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डिजिटल चौपाल


अंतत अब चौपाल भी डिजिटल हो गयी है| वह दिन बीत गये जब पेड के नीचे, मंदिर के प्रांगण या फिर चौराहे के किनारे बैठकर चर्चाओं का दौर चलता था| बड़ी से बड़ी समस्या को भी चौपाल पर निपटा दिया जाता था| अब इन सब जगहों पर स्मार्ट फोन का कब्जा हो गया है| अब लोग देहांत में भी चौपाल पर बैठकर सिर्फ मोबाइल पर लगे रहते है| पूरा देश डिजिटल होता जा रहा है| अब सास-बहू की जुगली भी बहू मायके डिजिटल रूप में ही घर बैठे पहुंचा देती है| 

या यू कहे की मा-बेटी की चौपाल भी स्मार्ट फोन पर ही भरने लगी है| सास-बहू हो, ननद-भाभी हो अपने युद्ध भी डिजिटल चौपाल पर ही निपटने लगी है| चौपाल की जगह कही भी हो पर वे सिर्फ वाट्सअब या फिर फेसबुक पर अपनी चौपाल जमा रहे है| अब स्मार्टफोन की स्थिति यह है कि वह हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुके है|  

शादी का कार्ड भी हम वाट्सअप पर ही पहुंचा रहे है| किसी के घर जाना नहीं, उसका आदर आतित्थ स्वीकारणा नहीं, सुख-दुख में सहभागी होना नहीं यानी जो भी करना है वह सिर्फ डिजिटल| अब किसी को श्रद्धांजलि भी देनी हो तो फेसबुक व वाट्सअप पर देकर अपने आप को धन्य समझते है| वाट्सअप पर कई ग्रुप परिवार के सदस्यों के बने है| लेकिन मजे की बात देखों घर में ही रहते हुए वे एक दूसरे से बात तक नहीं करते लेकिन वाट्सअप पर एक दूसरे से बाते करते है| 

कहीं एक दूसरे से समक्ष आते है तो एक दूसरे को नमस्कार तक नहीं करते यहां तक की एक दूसरे की तरफ देखते भी नहीं है, लेकिन रोज सुबह उठकर वाट्सअप व फेसबुक पर सभी को फूलों की फोटो या फिर किसी भगवान की फोटो भेजकर गुड मार्निंग करना नहीं भूलते| यदि चौपाल पर मिल भी जाते है तो बात डिजिटल चौपाल पर ही होती है| 

अब तो चौपाल की तर्ज पर घर के अंदर की बातें भी डिजिटल चौपाल पर होती है| सास ने क्या कहा, ननद कब आयी कब गई, क्या कहा...आग तो नहीं लगाई, भाभी ने क्या कहा, क्या बनाया, क्या खाया, कहा जाने वाली हो, कब आने वाली हो....आज किसकी लड़ाई हुई....किसने चुगली की यह सारी बातें डिजिटल चौपाल पर होने लगी है| झगड़े भी डिजिटल होने लगे है और उसपर निर्णय भी डिजिटल पर ही होने लगे है| यहा सिर्फ पारिवारिक या सामाजिक बहसें ही नहीं तो असली मूल चौपाल की तरह राजनीतिक बहसों का भी अड्डा अब डिजिटल चौपाल बन गया है| 

यहां सभी पार्टी भक्त अपनी अपनी पार्टी की गतिविधि सहित अपने कार्यों का भजन भी गाते है, इतना ही नही तो विरोधी पार्टी को नीचा दिखाने का हरसंभव प्रयास करते है| कई तरह के व्यंग्य चित्र, कार्यक्रम की फोटो, कमेंट भी शेयर कर अपनी भड़ास निकाल देते है| कई तो बिचारे इस डिजिटल चौपाल पर पत्रकार भी स्थापित हो गये है| अब अपनी भड़ास इस डिजिटल चौपाल पर ही निकाल देते है| कोई पढ़े न पढ़े अपने विचार फेसबुक या वाट्सअप के माध्यम से डिजिटल रूप से अपने से जुड़े हरेक को मार देते है| 

कुछ तो बगैर पढ़े प्रतिक्रिया दे देते है तो हम इतने लाइक मिले देखकर खुश होते है| चौपाल के माध्यम से यह भी कहा जा सकता है कि मनुष्य अब डिजिटल हो गया है| सारे कार्य वह डिजिटल से ही करता है| वह इंटरनेट के सहारे जिंदा है| मनुष्य की उंगलियां अब स्मार्ट फोन पर ही काम करते नज़र आती है| मोबाइल की स्क्रिन को अपनी आंखोें के सामने से ओझल भी नहीं होने दिया जाता है| 

हर दम कुछ आया या फिर कुछ मिस हो गया इसका डर बना रहता है| कई बार तो ऐसा होता है कि यदि मोबाइल की घंटी नहीं बजी तो वह मनुष्य अपने ही मोबाइल को बार-बार चालू बंद कर कुछ आया तो नहीं यह देखते रहता है| जिस तरह छोटे बच्चों को डायपर लगाने के बाद मां उसे बार-बार देखते रहती है कि बच्चे ने कुछ किया तो नहीं| ऐसा ही कुछ हमारा डिजिटल युग में मोबाइल के साथ होता जा रहा है| अब तो युवा अपने बायोडाटा में भी मोबाइल के अनुभव को जगह देंगे| वे लिख सकते है कि मुझे १० ग्रुप चलाने का अनुभव है| मैंने हर रोज गुडमार्निंग की श्रृखंला अबाधित रखी है| फिर चाहे किसी को यह पसंद आये या ना आएं वेतो अपना उल्लू सीधा करते रहते है।

- डॉ. प्रवीण डबली, 
व्यंग 8724017348483988421
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