रमजान वाइब्स: काश! हर इंसान आत्मसंयम से उस दिव्यशक्ति को खुश कर सके
इन दिनों रमजान का पाक महीना चल रहा है और दुनिया भर में मुस्लिम धर्म के अनुयायी रोज़ा के ज़रिये अल्लाह मियां की इबादत में ध्यान लगाए हुए हैं। अगले हफ्ते नीले अम्बर पर ईद का चांद दिखाई देते ही रोजा रखने का अनुष्ठान समाप्त हो जायेगा और चारों तरफ़ ईद का जश्न होगा। लोग अपने आपसी मतभेद भुलाकर, दिलों से नफरत का त्याग कर अपने अज़ीज़ों से गले मिलेंगे, और न जाने कितने सारे टूटे रिश्ते जुड़ेंगे, हल्के पड़े रिश्ते मजबूत होंगे, कुछ नए खूबसूरत इंसानी रिश्तों का शंखनाद होगा और लोगों के अन्दर से कई बुराईयां दूर होगी। बिल्कुल वैसे ही जैसे दुर्गा नवरात्री से लेकर विजयादशमी तक, फिर दशहरे के 20 दिन बाद आती है दिवाली और उस एक महीने में न जाने कितनी खुशी व उत्सव का वातावरण होता है।
वैसे तो उस दिव्य शक्ति पर आस्था रखने वाले लोग प्रति दिन नाम सुमीरन करते हैं और मन, वचन, कर्म से ईश्वर के प्रति समर्पण व उनके इशारों के प्रति ध्यान रखते हैं लेकिन विभिन्न धर्मों में परंपरागत मान्यताओं का भी अपना विशेष महत्व होता है और सामूहिक इबादत से भरपूर सकारात्मक ऊर्जा निर्मित होती है जिससे मानव समाज के अंदर व सम्पूर्ण वातावरण में प्रेम व भाईचारा प्रगाढ़ होता है इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता।
रमजान में इबादत, व्रत, उपवास, रोज़ा की बात से मुझे अपने कुछ अज़ीज़ मुस्लिम दोस्तों से प्राप्त दिलचस्प जानकारियों पर, गहन चिंतन मन में आता है। स्कूल से लेकर कॉलेज और अब उम्र के इस पड़ाव तक कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि हमने ईद की सेवई का लुत्फ़ न उठाया हो। कहने का मतलब अतीत के पन्नों से लेकर वर्तमान पर नज़र डालूं तो हर उम्र में कुछ अज़ीज़ मुस्लिम दोस्त हुए ही हैं और उनके सानिध्य में कभी ऐसा नहीं हुआ की इस पाक महीने को नज़रंदाज़ किया जा सके या इसके असर से महरूम रहे। इस दरमियान उन दोस्तों का ख्याल मन में आना स्वाभाविक है, और जब भी उनसे मुलाक़ात हो या फ़ोन वार्ता हो तो रोजा का ज़िक्र होते ही रमजान का पवित्र वाइब्स मिलना ही है। हालांकि इस तरह की दिव्य अनुभूतियों के लिए निर्मल मन व आत्मीयता के साथ ग्राही के रूप में खुद को प्रस्तुत करने में सक्षम होना बेहद आवश्यक है।
इसके लिए मैं खुद को अत्यंत भाग्यशाली समझती हूँ, और अब तो विधाता ने माँ सरस्वती साधक के रूप में, कलम हाथ में थमाकर, समाजसेवा की अहम जिम्मेदारी भी सौंपी है इसलिए मानवता व राष्ट्रीयता को आत्मसात किये हुए उसी का प्रचार-प्रसार ही जीवन का, एक मुख्य ध्येय बन चुका है। इसलिए आत्म संयम के विभिन्न माध्यमों से, तन मन व आत्मा को पवित्र करने के साथ, दुनियादारी की कई गलत हरकतों को पूरी तत्परता के साथ काबू में रखते हुए अंतर्दृष्टि के साथ साधना पर ध्यान केंद्रित करते हुए उस परवरदिगार को शुकराना अदा करना एक-एक इन्सान का फर्ज होना चाहिए। इस भीषण गरमी में तपता हुआ पत्थर जैसे चमकता है काश हम सभी आत्म संयम से रूह को पवित्र करने के साथ उस दिव्यशक्ति को खुश कर सकें और उनके दिये अपने इस अस्तित्व को सार्थक बना सकें। इन्हीं पवित्र भावनाओं के साथ, इसी उम्मीद के साथ समस्त आवाम को ईद-उल-फितर 2022 की दिली मुबारकबाद। हर एक इन्सान का मुकद्दर इतना रोशन हो कि उसकी सभी जायज तमन्नाएं पूरी हो, हर दुआ कबूल हो।
- शशि दीप
विचारक/ द्विभाषी लेखिका
मुंबई
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