तिल...
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उस पर तिल ने
चार चांद लगा दी ,
पहले ही पसीना-पसीना होते थे,
इस कमबख़्त तिल ने नींदें ही उड़ा दी।
दिल बाग बाग हुआ जाता है
यूं आपकी मुस्कान देख कर,
उस पर गालों पे टोल ने
बागों में बहार ला दी।
यूं हम पर आशिकी का इलज़ाम ना लगाओ,
शाहंशाओं ने भी इन पे
ज़ान कुर्बान की थी।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
नागपुर महाराष्ट्र