/हैदराबाद/नई दिल्ली। केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से ‘हमारे आस-पास क्लाउड कम्प्यूटिंग’ विषय पर आभासी संगोष्ठी आयोजित की गई। 


आज का युग सूचना और प्रौद्योगिकी की क्रान्ति का युग है। इस क्षेत्र में नित नए अनुसंधान और प्रयोग अहर्निश जारी हैं। हमारे चारो ओर चल रही प्रौद्योगिकी क्रान्ति ने जीवन और जगत को बहुत प्रभावित किया है। सूचना तकनीकी मानव जीवन का एक अनिवार्य अंग बन गई है जो जाने अनजाने पल -पल प्रयुक्त हो रही है। हमारे आस-पास क्लाउड कम्प्यूटिंग का संजाल है। आज की रविवारीय शाम इसी विषय पर सजगता लाने, प्रगामी प्रयोग बढ़ाने तथा हिचक –झिझक दूर करने हेतु विशेष प्रौद्योगिकी कार्यशाला का आयोजन हुआ जिसमें खुलकर चर्चा हुई,समस्याएँ रखीं गईं और समाधान भी बताए गए। इस कार्यशाला से सैकड़ों श्रोता, प्रदत्त लिंक, यूट्यूब एवं फेसबुक आदि से जुडकर लाभान्वित हुए।   
    
चर्चा की प्रस्ताविकी में साहित्यकार और तकनीकीविद प्रो॰ राजेश कुमार ने रोज़मर्रा की जिंदगी में प्रौद्योगिकी की गहनता और विस्तार को रेखांकित करते हुए इसके विविध आयामों की चर्चा की। तदोपरांत केंद्रीय हिंदी संस्थान के भुवनेश्वर केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक प्रो॰ रंजन दास द्वारा अतिथि परिचय कराते हुए माननीय अध्यक्ष, विशिष्ट वक्ताओं एवं सुधी श्रोताओं से अपनेपन का अहसास कराते हुए शाब्दिक स्वागत किया गया तथा इस चर्चा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए तकनीकी को आत्मसात करने का आग्रह किया गया।  
    
भारत सरकार के गृह मंत्रालय के सहायक निदेशक एवं इस कार्यक्रम के एक आधार स्तंभ डॉ॰ मोहन बहुगुणा ने संयत भाव और तकनीकी शैली में संचालन की बखूबी बागडोर संभालते हुए क्लाउड कम्प्यूटिंग के आयामों के संबंध में ध्यान आकृष्ट किया और इसके प्रयोग को समय की मांग बताई। उन्होने भाषा और तकनीकी सेवियों के सत प्रयत्नों से संक्षेप में अवगत कराया और अध्यक्षीय अनुमति के साथ कार्यशाला के अतिथि वक्ता डॉ राजेश कुमार से प्रस्तुति देने का आग्रह किया। 
    
अपनी संयत शैली और स्पष्ट कथन में रंगीन पावर प्वाइंट प्रस्तुति देते हुए डॉ राजेश कुमार ने क्लाउड कम्प्यूटिंग को सोदाहरण समझाया और इससे होने वाले लाभ तथा कमियों की ओर ध्यान आकृष्ट किया। उन्होने कहा कि क्लाउड एक प्रणाली है जिसमें सर्वर, सॉफ्टवेयर, डाटाबेस, अप्लीकेशन और इंटरनेट से पहुँच आदि सम्मिलित है। कम्प्यूटिंग में कम्प्यूटर के माध्यम से सूचना, प्रबंधन, प्रक्रिया, संचार, लेख लिखना, सम्पादन करना और ई मेल आदि भेजना शामिल है। क्लाउड और कम्प्यूटिंग का समन्वय ही क्लाउड कम्प्यूटिंग है। इसके मुख्य उदाहरण 1- जूम, गूगल मीट और मीटिंग, टीम व्यूवर 2- वन ड्राइव ,गूगल ड्राइव और बाहरी ड्राइव आदि 3- बॉक्स जैसे कार्य प्लेटफॉर्म 4- ई मेल, संदेश –वाट्सऐप, टेलीग्राम आदि 5- सोशल मीडिया, फेस बुक, ट्वीटर, 6- ऑनलाइन सेवाएँ जैसे आवेदन, खरीद, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि । 
    
क्लाउड कम्प्यूटिंग से होने वाले फ़ायदों की चर्चा करते हुए डॉ राजेश कुमार ने बिन्दुवार बताया कि इससे कहीं भी और कहीं से भी प्रयोग में लाया और सहेजा जा सकता है।खोज और रिमाइंडर आदि सहज ही संभाव्य हैं। सॉफ्टवेयर का क्षेत्र व्यापक है। योजना, लेखन, सम्पादन आदि कार्यों में बहुत ही कम खर्च में वैश्विक मदद की जा सकती है। क्लाउड कम्प्यूटिंग की कमियों की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि इसके लिए इंटरनेट जरूरी है। सर्वर डाउन होने पर डाउनटाइम हो सकता है तथा निजता या गोपनीयता पर आँच आ जाती है।
      
निश्चय ही हम आज की बेतहाशा बढ़ती तकनीकी दुनियाँ में बनाए गए डॉकूमेंट्स को शेयर कर सकते हैं, लिंक भेज सकते हैं और कमेन्ट की सुविधा भी दे सकते हैं। इससे संशोधन के इतिहास का भी पता चल सकता है और लोग एक दस्तावेज़ पर एक साथ या सीमा निर्धारण कर कार्य कर सकते हैं। कम्प्यूटर की दुनियाँ से जुड़ी कंपनियाँ बहुत सजगता से काम कर रही हैं। 
     
रेल मंत्रालय के पूर्व निदेशक डॉ॰ विजय कुमार मल्होत्रा ने कहा कि आजकल सामान्य तौर पर तकनीकी से हम जो कुछ भी कर रहे हैं वह क्लाउड ही है और क्लाउड में चला जाता है। अमेरिका से तकनीकीविद श्री अनूप भार्गव कहना था कि आधुनिक समय में वर्चुअल रियलिटी पर अथाह काम हो रहा है जो स्वागत योग्य है। शिमला से डॉ चन्द्रकान्त पाराशर का मत था कि हम क्लाउड को गगन वारि आदि की संज्ञा दे सकते हैं। वरिष्ठ पत्रकार एवं इस कार्यक्रम के मुख्य मार्गदर्शक श्री राहुल देव ने कहा कि क्लाउड और आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस एक साथ समन्वय से काम करने लगे हैं। उन्होने आशंका प्रकट की कि कहीं हम तकनीकी अधिनायकवाद या टेक्निकल डिक्टेटरशिप की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं। डॉ सुरेश मिश्र का कहना था कि कम्प्यूटर पर हमारी चाहत का नाजायद फायदा नहीं उठाया जाना चाहिए। 
     
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए भारत में माइक्रोसॉफ्ट के निदेशक एवं अंतरराष्ट्रीय ख्याति अर्जित तकनीकी विद्वान श्री बालेंदु शर्मा दाधीच ने कहा कि आधुनिक समय में क्लाउड के भीतर भी क्लाउड है। अन्य कम्प्यूटरों की शक्ति को एक साथ इस्तेमाल कर ग्रिड कम्प्यूटिंग से साझा शक्ति भी बढ़ाई जा रही है। वर्चुअल माध्यम से सीमाएँ टूट रही हैं। भविष्य में क्लाउड से काम होने की अपार संभावनाएं हैं। हिन्दी संबंधी आधुनिक सुविधाएं भी क्लाउड से ही संचालित हो रही हैं और नेट पर उपलब्ध सामाग्री का असीमित उपयोग हो रहा है। आजकल क्लाउड सेवाएँ निर्धारित समय के भुगतान पर भी चलन में हैं जो काफी किफ़ायती भी हैं। 

उन्होने सोदाहरण समझाया कि क्लाउड में इंफ्रास्ट्रकचर, प्लेटफॉर्म और सॉफ्टवेयर का मेल है। हम इससे विभिन्न प्रकारों से वैकल्पिक रूप में लाभान्वित हो सकते हैं। इसके तीन बड़े प्रकार हैं- पब्लिक क्लाउड, प्राइवेट क्लाउड और हाइब्रिड क्लाउड। इनकी अधिकाधिक क्षमता से बहुत कम खर्च में काम चलाया जा सकता है। डेटा आदि की उच्च कोटि की सुरक्षा सेवाएँ आदि भी उपलब्ध हैं। कभी- कभी काम अधिक होने से गति धीमी होना स्वाभाविक है। रक्षा आदि सेवाओं में हम मिली सेकेंड में भी कहीं से जवाब दे सकते हैं। हम एज (ईडीजीई) और कंटेनराइज़ क्लाउड से क्षेत्र विशेष की सीमा निर्धारित कर अनेक समाधान पा सकते हैं। उनकी मनसा थी कि हमें प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग से बचना चाहिए। 

इस कार्यक्रम में पद्मश्री डॉ. तोमियो मीजोकामी,जापान ,श्री अनूप भार्गव ,अमेरिका, दिव्या माथुर व पदमेश गुप्त तथा अरुणा अजितसरिया, यू॰के॰, शिखा रस्तोगी, थाइलैंड, विवेक मणि त्रिपाठी, चीन, प्रो॰ संध्या सिंह, सिंगापुर एवं भारत से जवाहर कर्नावट, विजय कुमार मल्होत्रा, वागीश गौतम, ज्योतिर्मयी पाणिग्रही, दलपत सिंह, राजलक्ष्मी कृष्णन, चंद्रमोहन रावल, डॉ. गंगाधर वानोडे, राजवीर सिंह, सुशांत महापात्रा, शैलेश शुक्ल, विजय कुमार मिश्रा, हरिराम पंसारी, किरण खन्ना, सुषमा देवी, सरिता पाण्डेय, मणिकांतम, ओम प्रकाश अग्रवाल आदि की विशेष उपस्थिति रही।
      
लंदन के ऑक्सफोर्ड से जुड़े वैश्विक हिन्दी परिवार के अंतरराष्ट्रीय संयोजक प्रोफेसर पद्मेश गुप्त जी का मन्तव्य था कि क्लाउड कम्प्यूटिंग आदि के उपयोग से हम भारतीय संस्कृति एवं ज्ञान परंपरा से जुड़े ग्रन्थों आदि को सहेजकर दीर्घकालिक व्यापक वैश्विक लाइब्रेरी बना सकते हैं और इसके दुरुपयोग और संभावित हानियों पर अलग से चर्चा आयोजित कर सकते हैं। उन्होने अपनी ओजपूर्ण, हर्षोल्लासमयी वाणी में माननीय अध्यक्ष एवं  अतिथि वक्ताओं के प्रति आभार प्रकट किया। उनके द्वारा  इस कार्यक्रम से देश-विदेश से जुड़ी संस्थाओं एवं व्यक्तियों का नामोल्लेख सहित आत्मीय ढंग से विशेष आभार प्रकट किया गया। अनुभवी विद्वान एवं विरासती संस्कृति के धनी डॉ॰ गुप्त  ने हिन्दी का वैश्विक गौरव बढ़ाने और इस कार्यक्रम से जुड़े सभी श्रोताओं, अभिप्रेरकों, संयोजकों, मार्गदर्शकों तथा विभिन्न टीम सदस्यों के प्रति हृदय से आभार प्रकट किया।

कहना न होगा कि समूचे कार्यक्रम के विविध पक्षों का शालीन संयोजन, हर सप्ताह की तरह आदरणीय अनूप भार्गवजी (अमेरिका), पदमेश गुप्तजी (लंदन), डॉ संध्या सिंह (सिंगापुर), डॉ जवाहर कर्नावट, डॉ राजेश कुमार, मोहन बहुगुणा आदि ने श्री अनिल शर्मा जोशी जी के मार्गदर्शन में बखूबी संभाला एवं भाषा संचेतना के साथ तकनीकी दक्षता बढ़ाने हेतु विश्व भाषा हिंदी का मार्ग प्रशस्त किया। यह कार्यक्रम यू-ट्यूब आदि पर भी उपलब्ध है।  
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