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बासंती शब्द रंग....


निराशा के गहराते अंधकार में 
आशा का एक नन्हा तारा
शुक्र बन मुस्कुराया था
आकाश में फैल गई थी 
बासंती आभा 
बसंत 
मेरे अंगने
उतर आया था .....

डाली से
केवल एक
कोमल कली टूटी थी 
बसंत लौटकर 
बगिया में फिर 
कभी नहीं आया 

जीवन के सूने उपवन में
अनायास 
एक फूल खिला
खुशबू बिखेरता
मुस्कुराया
और

आँचल में समा गया
मुझे लगा
बसंत 
हमेशा के लिए
मेरा हो गया......
           

¤ रीमा दीवान चड्ढा
            नागपुर (महाराष्ट्र)
काव्य 8579162901354805152
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