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हार्श रीऐलिटीज़ : हरीश मरीवाला के संघर्ष की पूर्ण पारदर्शिता


यह पुस्तक में हरीश मरीवाला ने बताया कि जीवन के मूल्य विश्वास बनाते हैं, विश्वास आपका बर्ताव बनता है, जो आपकी पहचान स्थापित करता है।
प्रत्येक सफल व्यक्ति के पीछे छुपे हुये संघर्ष से संसार अन्जान रहता है। दूध से घी बनाने की मंथनकारी प्रक्रिया होया पत्थर को तराशने की वेदना से मूर्ति बनने की सृजनता हो, ऐसी ही सच्चाई मरीको इंडस्ट्रीस (पैराशूट कोकोनट ओईल) के श्री हरीष मरीवाला के जीवन की कहानी है। 

1971 से 1990 तक संयुक्त परिवार के हिस्सों बॉम्बे ऑईल इंडस्ट्री की कमान संभालने के पश्चात अपनी सूझबूझ सेमैरिको इंडस्ट्रीज के बैनर नीचे काम करना एक बेहद चुनौतिपूर्ण एवं कुशलता का परिचायक है। मरीको इंडस्ट्रीस के चेअरमन श्री हरीश मारिवाला ने अपनी पुस्तक 'हार्श रीऐलिटीज़' में अपने किए संघर्ष को पूर्ण पारदर्शिता से प्रस्तुत किया। यह पुस्तक एक आदर्श प्रस्तुत करती है। एक उद्यमी के लिये कर्मठता एवं जिमेदारियों के समुंदर  मे ज्वार- भाटे की तरहआये प्रत्येक अनुभव साझा किए हैं। 

प्रत्येक निर्णय के पीछे एक संघर्ष, दूरदृष्टिता, आत्मविश्वास की झलक स्पष्ट रूप सेपरिदर्शित होती है, चाहे फिर वह टिन पैकिंग से प्लास्टिक पैकिंग में परिवर्तन हो सभी रिपोर्टस एवं निष्कर्षों से कि केरल मेंउत्पादन कारखाना लगाना एक आत्मघाती निर्णय होगा उसे अपनी ईमानदारी एवं स्पष्ट सोच के साथ गलत सिद्ध करना, पारिवारिक बँटवारे का विषम आर्थिक परिस्थितियों वाला समय, सही व्यक्तियों का समुच्यय बनाना एवं कालचक्र की परिस्थितिजन्य उनकी सौहाद्रपूर्वक बिदाई, हिन्दुस्थान लीवर की चुनौती 'पॅराशूट ब्राण्ड' को खरीदने से रोकना ही नहींअपितु उसी के ब्रॅन्ड 'निहार' को आकर्षक दामों में खरीद लेना शेर के जबड़े से शिकार छीनने वाला निर्णय, नये उत्पादनोका हिचकीलों वाला सफर, शेअर बाजार में ओवर सब्स्क्रिप्शन 'कराना, विदेशी जमीं पर उपस्थिति एवं उत्पादन (निर्माण), व्यावसायिक कंपनी बोर्ड का गठन, सामाजिक दायित्व एवं नारियल उत्पादन करने वालों किसानों का हित के साथ: साथ राष्ट्रीय कर्तव्य का निर्वाह, अंतिम लेकिन महत्वपूर्ण किस प्रकार एक परिवार आश्रित कंपनी के निर्देशक पद से हटकरपरिवार से बाहरी व्यक्ति को निर्देशक बनाना भावनाओं एवं कर्मठता के बेहतरीन संतुलन का अद्भुत आदर्श प्रस्तुत कियाहै। 

जीवन में विन-विन, अर्थात दोनों पक्षों को यह एहसास बना रहे कि उन्होंने बिना कुछ समझौता किए आधा रास्ता प्राप्तकर लिया, सिद्धांत प्रतिपादित किया है। 1971 में कमान संभालने के समय के - 50 लाख के सालाना व्यवसाय को 2014 में निर्देशक पर छोड़ते समय 4687 करोड़ के राजस्व जिसका शुध लाभ 485 करोड़ रुपये तक पहुँचाया एवं जिसकामार्केट कॅप 13,517 करोड किया इस सफर में अपने सभी सहयोगियों एवं जीवनसंगिनी के सहयोग एवं त्याग के प्रतिअपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुये यह पुस्तक सभी वर्गों के लिये समर्पित एवं पठनीय है।


- जितेंद्र शर्मा 
पुस्तक समीक्षक 
देवनगर, नागपुर (महाराष्ट्र)
कथा 8668552357961519123
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