गहन चिंतन : द्वेष से पूरित मन से तथ्य की वास्तविकता समझ पाना नामुमकिन!
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खतरनाक समय में भी, जबकि मौत सामने खड़ी घूर रही होती है, भीतर का द्वेष बना रहता है। मूर्खता की जिद अपनी धार्मिक व सामाजिक आदतों पर अपनी जान को कुर्बान करने पर आमादा रहती है। साफ दिख रहा है कि खतरा जितना बड़ा होता है, मूर्खता की जिद और द्वेष से उपजा सामाजिक विघटन उतनी ही ज्यादा तीव्रता लिये हुये प्रकट होते हैं।
यदि शासन के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति भी इसी जिद्दी द्वेषमूलक समाज का अविभाज्य अंग होता है, तो उसमें समाज की समस्त विसंगतियों के और भी स्पष्टता से दर्शन होते हैं। यह भयकारी समय आत्मावलोकन का बेहतरीन समय है। यह समझने का भी यह अच्छा समय है कि तथ्य और मत या मान्यता एक ही चीज नहीं हैं।
एक ही तथ्य का अनगिनत तरीके से विश्लेषण किया जा सकता है, लेकिन तथ्य जस का तस ही रहता है। तथ्य की वास्तविकता किसी भी मत द्वारा पकड़ में नहीं आ सकती, क्योंकि तथ्य स्वसंवेद्य होता है। यह सिर्फ आत्मावलोकन से ही समझ में आ सकता है।
द्वेष से पूरित मन से तथ्य की वास्तविकता कभी नहीं समझी जा सकती। न ही द्वेष से भरे हुये व्यक्ति समाज में कोई सकारात्मक परिवर्तन ला पाने में सक्षम हो सकते हैं। द्वेष के व्यापक प्रसार से मौजूदा खतरे की भयावहता कई गुना अधिक व्यापक और मारक हो जाती है। शेष हरि इच्छा!
- प्रभाकर सिंह
प्रयागराज (उ. प्र.)