सूरदास हिंदी काव्य जगत के सूरज माने जाते हैं : डॉ. दीपिका सुतोदिया
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नागपुर/पुणे। हिंदी साहित्य के भक्ति काल के कृष्ण भक्त कवि सूरदास जी हिंदी काव्य जगत के सूरज माने जाते हैं। कृष्ण भक्ति की अविरल धारा के अनन्य उपासक सूरदास जी ने सवा लाख मनोहर पदों का विश्लेषण किया है। इस आशय का प्रतिपादन डॉ. दीपिका सुतोदिया, गुवाहाटी, असम ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज उत्तर प्रदेश के तत्वाधान में आयोजित 85वीं राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी "कृष्णाश्रयी काव्यधारा - सूरदास," विषय वे अपना उद्बोधन दे रही थीं।
डॉ. दीपिका ने आगे कहा कि - सूरदास जी प्रज्ञा चक्षु थे। माना जाता है कि, वह नेत्रहीन थे परंतु मन की आँखों से उन्होंने श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया । वे लिखते भी हैं - 'अवगुण चित ना धरो, समदर्शी है नाम तिहारो सोई पार करो।' मुख्य वक्ता डॉ. ओम प्रकाश त्रिपाठी, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश ने कहा कि - वात्सल्य और श्रंगार रस के शिरोमणि सूरदास के पदों का परवर्ती हिंदी साहित्य पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। अतः सूरदास के काव्य में श्री कृष्ण के ऐश्वर्य की अपेक्षा माधुर्य की ही प्रधानता रही है। कल्पना की ऊँची उड़ान भी सूरदास के पदों में थीं - ' मैया मैं तो चंद्र खिलौना लेहों।'
वक्ता डॉ. अनीता पाटील, चेन्नई, तमिलनाडु ने कहा कि हिंदी साहित्य के महान कवि सूरदास जी की भक्ति में हमें दैन्य भाव, पुत्र भाव, दांपत्य भाव, मातृ भाव, सखा भाव, आदि विविध भाव दिखाई देते हैं। प्रभु भक्ति के दौरान बीच-बीच में विवशता, पश्चाताप, अतृप्ति, लालसा, उन्माद , हर्ष, तन्मयता आदि के जो भाव उत्पन्न होते हैं, उनका वर्णन भी सूरदास ने अपने काव्य में किया है। रश्मि संजय श्रीवास्तव, लखनऊ, उत्तर प्रदेश ने व्यक्त किया कि - सूरदास का भक्ति सिद्धांत या उनके रचित पद में उन्होंने तात्कालिक मनुष्य जीवन का एक पूरा चित्र खींचा है। सूरदास जी ने भजन के पारस पत्थर से स्पर्श कराकर विलासिता रूपी कुधातु को सोना बना दिया था।
नूपुर मालवीय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने कहा कि- सूरदास जी कृष्ण के अत्यंत प्रिय सखा थे। वे जितने कृष्ण के भक्त हैं, शायद उतने किसी और के नहीं होंगे। डॉ. रुपाली चौधरी, जलगांव, महाराष्ट्र ने व्यक्त किया कि - सूरदास जी की भक्ति भावना का मेरुदंड पुष्टिमार्ग का सिद्धांत भगवत अनुग्रह है। वे एक उदारात्मा खिलाड़ी के समान है। विजय पराजय से उन्हें कोई सरोकार नहीं था। सूर की भक्ति अगाध है। डॉ. पूर्णिमा मालवीय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश ने कहा कि - सूरदास जी का वात्सल्य वर्णन बहुत ही सुंदर व पुख्ता है जो चारों दिशाओं में व्याप्त है। सूरदास जी को अंतर्दृष्टि प्राप्त थी। आज के युग में उनका नाम सर्वोपरि है। सूरदास जी का काव्य आज भी प्रासंगिक है।
श्रीमती अनीता सक्सेना, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश ने कहा कि - सूरदास जी कृष्णाश्रयी काव्य - धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। उन्हें वात्सल्य सम्राट, जीवनोत्सव का कवि, पुष्टिमार्ग का जहाज आदि नामों से भी जाना जाता है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि सूरदास जी एक संत, महाकवि, भक्त, उपदेशक तथा श्री कृष्ण लीला के अमर गायक हैं। उनके काव्य का उद्देश्य अत्यंत व्यापक एवं मनुष्यता परक है। जीवन की आत्मा का संदेश उनके काव्य में विद्यमान है। श्रंगार और वात्सल्य के क्षेत्र में जहाँ तक उनकी दृष्टि पहुंची वहाँ तक और किसी की नहीं । सूरदास जी की कही बात सीधे हृदय में उतरती है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव, डाॅ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने प्रस्तावना में गोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। श्रीमती अनामिका श्रीवास्तव, रायबरेली, उत्तर प्रदेश ने सरस्वती वंदना की तथा श्रीमती पुष्पा श्रीवास्तव 'शैली', उ.प्र.सांसद, रायबरेली ने स्वागत भाषण दिया। सचिव डॉ. गोकुलेश्वर द्विवेदी जी ने आभार प्रदर्शित किया तथा डॉ. रश्मि चौबे, बाल संसद प्रभारी, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश ने आभासी गोष्ठी का सफल एवं सुंदर संचालन किया।