जड़ को चेतनता प्रदान करने वाली ऋतु है बसंत : हरेराम वाजपेई
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नागपुर/पुणे। भारत अनंत पर्वो और त्योहारों का देश है। सभी पर्व किसी न किसी पौराणिक आधार पर होते हैं पर बसंत पंचमी पर्व प्रकृति से सीधे जुड़ने का पर्व होता है। वसंत ऋतु जड़ को भी चेतनता प्रदान करने वाली ऋतु है। भारत का यह पर्व विश्व को प्रकृति से प्रेम करने का संदेश देता है साथ ही प्रकृति प्रेम और विद्या की त्रिवेणी के दर्शन कराता है।
इस अवसर पर मां वीणा पाणी की आराधना के साथ हिंदी के महाकवि महाप्राण निराला को याद किए बिना पर्व की पूर्णता नहीं होती है। उपर्युक्त वक्तव्य साहित्यकार हरेराम वाजपेई ने बतौर मुख्य वक्ता राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के द्वारा आयोजित निराला जयंती और वसंत पंचमी पर व्यक्त किए गए।
श्री वाजपेई ने आगे कहा निराला की सरस्वती वंदना और राम की शक्ति पूजा सभी में परतंत्रता से मुक्ति का आवाहन है। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पुणे से डॉ. शहाबुद्दीन शेख ने कहा कि भारतीय संस्कृति संस्कारों और पर्वों की है और वह भी वैज्ञानिक आधार लिये होती हैं उनमें राष्ट्रीय एकता का संदेश हमें मिलता है। इस आभासी गोष्ठी में रायपुर की डॉ. अनुसुया अग्रवाल ने वसंत ऋतु के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कई कवियों की रचनाएं उद्धृत की। गरिमा गर्ग, सुवर्णा जाधव, डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक तथा सपना साहू ने वसंत ऋतु पर अपनी रचनाएं सुनाई।
स्वागत भाषण राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष सुवर्णा जाधव ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की प्रस्तावना देते हुए संस्था महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने अपने उद्बोधन में कहा कि - बसंत पर्व खुशियों के शुभारंभ का दिवस होता है। इसी शुभ दिवस पर गायत्री परिवार के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का आध्यात्म्कि जन्म होता है। माँ वाग्देवी सरस्वती जी का प्राकट्य दिवस होने से नवीन विद्यार्थियों का विद्यारम्भ संस्कार होता है। आज ही के दिन प्रकृति के चितेरे महाकवि पं. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी का जन्म दिवस रहता है। हम ज्ञान की त्रिवेणी की स्मृति का सादर वंदन करते है।
संचालन रोहिणी डावरे ने किया एवं आभार रायपुर की डॉ. मुक्ता कौशिक ने व्यक्त किया। इस अवसर पर देश के अनेक क्षेत्रों से संस्था के सदस्यों ने अपनी सहभागिता की एवं वसंत पर्व की शुभकामनाएं एक दूसरे को प्रदान की।