सभी भारतीय भाषाओं की अपनी विशिष्टता और महत्व है : डाॅ. निशा मुरलीधरन
नागपुर/पुणे। राष्ट्रीय स्तर पर सभी भारतीय भाषाओं की अपनी विशिष्टता और महत्व है। हिंदी सभी भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली कड़ी है। ये विचार एस.आर.एम. मानित विश्वविद्यालय, चेन्नई, तमिलनाडु की हिंदी की प्राध्यापिका डाॅ. निशा मुरलीधरन ने व्यक्त किये।
मराठवाडा शिक्षण प्रसारक मंडल और डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद से संलग्नित श्री मुक्तानंद महाविद्यालय, गंगापुर, ज़ि. औरंगाबाद, महाराष्ट्र में 'राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे अपना उद्बोधन दे रही थी। महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. मधुसूदन सरनाईक ने गोष्ठी की अध्यक्षता की।
डाॅ. निशा मुरलीधरन ने आगे कहा कि, भारतीय भाषाओं में समन्वय लाने की शक्ति एक मात्र हिंदी में है। तमिलनाडु में हिंदी का विरोध कई दशकों से हो रहा था, पर अब स्थिति बदल गई है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु ये राज्य अब हिंदी के प्रचार प्रसार में सक्रिय हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी की स्थिति मज़बूत है, पर राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी को अपेक्षित पहचान नहीं मिल पा रही।
डाॅ. रेशमा अंसारी, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, मैट्स विश्वविद्यालय, रायपुर, छत्तीसगढ ने कहा कि, हिंदी सहज, सरल, मधुर व लोकप्रिय भाषा है। भाषा की सही शक्ति उसकी बोलनेवाली जनता होती है। आज वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा, टेलीविजन और बाज़ार आदि सभी क्षेत्रों में हिंदी की अपनी पहचान है।
डाॅ. प्रिया ए., सहायक प्राध्यापिका, हिंदी, कुरियाकोस ग्रिगोरिओस काॅलेज, पाम्पाडी, कोट्टयम, केरल ने कहा कि वैश्वीकरण ने हिंदी को प्रभावित किया है। सोशल मीडिया में भी हिंदी ने अपनी पहचान बनाई है। हिंदी सभी भारतीय भाषाओं की बड़ी बहन है। भारतीय भाषाएँ नदियाँ हैं और हिंदी महानदी है। विदेशों के 175 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज़ मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि, हिंदी मात्र भाषा ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की गौरवशाली संवाहिका है। भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ हिंदी लगभग ग्यारह राज्यों और तीन संघशासित क्षेत्रों की प्रमुख भाषा है। भारतीय सभ्यता, संस्कृति, सृजन और संवाद की भाषा है, हिंदी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी जानने वालों की संख्या 1450 मिलियन है, जबकि चीनी (मंदारिन) बोलने वालों की संख्या 1120 मिलियन तथा अंग्रेज़ी बोलने वालों की संख्या 1268 मिलियन है।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डाॅ. मधुसूदन सरनाईक ने कहा कि, हिंदी समग्र देश में बोली जाती है। हिंदी आज मातृभाषा, राष्ट्रभाषा, राजभाषा, विश्वभाषा तथा कई रूपों में विश्वमंच पर विराजित है। पचास से अधिक देशों में हिंदी का प्रयोग प्रगत राष्ट्रों जैसा भारत में भी हो रहा है। आवश्यकता है कि विज्ञान की पढाई भी हिंदी में हो।
गोष्ठी की प्रस्तावना और धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय की हिंदी विभागाध्यक्ष डाॅ. मीना खरात ने किया। डाॅ. प्रताप मिसाळ और डाॅ. अमोल थोर ने अतिथि परिचय प्रस्तुत किया। डाॅ. रितांजली जाधव ने संचालन किया। उपप्राचार्य डाॅ. वैशाली बागूल और उपप्राचार्य डाॅ. बी. टी. पवार ने विशेष उपस्थिति दर्शायी।