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एक छोटी सी मधुर अभिव्यंजना!


बरसों से लेखनी का जुनून होने की वज़ह से प्रतिदिन  कुछ नए शब्दों से वास्ता होना मेरी रोज़ की दिनचर्या में शुमार है। नए शब्दों के बारे में जानना, उनकी उपयोगिता समझना और उस पर चिंतन करने का आनंद ही कुछ और है। इस रूझान के कारण एक दिन मुझे एक ऐसे शब्द का पता चला जिसका अर्थ है किसी और की खुशी को छीन लेना, यहूदी शब्द है 'Neshumah नीशुमा' कहते हैं दूसरों की खुशी को छीनना या ईर्ष्या भाव से उसे नजरअन्दाज करना एक तरह से पाप होता है।

इस सच्चाई से महरूम कई बार हम जाने-अनजाने में  दूसरों की खुशी का हनन कर देते हैं। जैसे उस पल की कल्पना करें जब हमारा बच्चा दोस्तों के साथ खेलकूद कर चहकते हुए, हमसे अपने उम्दा प्रदर्शन की खुशी साझा कर रहा है और हम अपनी दुनिया में मशगूल हैं, या हमने उसके उत्साही मनोभाव की उपेक्षा कर दी। वह निश्चित रूप से कुछ पल के लिए ज़रा खिन्न हो जायेगा। 

उसी प्रकार एक पति या पत्नी एक-दूसरे से प्रफुल्लित मन से जब अपनी कुछ अंतरंग अनुभूति साझा करते हैं पर अगर दूसरे के चेहरे पर ज़रा भी दिलचस्पी नहीं झलकती तो बताने वाले का मन टूटना स्वाभाविक है, हालांकि ये बात और है कि वक्त के साथ एक दूसरे की आदतों के अभ्यस्त हो जाने से इन भावनाओं पर नियंत्रण पाया जा सकता है। 

परन्तु मनन चिंतन व क्रियान्वयन करने की आवश्यकता है कि ऐसे क्षणों में हम यह समझने में असफल रहे कि हमने सामने वाले की उस खुशी को चकनाचूर कर डाला जो हमारे साथ साझा करने और खुशी को दुगना करने की अभिलाषा में बतायी जा रही थी।

ऐसे कई उदाहरण हो सकते हैं जहां हम दूसरों के आनंद और उनकी भावनाओं को गम्भीरता से नहीं ले पाते या  परवाह ही नहीं करना चाहते जबकि हमें उनके जीवन के एक सुखद क्षण को साझा करने के लिए योग्य व्यक्ति के रूप में चुना गया। इस छोटी सी मधुर अभिव्यंजना से भला हमारा क्या बिगड़ जाता है? 

क्या इसमें बहुत अधिक समय लगता है, क्या इसके लिए बहुत अधिक शारीरिक प्रयास की आवश्यकता होती है? क्या इसमें  कोई रकम खर्च होता है? नहीं ना..! इसके लिए चाहिये तो बस एक खूबसूरत दिल और निर्मल मन। कुछ अन्य अतिरिक्त घटक तो बिल्कुल नहीं चाहिए।

आइये प्रतिकार के ऐसे कृत्यों को तिलांजलि दे दें जो दूसरे के आनंद को मारता है। बल्कि एकाग्र प्रयास करें कि ऐसे किसी भी पल को अपने अनुमोदन, अभिस्वीकृति व अपने हर्षित मनोभाव से बेहतर और हो सके तो अविस्मरणीय बनाएं। पर कदाचित औरों के आनंद को रौंदें नहीं। दूसरों की भावनाओं की कद्र करें, उनका आपके प्रति सम्मान व श्रद्धा भाव का हृदय से आदर करें। मुख्य रूप से उनकी खुशियाँ, भले ही हमें वास्तव में कोई दिलचस्पी न हो या आनंद न हो।

इस प्रकार इस बात को गहराई से समझना है कि अपने दैनिक जीवन में यदि हमें किसी ने अपनी हार्दिक अनुभूति बांटने के लिए चुना है, इसका मतलब हम सौभाग्यशाली हैं इसकी अहमियत समझते हुए उन पर अपने जीवन का कुछ क्षण खर्च करने से न केवल ग्राही का उत्साह दुगना होगा बल्कि आपका अपने प्रति आत्म सम्मान व आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से विश्लेषित करें तो परमात्मा का एक सुन्दर संयोजन सफल होगा।

- शशि दीप
    मुम्बई
shashidip2001@gmail.com

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