एक छात्रा रही जीवन भर सुरकंठी लता दीदी..
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आज पूरी प्रकृति मौन हो गयी... ऋतुराज आए समां रंगीन है लेकिन कोकिल कंठी लता जी मौन हो गयी। लता जी ने पांच वर्ष की उम्र से गीत गाना शुरू किया और अपने अंतिम समय भी वे गीतो को सुनकर ही इस दुनिया को अलविदा कहा। वे जब अस्पताल मे थी तो उन्होंने अपने भाई ह्दयनाथ मंगेशकर से ईयर फोन और प्लेयर मंगवाकर अपने पिताजी के गाने सुने और फिर वो बेहोश हो गयी। लता जी की एक विशेषता यह भी था की वो हर गीत को अपनी कलम से कोरे कागज पर लिखती और फिर उसे सुर ताल मे लयबद्ध करती।
हर गाने को कम से कम तीन से चार बार स्वयं रियाज करती चाहे उस गाने की रिर्काडिंग हो गयी हो। ऐसी थी कोकिल कंठी। साहिर लुधियानवी ने क हा था कि जब भी मै लता को गाते हुए या रिकार्डिंग करते हुए सुनता हूँ तो मुझे ऐसा लगता है वे नही गा रही बल्कि कोई देवी है जो रिकार्डिंग कर रही है वे गीत मे डूब जाती थी। राज कपूर जी तो अपने सभी गीत लता जी के सुर मे ही पसंद करते थी। शायद उनकी सादगी और श्वेत वस्त्र धारण के कारण उनकी फिल्मो की नायिका भी अधिकांश श्वेत साडी ही पहनती थी।
वे बहुत अच्छा लिखती थी जब किसी ने उनसे कहा कि आप तो डायलॉग लेखन भी कर सकती है तब लता जी ने कहा की जब मैं पैदा हुई तब ईश्वर ने मेरे कान में कहा था की तुम धरती पर जाकर सिर्फ गीत ही गाना और दीदी सिर्फ संगीत से ही जुडी रही अंतिम सांस तक आज वही संगीत वही गीत मौन हो गया।
स्वर कोकिला
मां सरस्वती देवी
नमन करूँ
संगीत की साम्राज्ञी
जादुई सुर
श्वेत वस्त्र धारण
सादा जीवन
सदी के संगीत को
मौन हो गयी ।
नागपुर, महाराष्ट्र