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चाहतों का मौसम : गज़ल संग्रह - गज़लकारा माधुरी राउलकर


पुस्तक समीक्षा

तुम सिर्फ अपनी आंखें नम रखना... यह गजलकार माधुरी राऊलकर की हाल ही में प्रकाशित गज़ल संग्रह की पंक्तियां है जो जिसमें आम जिंदगी से मिलती गजलों का आप मजा ले सकते है।

मां की दुआओं से.. इस गज़ल में गज़लकारा ने मां की दुआओं को दिल से छुआ है, मां साथ रहे ना रहे लेकिन दुआएं साथ रहनी चाहिए। माधुरी ने वर्तमान की स्थिति को भांप लिया और उसे गज़ल मे बांध दिया, कुछ अवस्था भी ऐसी है जब बच्चे मां पिता से दूर हो तो जीवन की विषम परिस्थितियों में दुआएं ही काम आती है। चाहतों की दुनिया की हर गज़ल ने जीवन को करीब से छुआ है फिर चाहे वो करो ना नादानी जिसमें बादलो की कहानी को रिश्तो से जीवन को छुआ है। कहते है ना प्यार वहीं होता है जहां एकता होती है। घर जन्नत हो जाता है जहां मोहब्बत होती है... 

आजकल की भागदौड और तनाव भरी जिंदगी में जहां एकता, रिश्ते हमेशा तलवार की नोक पर टिके है तो गज़लकारा ने ग़म हंसते है शरारत जहाँ होती है.. इन पंक्तियों से गज़ल मे बांध कर उन्हे रुमानी बना दिया। बस इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनकी कितनी गहरी सोच है। साठ से अधिक इस गज़ल संग्रह में जीवन की सच्चाई छिपी है और जैसे जैसे हम एक एक गज़ल पढते है तो उनकी गहराई को समझने लगते है। 

गज़लकारा माधुरी राउलकर संतरा नगरी की एक जानी मानी हस्ताक्षर है और भारतीय होने का उन्हें इतना गर्व है की वे भारत के स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर अपनी गज़ल संग्रह अपने पाठको तक पहुंचाती है जो उनकी जिंदगी का अब एक भाग बन गया है। विगत चालीस वर्षों  से साहित्य से जुडी माधुरी नियम से नित  एक गज़ल लिखती है। वे जिंदगी की हर घटना को गज़ल में ढाल देती है और उनकी यही अदा सभी गज़ल के शौकीन के दिलो में उतर जाती है। वैसे गज़ल तो बडी बहर छोटी बहर की होती लेकिन माधुरी ने जीवन को ही बहर बना दिया और गज़ल बन गयी।

- पूनम मिश्रा 'पूर्णिमा'
समीक्षक
नागपुर (महाराष्ट्र)
लेख 6394679529836556491
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