कौशल परक हिन्दी - आज के समय की आवश्यकता : प्रो. दीक्षित
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नागपुर। कौशल विकास आज के समय की मांग है। बिना कौशल विकास के युवा वर्ग की समस्याओं का समाधान संभव नहीं है और न ही देश का विकास। यह बात वरिष्ठ भाषा विशेषज्ञ लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व पत्रकारिता एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने हिन्दी विभाग, राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला में कही। सात दिवसीय इस कार्यशाला का विषय है- 'कौशल परक हिन्दी : विविध आयाम'।
प्रो. दीक्षित ने भाषा के कौशल परक आयामों पर सविस्तार प्रकाश डालते हुए कहा कि भाषा का प्रयोजन अपने आपको अभिव्यक्त करना है। व्यक्ति अनुभव करता है पर उसे अपने अनुभवों और विचारों को अभिव्यक्त करना है तो भाषा ही उसका मूल आधार है। इसलिए भाषा सम्बन्धी जितनी हमारी समझ बढ़ेगी उतना ही हम अपने को विकसित कर पाएंगे। हिन्दी भाषा में कौशल प्राप्त करने पर युवाओं को रोजगार के अनेक अवसर विद्यमान हैं।
प्रोफेसर दीक्षित ने कहा कि भारत में ६५ प्रतिशत युवा हैं और बेरोजगारी निरन्तर बढ़ती जा रही है। ऐसे में हम जिस भी विषय-क्षेत्र में अध्ययन कर रहे हैं ,वह पढ़ाई क्या हमें रोजगार दिला सकती है? क्या हम अपने शिक्षा से जीविकोपार्जन के साधन जुटा सकते हैं? यह एक बड़ा प्रश्न है। उन्होंने कहा कि मेडिकल व तकनीकी क्षेत्रों में, टूरिज्म, साहित्य, मीडिया लेखन, फीचर लेखन, रेडियो, ग्रामीण पत्रकारिता, चित्रकारी, कविता वाचन, प्रूफ रीडिंग, अनुवाद, प्रकाशन व मुद्रण, विज्ञापन सृजन से लेकर अनेक क्षेत्रों में रोजगार के अवसर हैं। उत्तम कौशल और भाषायी ज्ञान से हम इन क्षेत्रों में अपने को सक्षम बना सकते हैं। हिन्दी इसके लिए सबसे उपयोगी भाषा है।
कार्यशाला का उद्घाटन वक्तव्य देते हुए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के कुलपति प्रो. के. जी. सुरेश ने मीडिया और शिक्षा के क्षेत्र में हिन्दी भाषा की प्रासंगिकता पर बल दिया और कहा कि हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ रही है, यही हिन्दी की ताकत है। नई शिक्षा नीति कौशल विकास पर ज़ोर देती है। संवाद लेखन, पटकथा लेखन, अनुवाद जैसी अनेक विधाओं में विद्यार्थियों को पारंगत करने के लिए एक निश्चित पाठ्यक्रम तैयार करने और उसका अध्यापन करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि फेसबुक, ट्विटर आदि सोशल मीडिया के दौर में युवा भाषा व वर्तनी को लेकर गम्भीर नहीं है। इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में विश्वविद्यालय के प्र-कुलगुरु प्रो. संजय दुधे ने हिन्दी के महत्त्व को रेखांकित किया तथा अधिक से अधिक भाषा को व्यवहार में अपनाने पर जोर दिया। इससे पहले विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के अधिष्ठाता डॉ. दत्तात्रेय वाटमोडे ने स्वागत उद्बोधन देते हुए कहा कि भाषा व्यवहार में नित्य रूप से प्रयोग करने से आती है। कार्यक्रम की प्रस्तावना रखते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि हिन्दी के कौशल परक आयामों के अध्ययन-अध्यापन से व्यक्तित्व विकास के साथ रोज़गार क्षमता का विस्तार होगा।
अनुवाद क्षेत्र में रोजगार के प्रबल अवसर : डॉ. खड़से
दूसरे व्याख्यान में डॉ. दामोदर खड़से ने कहा कि दो देशों या दो भाषाओं के बीच सेतु के रूप में अनुवाद का बड़ा महत्त्व है। बहुभाषी राष्ट्र होने के नाते अनुवाद के सर्वाधिक अवसर भारत में हैं। अनुवाद का आशय स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि 'अ' से अनुवाद अलंकृत भाषा न हो,' नु' से उसमें नुमाइश या प्रदर्शन न हो, 'वा' यानी अनुवाद वाक जाल से मुक्त हो और 'द' से अर्थ है उसमें प्रयोग की गई शब्दावली दम्भी न हो अर्थात पांडित्य दर्शानेवाली न हो।
तकनीकी अनुवाद के विभिन्न उदाहरणों के साथ डॉ. दामोदर खड़से ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि शब्दानुवाद और भावानुवाद ये दोनों साहित्यिक अनुवाद के अंग हैं। स्रोत भाषा से प्राप्त विचारों को लक्ष्य भाषा में उत्तम रीति से संप्रेषित करना , यह आदर्श अनुवाद कहलाता है। अनुवाद क्षेत्र में नियमित रूप से अभ्यास करके हम अपने को निपुण बना सकते हैं।
कार्यक्रम का संचालन विभाग के प्राध्यापक डॉ. सुमित सिंह और जागृति सिंह ने किया तथा डॉ . संतोष गिरहे ने आभार व्यक्त किया।