गहन चिंतन : दुनिया में जो कुछ भी है वह यों ही नहीं है
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हमारे होने का दुनिया में कोई न कोई खास मतलब है। दुनिया में जो कुछ भी है वह यों ही नहीं है। होना कोई आकस्मिक घटना नहीं है। सारी पैदाइशें प्रकृति की सुविचारित और बेहद वजही पैदाइशें हैं।
पैदाइश सिर्फ सजीव की ही नहीं होती। निर्जीव की भी सजीव जैसी ही पैदाइश होती है। एक रूप से दूसरे रूप वाला हो जाना, सूक्ष्म से विस्तार वाला हो जाना या एक छिपी हुई जगह से खुली जगह में प्रकट हो जाना ये सब जन्म ही हैं।
लेकिन इस सबके पीछे प्रकृति का अपना खुद का निश्चित उद्देश्य होता है। प्रकृति के स्वयं के विकास व विस्तार के लिये जो भी जरूरी होता है, प्रकृति उसका जगत में होनापन सुनिश्चित करती है। सारा होनापन एक निश्चित बुद्धि का सुचिन्तित निर्णय होता है।
इस निर्णय के बारे में हम सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं। क्योंकि व्यष्टि बुद्धि समष्टि बुद्धि के निर्णयों को पूर्णतया समझ सके, ऐसा तब तक कोई उपाय नहीं है जब तक कि व्यष्टि समष्टि में खुद को समाहित न कर ले। पर यह समाहार भी समष्टि प्रकृति की इच्छा से ही सम्पन्न हो सकता है।
पर क्योंकि सृष्टि की उत्पत्ति में विचारों के संकल्प की मुख्य भूमिका है, अतः समष्टि में व्यष्टि का समाहार की क्रिया भी विचारपूर्वक संकल्प की विलोम क्रिया द्वारा ही सम्भव हो सकती है। यह क्लिष्ट लग सकता है, पर गहन विचार करने से इसकी सत्यता का पता पाया जा सकता है।
- प्रभाकर सिंह
प्रयागराज (उ. प्र.)