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मन को मुग्ध कर देने वाला स्वरूप रीतिकाल में : डॉ. मलिक


नागपुर/पुणे। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान के तत्वावधान में विषयः 'रीतिकाल की अवधारणा' पर अपना मंतव्य देते हुए प्रो.( डॉ.) सुचित्रा मलिक, अध्यक्ष हिंदी विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय,  हरिद्वार, उत्तराखंड ने कहा- रीति काल में हमें सिर्फ श्रंगारिकता ही नहीं बल्कि काव्य शास्त्रीय तत्व,  काम शास्त्रीय तत्व नीति शास्त्रीय तत्व, दर्शन शास्त्र, भक्ति , वैराग्य, ज्योतिष शास्त्र आदि के तत्व भी मिलते हैं। विद्वत्ता प्रदर्शन की बौद्धिक नीति भी इस काल में दिखाई देती है।

प्रो. (डॉ.) सुनीता मोटे, स्नातकोत्तर हिंदी विभाग एवं अनुसंधान केंद्र, न्यू आर्टस्, कामर्स एण्ड सायन्स कॉलेज, अहमदनगर, महाराष्ट्र ने कहा- रीतिकाल में विशिष्ट पद्धति से की हुई काव्य रचना और अनुसरण करके साहित्य का निर्माण किया गया।  इस काल को श्रृंगार काल कहना भी उचित है।  रीतिकालीन साहित्य को लेकर पुनरावलोकन होना आवश्यक है।

प्रो. राबन मुल्ला, हिन्दी विभाग, डी.पी. महाविद्यालय, कोरेगोन, महाराष्ट्र ने कहा - रीति काल सामाजिक दृष्टि से अद्योपतन का काल था।  उसका कारण विलासिता रहा । रीति काल में एक ओर कवि कविता लिखते थे और दूसरी और  लक्षण ग्रंथों की रचना की।
अध्यक्षीय भाषण में डॉ. शहाबुद्दीन नियाज़ मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र, ने कहा - रीतिकाल के रीतिमुक्त कवि भी कहीं न कहीं रीति से बंधे हुए थे।

संस्थान सचिव डॉ. गोकुलेश्वर द्विवेदी जी द्वारा राजस्थान के 2014 से 2021 तक हिंदी सांसद रहे स्व. डॉ. वली उल्ला खाँ फरोग जी के बारे में अपनी यादों को सभी के साथ मिलकर सांझा किया।  उसके बाद 2 मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. रश्मि चौबे,  प्रतिनिधि गाजियाबाद, राष्ट्रीय बाल सांसद प्रभारी ने किया।
कार्यक्रम की शुरुवात श्रीमती पूर्णिमा मालवीय ,  उ. प्र.द्वारा सरस्वती वंदना से हुई। स्वागत भाषण श्रीमती रश्मि लहर,  लखनऊ, उ. प्र. द्वारा किया गया।

कार्यक्रम के अंतर्गत श्रीमती मणि वैन द्विवेदी,  वाराणसी, रायबरेली,  उ. प्र. ने कविता सुनाई। आभार: श्रीमती पूर्णिमा मालवीय ने व्यक्त किया।

कार्यक्रम में डॉ. भरत शेणकर महाराष्ट्र, श्रीमती रोहिणी डाबरे, डॉ.मुक्ता कान्हा कौशिक, जगबीर सिंह, श्री ओमप्रकाश त्रिपाठी जी आदि अन्य अनेक गणमान्य उपस्थित रहे।

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