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बसंत पंचमी : ज्ञान की देवी सरस्वती के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं



केरल, पूर्वी भारत, बंगाल मे यह प्रमुख रूप से यह त्योहार मनाया जाता है। वसंत ऋतु को ऋतुओ का राजा कहते है, वसंत ऋतु में फसल तैयार होती हैं, मौसम बहुत ही सुहावना हो जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल को पृथ्वी पर छिड़क दिया, जिससे पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी सुंदर स्त्री प्रकट हुई। जिनके एक हाथ में वीणा एवं दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। वहीं अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। जब इस देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई, तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।

वसंत ऋतु में पृथ्वी पर ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म हुआ था, जैसे ही माँ सरस्वती अवतरित हुयी वैसे ही ओम की ध्वनि के साथ संगीत की आवाज चारो तरफ सुनाई देने लगी, फूल खिलने लगे, पक्षी चहक उठे, कोयल गाने लगी, भौरे गुंजार करने लगे, खेतो मे फसल लहरा उठी चारो तरफ खुशिया  ही खुशिया।

सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण वह संगीत की देवी भी हैं। वसंत पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पचंमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी। इस तरह हिंदू धर्म में सरस्वती की पूजा होती है। इसलिए बसंत पंचमी को सरस्वती की आराधना की जाती हैं। पिले वस्त्र धारण करते है, पिले फूल माँ को अर्पित करते हैं, पीली चीजो का सरस्वती माँ को भोग लगाते है, विद्या के रूप में कलम, किताबे आदि की भी पूजा की जाती है, भजन गाते हैं।

इस वर्ष कोरोंना काल मे आभासी शिक्षण के कारण बच्चो की जो सोचने की क्षमता पर प्रभाव पड़ा है। सरस्वती माँ अपनी कृपा भोले बालको पर बरसाए, इसी आशा के साथ बसंत पंचमी मनाये, क्योकि सरस्वती माँ शारदा के हाथों में किताब, वीणावादिनी का आशीर्वाद देता हाथ। एक हाथ में किताब का अर्थ है कि ज्ञान को प्राप्त करना। वीणा का अर्थ हैं जीवन संगीत  के समान मधुर है, आशीर्वाद देता हाथ सबकी भलाई की कामना करता हैं, माँ की आराधना कर विद्या, बुद्धि का आशीर्वाद माँ से प्राप्त करे, वीणावादिनी वीणा के तारो से जीवन को सप्त सुरो जैसा सुरीला बनाये रखे। माँ हँस पर विराजित हैं, का अर्थ है कि दुनिया मे रहते हुए अच्छे बुरे की पहचान से रूबरू होना।


- रेखा तिवारी 
मालवीय नगर, नागपुर (महाराष्ट्र)
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