Loading...

स्त्री...


दुनिया नही जानती जो स्त्री हिम्मत से लड़ी है
हकीक़त में अपने पैरों पर किस तरह खड़ी है

चेहरे की मुस्कुराहट देखते हैं ये दुनियावाले
किसे पता कितने आँसुओं की छुपी लड़ी है

ग़म पीने की अदा में नायिका से कम नहीं
हर एक में नर्गिस मीना की सी छाया पड़ी है

नज़ाकत जिस्म की यूँ तो अब भी बाक़ी है
कितने मोर्चों पर सैनिकों सी सदा ये लड़ी है

दुर्गा सरस्वती लक्ष्मी देवी जैसी मूरतों में
गढ़े इन झूठे रूपों से बहुत-बहुत बड़ी है

भारत की यह नारी अबला नहीं कहीं भी
देश के ताज़ पर शक्ति - रत्न बन जड़ी है

- रीमा दीवान चड्ढा
नागपुर, महाराष्ट्र

काव्य 1400586453344812456
मुख्यपृष्ठ item

ADS

Popular Posts

Random Posts

3/random/post-list

Flickr Photo

3/Sports/post-list