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रचनात्मकता मनुष्य की जीवनेच्छा की प्रस्तुति है : प्रो. द्विवेदी


नागपुर। हम जो सोचते हैं,जो अनुभव करते हैं, उसी को हम व्यक्त करते हैं। रचनात्मक लेखन बाहर घटनेवाली चीज नहीं वरन् मानव- मन में निर्माण होने वाली घटना है। उक्त विचार भारतीय जनसंचार संस्थान, दिल्ली के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने व्यक्त किए। वे राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा 'कौशल परक हिन्दी - विविध आयाम' विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। 

प्रो. संजय द्विवेदी ने रचनात्मक लेखन के विविध आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि रचनात्मक लेखन सुनने में जितना सरल है, करने में उतना ही कठिन है। निरंतर स्वाध्याय और अभ्यास से रचनात्मक लेखन में हम कौशल प्राप्त कर सकते हैं।     
प्रो. संजय द्विवेदी ने जोर देते हुए कहा कि रचनात्मक लेखन का आधार भाषा है। अतः भाषायी ज्ञान को बढ़ाने के लिए हमें उसमें रम जाना होगा। कंटेन्ट लेखन,फीचर लेखन, ललित निबंध,यात्रा वृत्तान्त, आलेख,पटकथा लेखन आदि में गद्य और पद्य दोनों तरीके से हम रचनात्मक लेखन कर सकते हैं। रचनात्मक लेखन हमारे देश की संस्कृति के मूल में है।        

भाषायी विकास के लिए तकनीक कौशल आवश्यक : बालेन्दु शर्मा दाधीच 
कार्यशाला के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए प्रख्यात तकनीकविद् और माइक्रोसॉफ्ट के ‘भारतीय भाषा व सुगम्यता' के निदेशक बालेन्दु शर्मा ‘दाधीच’ने कहा कि भाषायी विकास के लिए तकनीक कौशल आवश्यक है। तकनीक एक अदृश्य शक्ति है। तकनीक मनुष्य का विकल्प नहीं है परन्तु वह मनुष्य के लिए मददगार है। तकनीक में कौशल प्राप्त कर हम अपना विकास कर सकते हैं। श्री दाधीच ने कम्प्यूटर पर काम करने के लिए टाइपिंग,अनुवाद,शोध तथा पाठ्य-सामग्री खोजने के अनेक टूल्स का पीपीटी प्रेजेंटेशन के माध्यम से  उदाहरण दिया। प्रतिभागियों के तकनीक से जुड़े अनेक प्रश्नों का श्री दाधीच ने संतोषजनक उत्तर दिया। 

इससे पूर्व नागपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने स्वागत उद्बोधन देते हुए भाषा के रचनात्मक और तकनीकी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने की अपेक्षा जताई। कार्यक्रम का संचालन विभाग के प्रा. लखेश्वर चन्द्रवंशी ने किया।
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