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छत्तीसगढ़ का लोक जीवन अत्यंत सरल है : बलदाऊ राम साहू


नागपुर पुणे। मध्य प्रदेश से 1 नवंबर 2000 को विभक्त किया गया छत्तीसगढ़ राज्य का लोकजीवन सदा ही अत्यंत सरल रहा है। यह विचार छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध साहित्यकार बलदाऊ राम साहू, दुर्ग ने रखे। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश की छत्तीसगढ़ इकाई की ओर से 'छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और साहित्य' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे मुख्य अतिथि के रुप में  उद्बोधन दे रहे थे। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। बलदाऊ राम साहू ने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ के हर त्योहार से संस्कृति का प्रभाव परिलक्षित होता है। विशेष बात यह है कि छत्तीसगढ़ प्रदेश प्राकृतिक आपदाओं का केंद्र पहले से ही कभी नहीं रहा। बाढ़, भूकंप जैसी आपदाएं यहां कभी नहीं आयी। आर्य और द्रविड़ संस्कृति का प्रभाव छत्तीसगढ़ पर दिखाई देता है। कबीर पंथ का प्रभाव छत्तीसगढ़ में पाया जाता है।

विशिष्ट वक्ता अरुण कुमार निगम, दुर्ग, ने अपने वक्तव्य में कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति बहुत पुरानी है। वाचिक और लिखित इन दो प्रकार का साहित्य छत्तीसगढ़ में उपलब्ध है। यहां के लोकगीत, लोककथा, लोकगाथा, लोकवार्ता, लोकनृत्य तथा लोक नाट्य साहित्य के अंतर्गत आते हैं

देवानंद बोरकर, राजनांदगांव ने अपने उद्बोधन में कहा कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति पर विभिन्न संस्कृतियों का प्रभाव परिलक्षित होता है। कामता प्रसाद गुरु का हिंदी व्याकरण, माधव राव सप्रे की 'एक टोकरी भर मिट्टी' शीर्षक की हिंदी की प्रथम कहानी, प्रथम नाट्यशाला का निर्माण आदि छत्तीसगढ़ की देन है। मुक्तिबोध की जन्म स्थली भी छत्तीसगढ़ ही है। अतः छत्तीसगढ़ अपनी विशेषताओं से परिपूर्ण हैं।

श्री गयाप्रसाद साहू, बिलासपुर ने इस अवसर पर कहा कि छत्तीसगढ़ निवासियों में सीधी और सरल आचार - विचार प्रणाली पायी जाती है। वे छल कपट से दूर रहते हैं। छत्तीसगढ़ पूर्वज प्रकृति के प्रेमी थे। प्रकृति के साथ आज भी भक्ति भाव रखते हैं। छत्तीसगढ़ के निवासी जीवन को उत्सव के रूप में मनाते हैं।

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, प्रयागराज ने संस्थान की गतिविधियों पर प्रकाश डाला।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डॉ. शहाबुउद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने उद्बोधन में कहा कि, अध्यात्म की भावना छत्तीसगढ़ संस्कृति के कण-कण में है। धार्मिक सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता छत्तीसगढ़ की विशेषता है। छेरछेरा, भोजली जैसे अनेक लोकपर्व छत्तीसगढ़ में मनाए जाते हैं।

गोष्ठी का आरंभ कोरबा, छत्तीसगढ़ की भुवनेश्वरी जायसवाल की सरस्वती वंदना से हुआ। श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव, चांपा, जांजगीर, छत्तीसगढ़ ने स्वागत उद्बोधन दिया। डॉ. सरस्वती वर्मा, महासमुंद ने प्रास्ताविक भाषण दिया।
गोष्ठी का सुंदर व सफल संचालन छत्तीसगढ़ प्रभारी व हिंदी सांसद डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक रायपुर ने किया। भुवनेश्वरी जयसवाल ने सभी का आभार ज्ञापन किया।

इस आभासी गोष्ठी में, महाराष्ट्र से डॉ. भरत शेंणकर, प्रा. रोहणी डावरे, युवा प्रभारी जहरूद्दीन पठान , श्रीमती पुष्पा शैली, गुजरात से डॉ. नजमा मलेक, डॉ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद एवं छत्तीसगढ़ के साहित्यकार एवं अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
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