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स्पर्श...


तेरा अनछुआ स्पर्श अभी
तक ना जाने कैसे रखा है वहीं 
तुम मिलो तो तुम्हें छूकर बताऊं

तुम्हारे अनछुए स्पर्श से
ना जाने कैसे कोमल किसलय
पत्तियां तो कलियां खिल आयी हैं ..
खयालों के भवरें मंडराने लगे हैं
तुम आओगे तो यह ले जायोगे
रुहे स्पर्श कैसे ले जा पाओगे.?

कैसे कह दूँ कि तुमने छुआ नहीं..
तुम्हारे अनछुए स्पर्श की भाषा
जगा जाती है चाहत भरी
ख़्वाहिशें यूँ ही कहीं...!!

मेरी आयु से परे
बेपनाह सुन्दरता की
व्याख्या सी करती कहीं...!!
मने - गुलज़ार को महका
जाता है कहीं...
तेरे शब्दों का खुशबू -ऐ -स्पर्श...!!

गुदगुदा जाता है मन को कहीं
तेरा वह स्पंदने- यादें- स्पर्श ..!!
तो कहीं मीठी सी
वेदना से कर देता है विकल
वह तेरा चुपचाप -अंतर्मने - स्पर्श...!!

बिन कहे ही कैसे हाले दिल
 बयां कर जाता है
मिट्टी की सोंधी खुशबू सा
तेरा वह बरसाते - स्पर्श..
 तो कभी खुद मुझको मुझसे ही
मिलाता है वह
तेरा ज्ञाने जीवन स्पर्श..!!

मेरी हर तमन्ना को कहीं
पंखे -उड़ान - दे जाता है 
दिले-बेताबी सा कहता 
वह तेरा आसमाने - स्पर्श..!!

जाएं - कहीं भी..
पर हों वह रास्ते मंज़िल..
दिन में भी यूँ कहीं
नित - नए - ख्बाब -बुनना 
सिखाता- वह तेरा सपने - स्पर्श..!!

मेरा अपना सच्चा
प्रतिबिम्ब मुझको दिखाता
दिले हालत बयां सा करता
तेरा - वह - रूहे - स्पर्श...!!
हमारे अहसास का यह स्पर्श...!!

- सुनीता शर्मा 
आर्कलैंड (न्यूजीलैंड)
काव्य 3332163380923897497
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