रोज़गार, उद्योग के नए स्तोत्र के लिए नई राष्ट्रीय नीति बनें
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नागपुर (आनंदमनोहर जोशी)। भारत के आज़ादी के बाद 75 वर्ष के अंतराल में अनेक नेताओं ने बेरोजगारी के मुद्दे उठाये और अभी भी पूरी तरह देश के युवाओं को रोजगार और स्वयंरोजगार के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। जब विपक्ष स्वयं सत्तापक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहा होता है। उस समय कोई भी नेता रोजगार और बेरोज़गार के आंकड़े केवल कागज़ पर देते है। जबकि भारत के 29 राज्य और 5 केंद्रशासित प्रदेश में सेवायोजन कार्यालय की उम्मीदवार के आंकड़े लोकसभा,विधानसभा में पंजीकरण के बाद में भारत सरकार को उपलब्ध कराने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रणाली की जरूरत है।
आज जहाँ भी यदि कोई विद्यार्थी कक्षा दसवीं,बारहवीं और स्नातक, स्नातकोत्तर की परीक्षा पास करे उसे स्कूल , विश्वविद्यालय से एम्प्लॉयमेंट एक्सचेंज का पंजीकरण हो जावें। तो आधुनिक युग में हर कोई रोजगार, स्वरोजगार के लिए चुना जा सकता है। हाल ही में विपक्ष की ओर से लोकसभा में पिछले 60 साल में 27 करोड़ नागरिकों को रोजगार देने की जानकारी दी गई। वहीं 23 करोड़ नागरिकों के बेरोजगारों के मुद्दे पर विपक्ष की ओर से वर्तमान सरकार को घेरे में लिया गया। यह सत्य है की कोरोना काल के दौरान दो वर्षों में प्राकृतिक आपदा महामारी के कारण करोड़ों नागरिक बेरोजगार हो गए।
दुनिया में भी अरबो लोगों को बेरोजगारी की मार झेलनी पड़ी। अब धीरे धीरे जहाँ महामारी को खत्म करने के लिए भारत सरकार ने लगभग 70 फीसदी नागरिकों को 170 करोड़ वक्सीनशन खुराक दे दी है। आधुनिक भारत का डिजिटल बजट लोकसभा में पेश किया गया है। अब समय आ गया है, कि महामारी खत्म हो जाए और भारत सरकार सभी के लिए नई रोजगार नीति लाए। यह बहुत अच्छा होगा ,यदि सभी राज्य और केंद्र शशित शाषित प्रदेश में शिक्षा प्राप्त बेरोजगारी के पंजीकरण के बाद रोजगार कार्यक्रम का मसौदा भी तैयार किया जाए।
भारत में रोजगार के अनेक अवसर है। जैसा कि पर्यटन, होटल, सूचना प्रौद्योगिकी, हस्तशिल्प उद्योग, सार्वजनिक और निजी बैंक, रेलवे, विमानन प्राधिकरण, सेना, पुलिस, व्यापार, वाणिज्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, खादी, वस्त्र डिजाइन, ब्यूटी पार्लर, बागवानी, फार्मा जैसे अनेक क्षेत्र में रोजगार के अवसर युवाओं के लिए है। हालांकि भारत सरकार ने भी मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप जैसे योजना शुरू की। लेकिन कुछ जटिल शर्त, नियम के कारण देश के इंटेलिजेंट कैंडिडेट्स को रोज़गार और स्वयंरोजगार में अभी भी दिक्कतें हो रही है। इसका एक जागृत उदाहरण शार्क समूह है इसे एक चैनल पर दिखाया जा रहा है। शार्क में अनेक लोगों को उद्योग के लिए ऋण से वंचित भी होना पड़ा है।
भारत देश मे कई कौशल, हस्तशिल्प, अनुभव के बाद भी सरकार की तरफ से मदद नहीं मिल रही है। विदेशी कम्पनीज भारत सरकार,राज्यसरकार और सरकारी कार्यालयों के कठिन नियम के चलते भारत में निवेश नहीं करना चाहती है। यही कारण है कि मेक इन इंडिया को विदेशी कंपनियां का सहयोग अभी तक सफल नहीं हुआ है। उद्योग के निर्माण के दौरान बनाये जानेवाले नक़्शे के निर्माण के दौरान, जटिल शर्तें और ज्यादा रु. रकम की मांग होती है। इसके कारण कोई उद्योग नहीं आ रहे है। साथ ही उद्योग और बिज़नेस के दौरान भारत सरकार के साथ राज्य सरकार के नियम भी कठिन है।
यह नियम अंग्रेजी नियम से भी ज्यादा सख्त होते है। जब उद्योग धंधे ही नहीं आयेंगे तो रोजगार कहाँ से मिलेगा। इसलिए केंद्र और राज्य सरकार को कानूनों को लचीला बनाना चाहिए। साथ साथ इंस्पेक्टर प्रणाली और अवैध रूप से ली जा रही रिश्वत पर अंकुश होना जरूरी है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार के उद्योग मंत्रालय के अधिकारियों को सख्त आदेश देनेपर ही यह संभव है। नहीं तो हमारा देश विकसित देश की प्रमुख श्रेणी से बाहर हो जाएगा।