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शोध प्रारूप शोध का आधार स्तंभ है : डाॅ. सरस्वती वर्मा



नागपुर/पुणे। शोध प्रारूप शोध का आधार स्तंभ है, जो शोध को सही दिशा दिखाता है तथा योजनाबद्ध तरीके से हम अपना शोधकार्य पूर्ण करते हैं। ये विचार डाॅ. सरस्वती वर्मा, हिंदी विभागाध्यक्ष, शासकीय माता कर्मा, कन्या महाविद्यालय महासमुंद, छ. ग. ने व्यक्त किये। 'शोध प्रबंध लेखन' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी कार्यशाला में वे उद्बोधन दे रही थीं। मराठवाडा शिक्षण प्रसारक मंडल के श्री मुक्तानंद महाविद्यालय, गंगापुर, जिला औरंगाबाद की ओर से इस कार्यशाला का आयोजन किया गया था। 

डाॅ. सरस्वती वर्मा ने आगे कहा कि, शोध रूपरेखा के महत्वपूर्ण घटक हैं - प्राप्त सूचनाओं के स्रोत अध्ययन की प्रकृत्ति, शोध अध्ययन का उद्देश्य, सामाजिक व सांस्कृतिक परिस्थिति, सामाजिक कालिक संदर्भ, अध्ययन के आयाम और निर्देशन कार्यविधि तथ्य संकलन के प्रयुक्त तकनीक आदि है।

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष डाॅ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि शोध एक उच्च कोटि की साधना है। शोधार्थी एक साधक है। शोध प्रबंध को पूर्वभाग, मध्यभाग तथा  पश्च भाग में विभिजित कर सकते हैं। शोध प्रबंध लेखन एक वैज्ञानिक तकनीक है। शोध का मुख्य आधार तथ्याख्यान और तथ्यान्वेषण है। भूमिका या प्रस्तावना, विषय सूची, विषय प्रवेश उपसंहार तथा परिशिष्ट की स्थितियों से गुजरकर शोधकार्य संपन्न होता है। 

डाॅ. जैनब बी, धर्ममूर्ति रावबहादूर कलवल कण्णन चेट्टी हिंदु महाविद्यालय, पट्टाभिराम चैन्नई, तमिलनाडु ने  तुलनात्मक अनुसंधान पर मंतव्य में कहा कि, प्रत्येक शोधकार्य सत्य की खोज और स्थापना का अनुष्ठान है। तुलनात्मक शोध दो या दो से अधिक आयामों वाला होता है। तुलना किसी दो भाषाओं या साहित्यों की होती है। तुलनात्मक अध्ययन में शोधार्थी और निर्देशक का सामंजस्य अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। शोधार्थी की मानसिकता अधिक तटस्थ या पूर्वाग्रह मुक्त होनी चाहिए।सामान्य शोध कार्य की अपेक्षा तुलनात्मक शोधकार्य कठिन होता है। शोधार्थी को विवरणात्मक बिखराव से बचना चाहिए। 

कार्यशाला के उद्घाटन में श्री मुक्तानंद महाविद्यालय, गंगापुर के प्राचार्य डाॅ. बाळासाहेब पवार ने कहा कि शोध एक निरंतर व अविरत चलनेवाली प्रक्रिया है। शोध करना जरूरी नहीं है पर गुणात्मक शोध होना बहुत जरूरी है। प्रारंभ में महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्षा तथा कार्यशाला की संयोजिका डाॅ. मीना खरात ने कार्यशाला के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए प्रास्तविक भाषण दिया। महाविद्यालय की उपप्राचार्या डाॅ. वैशाली बागुल कार्यशाला में विशेष रूप से उपस्थित थीं। 

डाॅ. प्रताप मिसाळ ने अतिथि परिचय प्रस्तुत किया। डाॅ. रितांजली शिंदे-जाधव ने कार्यशाला का सुंदर व सफल संचालन किया तथा डाॅ. अमोल थोर ने धन्यवाद ज्ञापन किया। प्रतिभागियों में डाॅ. सैबा शिरिन, औरंगाबाद, डाॅ. मुख्तार शेख, बिडकिन, दशरथ पाटिल, नीलिमा बनकर सहित अनेकों का समावेश रहा।
साहित्य 8763166060630402960
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