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वायु, ध्वनि, जल प्रदुषण से बचाव के व्यापक उपाय जरुरी


ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरूकता समय की मांग

नागपुर। वायु, धुआं, ध्वनि, जल प्रदूषण ग्लोबल वार्मिंग के महत्वपूर्ण कारण हैं। परमार्थ, खुशियों के लिए समय समय पर पटाखों, लाउड स्पीकर का प्रयोग किया जाता रहा है। आज 24 घंटों में से 6 घण्टो को छोड़कर पटाखों, लाउडस्पीकर के प्रयोग से वायु और ध्वनि प्रदुषण से श्वास की बीमारी, कान के बहरेपन की ज्यादा घटनाएं दुर्घटना का रूप ले रही है। 

नाक, कान, गला विशेषज्ञ डॉ. नरेश अग्रवाल के अनुसार वर्तमान समय में पटाखों की तेज आवाज से जहाँ कान के मरीज बड़ी संख्या में आ रहे है। वहीँ हवा, जल प्रदूषण से गले और नाक की बीमारियां भी बढ़ने लगी है। पिछले अनेक वर्षों से ध्वनि प्रदुषण लाउड स्पीकर्स से हो रहा है। विशेषकर त्यौहार, खुशियों के मौके के साथ पोलिटिकल रैली, धार्मिक, परमार्थ के कार्यों के दौरान लाउड स्पीकर की तेज़ आवाज़ से कान के पर्दों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। 

जहा एक तरफ रात्री 10 बजे के बाद पटाखों नहीं फोडने के निर्देश राज्य सरकार द्वारा दिए जाते है। साथ ही लाउड स्पीकर नहीं बजाने के भी समय रात 10 बजे से लेकर सुबह 7 बजे तक यदि तय किये जाए। तो कुछ हद तक ध्वनि और वायु प्रदुषण से शहर, गांव और कस्बों के नागरिकों को राहत मिल सकती है। आज हमारे देश में पश्चिमी देश का अनुसरण किया जा रहा है। पिछले 75 वर्ष से न्यू इयर्स आगमन पर 12 बजे मध्यरात्री में पटाखों के साथ टेप रिकॉर्डर्स, लाउड स्पीकर्स, म्यूजिकल नाईट से भी ध्वनि और वायु प्रदुषण हो रहा है।

जल प्रदूषण भी कर रहा है काफी नुकसान, हमारे देश में उद्योग से वापरे गए प्रदूषित जल नदियों में प्रवाहित किये जा रहे है। फलस्वरूप पीने के पानी में घुलनेवाले रसायन हमारे शरीर के लिए नुकसानदायक है। जिससे गला, मुख, फेफड़े के रोग भी तेजी से फैल रहे है। अब जबकि विश्व में  माहामारी का दौर चल रहा है। ऐसे समय विशेषज्ञ डॉक्टर्स की सलाह है कि शुद्ध पानी का ही पिने के लिए उपयोग किया जाये।

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