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महाराष्ट्र में संतों की लंबी परंपरा रही है : डाॅ. हरिसिंह पाल



नागपुर। महाराष्ट्र में संतों की लंबी परंपरा रही है। उनकी प्रवृत्ति धार्मिक समन्वय की ओर थीं। परिणामत: संतों ने समाज का बडा कल्याण किया है। इस आशय का प्रतिपादन नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डाॅ. हरिसिंह पाल ने किया। 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के मुख्य संयोजक डाॅ.शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र के जन्मदिन की पूर्व संध्या पर 'संत परंपरा में महाराष्ट्र का योगदान' विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे। 

डाॅ. पाल ने आगे कहा कि तेरहवी सदी के अंत में महाराष्ट्र में संत आंदोलन प्रारंभ हुआ था। संत स्वभाव के डाॅ. शहाबुद्दीन शेख हिंदी भाषा साहित्य और नागरी लिपि के उन्नयन में अहर्निश लगे हुए हैं। उन्होंने भाषा और लिपि को नई उचाइयाँ दी हैं। डाॅ. शेख रसखान और रहीम की परंपरा के भारतीयता के पोषक हैं।

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के मार्गदर्शक तथा हिंदी परिवार,  इंदौर के संस्थापक अध्यक्ष, श्री हरेराम वाजपेयी ने कहा कि संत शब्द का रूढि के रूप में प्रयोग सर्वप्रथम महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय के निर्गुण साधक भक्तों के लिए हुआ। इन संतों ने जनता की जडता, मूढता, अज्ञानता और निराशा का विनाश किया। 

समाज में व्याप्त असमानताओं और विषमताओं पर संतों ने करारी चोट की है। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य कार्यकारी अध्यक्ष, श्रीमती सुवर्णा जाधव, मुंबई ने स्पष्ट किया कि, संतों की पुण्यभूमि के रूप में महाराष्ट्र प्रसिद्ध ही है। 

महाराष्ट्र में पुरूष संतों के साथ महिला संतों ने भी समाज के उद्धार का कार्य किया है। मानवता का संदेश फैलाने में महाराष्ट्र के संत अग्रभागी रहे हैं।
डाॅ. अनुसूया अग्रवाल, महासमुंद, छ. ग. ने कहा कि महाराष्ट्र के संतों द्वारा लिखा गया काव्य संपूर्ण विश्व में विख्यात है।

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना महिला इकाई की महासचिव डाॅ. रश्मि चौबे, गाजियाबाद, ने कहा कि, आज जिनका जन्मदिन है, वे डाॅ. शहाबुद्दीन शेख का व्यक्तित्व संत के गुणों से भरपूर है। उनका मार्गदर्शन हमें नई दिशा प्रदान कराता है। डाॅ. मीरा सिंह, फिलेडेल्फिया, अमेरिका ने कहा कि 'आप फूल सम खिलें, खुशबू बिखरें जग में, सुख चैन हो जीवन में ये है कामना हमारी' 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के मुख्य संयोजक, डाॅ. शहाबुद्दीन शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने कहा कि भारत भूमि संतों की भूमि मानी जाती है। भारत की संत व आध्यात्मिक परंपरा में महाराष्ट्र का  अनूठा योगदान रहा है। संत रामदास, तुकाराम, एकनाथ, संत नामदेव, संतश्रेष्ठ ज्ञानेश्वर, जनाबाई, चोखा मेला, गोरा कुंभार जैसे कई संत महाराष्ट्र की भूमि में अवतरित हुए। 

राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव, डाॅ. प्रभु चौधरी, महिदपुर ने अपने उद्बोधन में कहा कि, महाराष्ट्र में संतों की एक श्रृंखला पायी जाती है। संतों के बिना किसी भी देश का उद्धार कदापि संभव नहीं है। डाॅ. स्वाति श्रीवास्तव, रायपूर छ.ग. ने कहा कि महाराष्ट्र भारतीय संस्कृति और धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है।  स्वागत भाषण में डाॅ. दिपिका सुतोदिया 'सखी' बरपथार, असम ने कहा कि संतों ने हमें बताया है कि प्रभु अंतर्मन में बसे होते हैं। 

आत्मा और परमात्मा एक है। मनसुख भाई कोठारी नैशनल स्कूल की छात्रा कु. जिया खान ने अपने नानाजी के व्यक्तित्व पर एक कविता सुनायी। प्रा. रोहिणी डावरे, अकोले महाराष्ट्र ने डाॅ. शहाबुद्दीन शेख के जीवन पर आधारित अपनी काव्य प्रस्तुति की। डाॅ. रश्मि चौबे ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। 

गोष्ठी का सुंदर एवं सफल संचालन, नियंत्रण व स्लाईड शो दर्शन  राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य प्रवक्ता डाॅ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छ.ग. द्वारा किया गया।
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