वाइन हो या शराब... करती है शरीर, परिवार और समाज को बर्बाद
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महाराष्ट्र सरकार नेे सुुपर बाजार और वॉॅक-इन स्टोर में वाइन की बिक्री को मंजूरी देकर एक बड़ी बहस को आगे कर दिया है। इसका सीधा असर युवाओं और छात्रों के भविष्य पर पड़ेगा और शराब की बिक्री को भी बढ़ावा मिलेगा। कहीं स्वाद के लिए इसे शराब में मिश्रित कर तो कहीं नशे के लिए इसे अधिक मात्रा में पिया जाने लगेगा । कहा जा रहा है कि महिलाओं में इसका सेवन अधिक बढ़ जाएगा।
वाइन भी एक प्रकार की शराब ही है, भले ही इसमें एल्कोहल की मात्रा कम होती हो। यह बियर की तरह नशीले पदार्थों की पहली सीढ़ी बन जाएगी। वाइन सेवन के दूरगामी परिणामों के अंतर्गत अन्य शराबों की बिक्री में बढ़ोतरी भी आ जाएगी। जिस समय शराब की दुकान में बंद रहेंगी उस समय इसे नशे के लिए अधिक मात्र में पिया जाएगा।
वाइन पीने के 54 मिनट बाद रक्त में अल्कोहल की मात्रा सबसे अधिक होती है और बीयर पीने के 64 मिनट बाद अल्कोहल की मात्रा रक्त में सबसे ज़्यादा होती है। यानी वाइन के ग्लास का नशा बीयर के पाइंट के मुक़ाबले अधिक तेज़ी से दिमाग पर चढ़ता है। देखा जाए तो वाइन (इस शराब को बनाने में फल के रसों का प्रयोग किया जाता है जिसमें अंगूर प्रमुख है), रम, व्हिस्की, बीयर, ब्रांडी, वोदका, शैम्पेन आदि शराब का ही परिवार है। इनके पीने से शरीर, परिवार और समाज पर मिलते-जुलते बहुत घातक प्रभाव पड़ते हैं। शराब के संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में करीब 14 करोड़ लोग शराब निर्भरता से ग्रस्त हैं।
शराब के मनमाने इस्तेमाल से किसी भी देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को एक से छह प्रतिशत तक का आर्थिक नुकसान होता है। एक आकलन के अनुसार पिछले 10 साल में महाराष्ट्र में शराब की खपत में 15% की बढ़ोतरी हुई है। महाराष्ट्र में वर्ष भर में 30,327 करोड़ लीटर देशी शराब और 60 से 70 करोड़ लीटर विदेशी शराब बेची जाती है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सर्वे के अनुसार शराब पीने के मामलों में तमिलनाडु के लोग पहले, हरियाणा के दूसरे और महाराष्ट्र के तीसरे स्थान पर हैं।
अनेक लोग शराब के गंभीर परिणामों से तो परेशान हैं हीं, वाइन के भी दूरगामी परिणाम सामने आने लगेंगे। इसीलिए महाराष्ट्र के विभिन्न संगठनों में जमाअत ए इस्लामी हिंद महाराष्ट्र, मराठा सेवा संघ, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति, अन्नपूर्णा सामाजिक संगठन, भ्रष्टाचार निरोधक जन आंदोलन ट्रस्ट, नालंदा बहुउद्देश्यीय सामाजिक संगठन, मिशन वात्सल्य, रमई फाउंडेशन आदि राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। राज्य में शराब छुड़ाने के लिए कई व्यवसन मुक्ति केंद्र चलाए जा रहे हैं।
महिलाएं गांवों, शहरों में शराब की दुकानें बंद कराने के लिए आंदोलन कर रही हैं। प्रशासन स्तर पर भी जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इन सबका उद्देश्य यही है कि शराबी किसी भी प्रकार की शराब का सेवन हमेशा के लिए त्याग दें। ऐसे में वाइन को सामाजिक मान्यता देने की कोशिश दुर्भाग्यपूर्ण है। यह निर्णय आम जनता को नशे की लत में डुबाने जैसा है।
महात्मा गांधी ने ऐसी (शराब बिक्री जैसी) व्यवस्था मिटाने के लिए भरसक प्रयास किए थे। उन्होंने यहां तक कहा था कि मदिरा की दुकानें बिना मुआवजे के बंद करवा दी जाएंगी। मार्च 1956 में लोकसभा में यह प्रस्ताव पारित हुआ था कि द्वितीय पंचवर्षीय योजना में शराब बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। योजना आयोग इसका एक फार्मूला तैयार करेगा, जिसे पूरे देश में तीव्रता के साथ प्रभावकारी रूप से लागू किया जा सकेगा। इस संबंध में योजना आयोग ने किसी सीमा तक व्यावहारिक ढांचा भी तैयार किया था। उस समय कुछ राज्यों ने मद्य निषेध को लागू कर दिया था। लेकिन छुपकर इसकी बिक्री की जा रही थी।
साधारणतः इन पेय पदार्थों की कम मात्रा से कभी कोई संतुष्ट नहीं हो पाता। उसके सेवन में शराब की चाहत, मात्रा , प्रकार बदलते रहते हैं । इनके मिले जुले दुष्प्रभाव मुख से आरंभ होकर आमाशय और मस्तिष्क पर पड़ते हैं। इससे मुंह में मौजूद फ्लोरा की शक्ति कमजोर हो जाती है। मसूड़ों में घाव और सूजन पैदा हो जाती है। दांत सड़ने लगते हैं। ग्रास नली में कैंसर का अधिकतर कारण शराब को माना जाता है। आहार नली, पाकाशय तंत्र भी प्रभावित होते हैं। आमाशय में गैस्ट्रिक एसिड बनने से वहां प्रदाह उत्पन्न होने लगती है।
यकृत जब इन विषैले तत्वों को शरीर से बचाने का प्रयास करता है तो उसके दूसरे महत्वपूर्ण कार्य प्रभावित हो जाते हैं। लगातार अनावश्यक कार्य करने से वह थक कर चूर हो जाता है। अर्थात वह सिरोसिस से पीड़ित हो जाता है। रक्त अल्पता दिखने लगती है। बोनमैरो नष्ट होने लगते हैं। रक्त उत्पादन की कार्यविधि जीर्ण अवस्था में आ जाती है। इम्यूनो ग्लोब्यूलिन का स्तर बहुत कम हो जाता है। जब शराब के कारण यकृत (लीवर) की कार्यप्रणाली अचानक रुक जाती है तो शराबी बेहोश हो जाता है। इससे शराबी की जान भी जा सकती है।
आरंभ से ही यकृत के कार्य प्रभावित होने से आर्टेरियोस्क्लोरोसिस, हाईपरटेंशन जैसी व्याधियां शराबी को हो जाती हैं। यकृत जिन विषैले तत्वों को नष्ट नहीं कर पाता, वे तत्व मस्तिष्क में अपना प्रभाव जमाने लगते हैं। वे शरीर के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को अपने कब्जे में ले लेते हैं। तत्पश्चात तंत्रिकाओं के पारस्परिक संबंधों में बिगाड़ पैदा हो जाता है। वे शिथिल हो जाती हैं। शरीर की कार्यविधि अनियंत्रित हो जाती है।
आंतें एल्कोहल का अवशोषण करती हैं। इससे चर्बी का भंडारण अधिक होने लगता है। यह चर्बी हृदय के टिश्यूज को विभिन्न रोगों से ग्रस्त करने लगती है। शराब किडनी को प्रभावित करती है। इससे किडनी रक्त को अच्छी तरह छान नहीं पातीं। इससे रक्त में विषाक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ने लगती है। किडनी का जल स्तर बनाए रखने की क्षमता प्रभावित हो जाती है। इस प्रकार निर्जलीकरण (डीहाईड्रेशन) के कारण शरीर के बहुत से अंगों को क्षति पहुंचने लगती है। शराबी हाथ- पैर में सूजन और उच्च रक्तचाप से ग्रस्त हो जाता है।
जब यकृत शराब के किसी भी प्रकार के विषैले तत्वों को शरीर से बचाने का प्रयास करता है तो उसके दूसरे कार्य प्रभावित हो जाते हैं। लगातार , अनावश्यक परिश्रम से वह थक कर चूर और क्षीण हो जाता है। इस अवस्था को सिर्रोसिस के नाम से जाना जाता है। बारंबार के इनके पीने से उसकी कार्य क्षमता नष्ट हो जाती है। रक्ताल्पता दिखने लगती है, बोनमैरो नष्ट होने लगते हैं, रक्त उत्पादन की कार्यविधि जीर्ण अवस्था में आ जाती है। इम्यूनो ग्लोब्यूलिन का स्तर बहुत कम हो जाता है। जब शराब के कारण यकृत की कार्यप्राणी अचानक रुक जाती है तो शराबी बेहोश हो जाता है। उस समय इसे यकृत का दिवालियापन कहते हैं। तत्पश्चात उसकी मृत्यु हो जाती है। आरंभ से ही यकृत के कार्य प्रभावित होने से आर्टेरियोस्क्लोरोसिस, हाईपरटेंशन जैसी व्याधियां शराबी के दुश्मन बन कर सामने आती हैं।
यकृत जिन विषैले तत्वों को नष्ट नहीं कर पाता तो वे तत्व मस्तिष्क में अपना प्रभाव जमाने लगते हैं, वे शरीर के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को अपनी हिरासत में ले लेते है। तत्पश्चात तंत्रिकाओं के पारस्परिक संबंधों में बिगाड़ पैदा हो जाता है और वे शिथिल हो जाती हैं । शरीर की कार्यविधि अनियंत्रित हो जाती है।
आंतों के अल्कोहल शोषण करने से चर्बी का भंडारण अधिक होने लगता है। यह चर्बी हृदय के टिश्यूज़ को विभिन्न रोगों से ग्रस्त करने लगती है।
शराब के कारण किडनी प्रभावित हो जाती हैं और वे रक्त को अच्छी तरह छान नहीं पातीं। रक्त में विषाक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ने लगती है। किडनी की जल स्तर बनाए रखने की क्षमता भी प्रभावित हो जाती है। इस प्रकार निर्जलीकरण के कारण शरीर के बहुत से अंगों को क्षति पहुंचने लगती है। पियक्कड़ हाथ और पैरों में सूजन और उच्च रक्तचाप से ग्रस्त हो जाते हैं । यह जानकर आश्चर्य होगा कि विश्व में 10 में से एक व्यक्ति किडनी संबंधी रोग से पीड़ित है।
देखा जाए तो पियक्कड़ों में दो-दो दिनों तक स्नायु प्रभावित रहते हैं और दो-दो दिनों तक हंगामे, विनाश कार्यों की दिनचर्या बनी रहती है। पियक्कडों में दो दिनों बाद मानसिक स्थिति में कुछ सुधार आता है कि वे कुछ सही ढंग से बातचीत करने की स्थिति में आ पाते हैं। आमाशय 1 से 2 माह बाद अपनी पूर्व स्थिति में आ पाता है। यकृत कुछ हद तक अपना कार्यभार संभाल पाता है लेकिन वह भी पूर्व की तरह नहीं। इसी प्रकार हृदय भी 2 महा बाद स्वस्थ हो पाता है।
माना जाता है कि शराब सेवन के कारण मस्तिष्कीय रसायन की क्षति होती है, जो आत्महत्या के लिए उकसाती है। कुछ आंकड़ों के मुताबिक किशोरों में आत्महत्या का 25 % शराब के अपप्रयोग से जुड़ा हुआ है। लगभग 18 % शराबी आत्महत्या करते हैं। वहीं 50 % से अधिक आत्महत्याएं शराब निर्भरता से जुड़ी हुई हैं।
पुरुषों की तुलना में महिला पियक्कड़ों की मृत्यु दर अधिक बताई जाती है। उनमें स्तन कैंसर का ख़तरा भी बढ़ जाता है। महिलाओं में प्रजनन क्रिया पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप प्रजनन दुष्क्रियाएं होती है। डिंबक्षरण, डिंबग्रंथि पिंड में कमी, मासिक चक्र की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं , वह अनियमित हो जाता है और उनमें समय से पहले रजोनिवृत्ति आ जाती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के हार्मोन का स्राव भिन्न होने के कारण महिलाओं को अधिक नशा आता है। गर्भवती महिलाओं के शराब का सेवन करने से भ्रूण शराब सिंड्रोम का शिकार हो सकता है। यह एक लाइलाज और हानिकारक स्थिति है।
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन चेतावनी देते हुए कहता है कि यह एक ड्रग है और वह कहता है कि 'मादक पदार्थों की लत एक क्रोनिक, प्रत्यावर्ती दिमागी बीमारी है, जिसमें बाध्यकारी रूप से मादक पदार्थों की तलब होती है और इसके विनाशकारी परिणाम के बावजूद बारबार इसका प्रयोग किया जाता है।
इन शराब के सेवन करने से मानसिक विकृतियों में याददाश्त चली जाती है , सीखने सिखाने का गुण खत्म होने लगता है। विचार, चिन्तन, मनन की शक्ति अवरुध्द हो जाती है। संयम और चेतना शक्ति भी खो जाती है। पियक्कड़ अनाप-शनाप बकता हैं। उनकी कार्यक्षमताओं में कमी आ जाती है। वे मस्तिष्क और सद्बुद्धि का उपयोग बराबर नही कर पाते।
किसी भी प्रकार की शराब सेवन करने वाले अपनी नौकरी पेशा , व्यवसाय और बहुत से कार्यों के प्रति लापरवाह हो जाते हैं। जो कुछ दैनिक, मासिक कमाते हैं, उसे शराब पीने पिलाने में ही नष्ट कर देते हैं। वाइन अधिक खर्चीली होने के कारण उससे घरेलू बजट बिगड़ सकता है। दूसरी ओर इन पियक्कड़ों का समाज में मान सम्मान भी बहुत ही कम हो जाता है। पारिवार और समाज का कल्याण नहीं हो पाता।
ऐसे लोग कानून को हाथ में लेकर कहीं समाज के अमन में खलल तो कहीं सांप्रदायिक तनाव पैदा करते हैं, कानून को हाथ में लेकर कहीं जघन्य पाप तो कहीं जघन्य अपराध करने में कोई संकोच नहीं करते। न्याय को भंग करना और उसका उलंघन करना उनकी प्रवृत्ति बन जाती है। पारिवारिक फैसले भी नीति संगत नहीं कर पाते। हल्ला, अफरातफरी, चोरी, डकैती आदि में वे समाज के विनाश का कारण बनते हैं।
पियक्कड़ों की पारिवारिक स्थिति बिगड़ने से पत्नी और बच्चों से झगड़े होने लगते हैं। घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगती हैं। रात दिन का सुकून खत्म हो जाता है । परिवार के सदस्य दर दर भटकने लगते हैं।
परिवार के सदस्य इस मामले में बहुत तंग आ जाते हैं। इसलिए पियक्कड़ों को शराब की लत से छुटकारे के लिए परिवार के सदस्य न जाने कितने जतन मतन करते हैं। उनके प्रति कभी खून के आंसू रोते हैं , कभी खून का घूंट पीते हैं। कभी उनके के साथ मारपीट होती है, कभी उन्हें नशा मुक्ति केंद्रों में भर्ती कराया जाता है, कहीं अच्छे से अच्छे विशेषज्ञों से उनका इलाज करवा जाता है।
यही शराब व्यक्ति के नैतिक व्यवहार जो उसका मुख्य जौहर होता है उस का सर्वनाश कर देती है। नैतिक मूल्यों का पतन हो जाता है, इसलिए उसके लिए निषेध के सभी प्रयासों को सफल बनाने में एक दूसरे का सहयोग वांछित है।
पियक्कड़ों को इस्लामी विचार धारा ने कड़ी फटकार लगाई है। पवित्र क़ुरआन की सुरा अल बक़र की 43 वीं पंक्ति में है कि 'हे ईमान वालो! तुम जब नशे में रहो, तो नमाज़ के समीप न जाओ, जब तक जो कुछ बोलो, उसे न समझो...'। पैगंबर मोहम्मद साहब कहते हैं कि 'जिसने शराब पी, अल्लाह उससे चालीस रातें सहमत नहीं होता। यदि इसी दशा में मृत्यु हो गई तो नास्तिक की मौत मरा और अगर क्षमा मांग ली अल्लाह उसकी क्षमा स्वीकार कर लेता है और यदि पुनः यह कृत किया (शराब पी) तो अल्लाह का यह अधिकार है कि उसे ती-नतिल खबाल से पिलाए। सैयदना असमा बिंत यजीद रजि. कहती हैं : मैंने पूछा अल्लाह के रसूल सअव ! ती-नतिल खबाल क्या चीज है, कहा नरक वासियों की पीब है'। ऐसी घोषणाओं से मुस्लिम समुदाय में हमेशा के लिए शराब और वाइन जैसी अन्य नशा लाने वाली चीज़ें प्रतिबंधित हो गईं। यह प्रतिबंध आज भी लागू है।
हमारा राज्य छत्रपति शिवाजी महाराज, फुले, शाहू और अंबेडकर के विचारों का सम्मान करने वाला प्रगतिशील राज्य है। अतएव राज्य में वाईन, शराब की बिक्री एक गंभीर और चिंता का विषय बनना चाहिए। ऐसा प्रयास होना चाहिए कि यह राज्य महापुरुषों का प्रेरणा स्रोत बनकर पूरे देश में एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत कर सके। लोगों को भी चाहिए जिस तरह वे वेश्यावृत्ति, साहूकारी, जुआ, सट्टा पट्टी, शराब पर एक दूसरे को बचाने का प्रयास करते हैं, ठीक उसी प्रकार उन्हें वाईन और दूसरी प्रकार की शराब सेवन से बचने बचाने का प्रयास करना चाहिए। राज्य सरकार से आशा है कि वह इन पहलुओं पर विचार करते हुए वाइन और दूसरी अन्य शराबों पर प्रतिबंध लगाने में तत्काल कदम उठाएगी।
- डॉ. एम. ए. रशीद,
नागपुर, महाराष्ट्र