पद्म पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकारों से बातचीत
संवाद नए लोक की यात्रा कराता है : प्रो. बीना शर्मा
नागपुर/हैदराबाद। केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद तथा विश्व हिंदी सचिवालय के तत्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से एक आभाषी गोष्ठी आयोजित की गई। गोष्ठी में पद्य पुरस्कार से सम्मानित तोमियों मिजोकामी, हरमोहिंदर सिंह बेदी, विद्या बिंदु सिंह और चंद्र प्रकाश द्विवेदी से संवाद किया गया।
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे जापान से जुड़े मिजोकामी ने भारत सरकार की ओर से प्राप्त पद्मश्री सम्मान को खुद के लिए अद्भुत अकल्पनीय और अविश्वनीय बताया। उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया उन्हें यह भरोसा ही नहीं हो रहा था कि उन्हें भारत के इतने बड़े सम्मान के लिए नामित किया गया है।
संगोष्ठी के दौरान सबसे पहले स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। गोष्ठी की प्रस्ताविका प्रस्तुत करते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान की निदेशक प्रो. बीना शर्मा ने भी लता दी को याद किया तथा कहा कि संवाद हमें नए लोक में ले जाता है आज का संवाद भी हमें नई राह दिखाएगा।
मिजोकामी जी ने बताया कि भारत का प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार जापान के कुल 13 लोगों को मिला है। हिंदी सेवा के लिए पहली बार वर्ष 2018 में उन्हें दिया गया। 1954 से शुरू हुए पद्मश्री पुरस्कार की महत्ता का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि इसके चयन की प्रक्रिया पारदर्शी है इसका कई स्तरों पर परीक्षण कर नामों को अंतिम रूप दिया जाता है।
पद्मश्री से सम्मानित हिंदी विद्वान हरमोहिंदर सिंह बेदी ने पंजाब में हिंदी पर प्रकाश डाला। केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के प्रतिष्ठित गंगाशरण पुरस्कार से विभूषित बेदी ने कहा कि पंजाब को हिंदीतर क्षेत्र में रखा गया है। पंजाब पंचनद, सप्तसिंधु से ही जाना
जाता है। पंजाब में हिंदी की पुरानी परंपरा रही है। हिंदी साहित्य का इतिहास पंजाब के काम को अलग कर पूरा नहीं हो सकता। उन्होंने बताया कि दुनिया का पहला प्रमाणित ग्रंथ ऋग्वेद पंजाब की धरती पर लिखा गया। पाणिनी ने पेशावर पंजाब में बैठकर संस्कृत व्याकरण दुनिया को दिया। कुरुक्षेत्र जोकि पहले पंजाब का हिस्सा था से ही भगवान कृष्ण ने दुनिया को गीता दिया। वीर रस के प्रसिद्ध कवि चंद्रबरदायी भी पंजाब से ही थे।
उन्होंने बताया कि गुरु गोविंद सिंह के विद्या दरबार में लगभग सभी महान ग्रंथों का अनुवाद हुआ। यह वह समय था जब हिंदी में रीतिकाल चल रहा था तब गुरु गोविंद सिंह की दृष्टि भक्ति पर जमी थी। श्रृद्धाराम फिलोरी जी ने पंजाब की धरती पर बैठकर ओम जय जगदीश हरे की आरती लिखी जो आज दुनियाभर में आरती का पर्याय है। श्री बेदी ने कहा कि पंजाब और हिंदी का रिस्ता पहले से है अब और भी मजबूत हो रहा है। देश को जोड़ने के लिए जैसे जीटी रोड़ हमेशा जरूरत है ठीक वैसे ही देश की एकता अखंडता के लिए हिंदी जरूरी है।
पद्मश्री से सम्मानित उत्तर प्रदेश की विद्या बिंदु सिंह ने अपने साहित्यिक जीवन को साझा किया तथा कहा कि उनके दौर में लड़कियों का पढ़ना लिखना आसान नहीं था। खुद को सौभाग्यशाली बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता ने उन्हें पढ़ने का अवसर दिया। वे पढ़ गई और पढ़ने के बाद सरकारी सेवा में लग गई। उन्होंने कहा कि सरकारी सेवा फिर घर ग्रहस्थी के बाद लिखना दुस्कर काम था। तुलसी बाबा के शब्दों में कबहुं न नाथ नींद भर सोयी। थोड़ा-थोड़ा समय निकालकर जो लोक से लिया उसे लोक के लिए लिख दिया।
कुल 118 पुस्तकों की लेखिका ने कहा कि उनके काम को पहले कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। अब जब सरकार ने सम्मानित करने का निर्णय किया तब भी कई निकटस्थ लोगों को भरोसा नहीं हुआ।
हिंदी भाषा के प्रबल पक्षधर भारतीय सिनेमा के बड़े नाम चंद्र प्रकाश द्विवेदी को कला के लिए पद्म पुरस्कार से नवाजा गया है। आज की संगोष्ठी में कतिपय कारणों से वे सशरीर शामिल नहीं हो सके किंतु वीडियों के जरिए उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने उच्चशिक्षा में भारतीय भाषाओं की वकालत करते हुए वर्तमान सरकार द्वारा हिंदी के विकास के लिए उठाए गए कदमों की सराहना की।
संगोष्ठी को सान्निध्य दे रहे अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक नारायण कुमार ने पद्मश्री पुरस्कार प्राप्त करने वालों को बधाई दी तथा कहा कि सरकार ने भले ही राजकीय सम्मान प्रदान किया है लेकिन किसी भी राजकीय सम्मान से जनता का सम्मान बड़ा होता है। आज इस मंच से सभी पुरस्कृत लोगों को जनता का सम्मान मिल रहा है।
कार्यक्रम का समाहार केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने किया। उन्होंने कहा कि आज जो लोग पंजाब में अलगाव की बात कर रहे हैं उन्हें पंजाब की हिंदी से जुड़ाव की बात सिखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि श्री बेदी जी ने अपनी बातचीत में स्पष्ट कर दिया है कि हिंदी सिर्फ भाषा नहीं बल्कि एक मूल्य की तरह है।
श्री जोशी ने पद्मश्री प्राप्त संगोष्ठी में शामिल सभी लोगों के काम की सराहना की तथा उनकी चिंताओं से खुद को जोड़ा।
संगोष्ठी का संचालन वरिष्ठ कथाकार कवियत्री अलका सिन्हा ने किया। कार्यक्रम का संयोजन प्रो. राजेश कुमार, जवाहर कर्नावट व विजय मिश्र ने किया। अंत में जयशंकर यादव ने सभी प्रतिभागियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की।